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Friday, October 5, 2012

नेना लेल सुन्‍दर चि‍त्रकथा :: दुर्गानन्‍द मण्‍डल



श्रीमती प्रीति‍ ठाकुरक दू गोट चि‍त्रकथा (पहि‍ल गोनू झा आ आन मैथि‍ली चि‍त्रकथा, दोसर मैथि‍ली चि‍त्रकथा) मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे पहि‍ल बेर श्रुति‍ प्रकाशन नई दि‍ल्‍लीसँ प्रकाशि‍त भेल। दुनू चि‍त्रकथा एक संग श्री उमेश मण्‍डल जीक माध्‍यमे भेटल। एक-आधटा पन्ना उनटैबि‍ते मन गद्-गद भऽ गेल। लागल जे आब हम मैथि‍ल दरि‍द्र नै सभ कथुसँ सम्‍पन्न भऽ रहल छी। साहि‍त्‍यक तँ अनेको वि‍धा होइ अछि‍ जइमे कथा एक वि‍धा थि‍क तहूमे चि‍त्रकथा तँ बाल साहि‍त्‍य लेल प्रमुख। चि‍त्रकथाक माध्‍यमसँ अपन भूलल-बि‍सरल संस्‍कृति‍क झलक सेहो भेटैत अछि‍। नि‍श्चि‍त रूपे मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे एकर अभाव बहुत दि‍नसँ खटैक रहल छल। जेकरा श्रीमती प्रीति‍ ठाकुर अपन चि‍त्र कथा मैथि‍ल समाजक बीच राखि‍ एकटा असीम प्रति‍भाक परि‍चय देलनि‍ अछि‍।
बुझना जाइ छल जेना हम अपनेकेँ स्‍वयं वि‍सरि‍ गेल छी। वि‍सरि‍ गेल रही ओइ समैकेँ जइ समैमे मैयाँ अपन पोता-पोती लऽ जा कऽ घूड़ लग बैसि‍ गोनू झाक खि‍स्‍सा सुनबैत छलीह जे अति‍ मनोरंजक आ गोनूक तीव्र बुधि‍क परि‍चायक छल। तहि‍ना आनो आनो कथा जेकरा प्रीति‍ जी चि‍त्रवत् कऽ हमरा लोकनि‍क साेझामे रखलीह। जइमे रेशमा-चूहरमल, नैका बनि‍जारा, ज्‍योति‍ पंजि‍यार, महुआ घटवारि‍न, राजा सलहेस, छेछण महराज आ कालि‍दास छथि‍। जे कहि‍यो आम छल, आब लुप्‍त प्राय: भेल जा रहल छल, ओकरा एकबेर पुन: परि‍चि‍त करौलनि‍। जइमे लोक जनलक जे रेशमा के आ चूहड़मल के?
एतबे नै, प्रेमक पराकाष्‍ठाक परि‍चयक रूपमे जे लोकक ठोरपर हीर-राांझा वा लैला-मजनू रहैत छल, की ओकरासँ कम निस्‍वार्थ प्रेम रेशमा आ चूहड़मलक छल ई देखेबाकमे साकांक्ष रहलीह। जतए चुहड़मल दुधवंशी दुसाध जाति‍क तँ दोसर तरफ रेशमा भुमि‍हार ब्राह्मण जाति‍क बेटी। जखन जुहड़मलकेँ दंगल जीत कऽ अबैत देखलक तँ दुनूक भेँट गंगाक तटपर, ओतहि‍ प्रेमकथाक प्रारम्‍भ भेल। अर्थात् प्रेममे जाति‍-पाति‍सँ कोनो लेन-देन नै अपि‍तु प्रेम तँ प्रेम थि‍क। प्रेम कएल नै जाइ छै अपने भऽ जाइ छै। तहि‍ना नैका बनि‍जारा सेहो प्रेमेक पराकाष्‍ठाक परि‍चायक छी। भगता ज्‍योति‍ पंजि‍यार अपन वीरता आ पराक्रमक कारणे पूि‍जत भेल। आइ जँ धर्मराजक पूजा तँ ज्‍योति‍ पंजि‍यार सेहो पूजि‍त छथि‍। धर्मराजक भक्‍त ज्‍योति‍ पंजि‍यार बारह बर्खक तपस्‍याक बाद कंचन काया लऽ कऽ घूमि‍ घर एलाह। माइक कोखि‍ पवि‍त्र भेल। जे एहेन पैघ भगता ओकरा कोखि‍सँ जनमल।
तहि‍ना महुआ घटवारि‍न सेहो अपन इज्‍जत बचाबए खाति‍र कौशि‍की धारमे जान गमा अपन सतीत्‍वकेँ अकि‍ंचन बना कऽ रखलीह। राज सलहेसक कथा तँ नाचो रूपमे प्रसि‍द्ध अछि‍। जेकरा प्रीति‍जी चि‍त्रवत् कऽ इति‍हास बना देलनि‍। एकटा धरोहरक रूप दऽ देलथि‍। अनचि‍न्‍हार जकाँ छेछन महराज कथाक संग कालि‍दासक चि‍त्र कथा आ हुनक यादव कुलमे जन्‍म हएब, हुनक यर्थाथ परि‍चए भेल। बहुतोकेँ ई बूझल हेतनि‍ जे कालि‍दास तँ कर्ण-कायस्‍थ छलाह। ऐ लेल सेहो प्रीति‍ जीकेँ धन्‍यवाद।
प्रीति‍ जीक दोसर रचना मैथि‍ली चि‍त्रकथामे कुल दस गोट कथा वर्णित अछि‍। जइमे राजा सलहेस, बोधि‍ कायस्‍थ, दीना-भदरी, नैका-बनि‍जारा, वि‍द्यापति‍क आयु अवसान प्रमुख अछि‍। ऐ प्रकारे दुनू चि‍त्रकथा पढ़लापर एहेन लागल जे ई कथा सभ ऐति‍हासि‍क महत पाओत। ऐ प्रकारक रचनाक सर्वथा अभाव सन छल। जेकरा प्रीति‍जी हमरा सबहक समक्ष राखि‍ एकरा धरोहरि‍ स्‍वरूप महत देलनि‍। ऐ पोथीकेँ नैना-भुटुकाक पहि‍ल पसि‍न कहल जा सकैत अछि‍। खास कऽ जे बच्‍चा नंदन, वालहंश, वा अन्‍य पोथी पढ़बाक हि‍स्‍सक लगौने छल आब ओ लेखि‍का द्वारा रचि‍त रचनासँ लाभ उठाओत। पोथीक प्रत्‍येक चि‍त्र तथ्‍यात्‍मक आ उद्देश्‍यपरक अछि‍। चि‍त्रकथाक माध्‍यमसँ प्रीति‍जी मि‍थि‍लाक वि‍लुप्‍त प्राय भेल वि‍षय-वस्‍तुकेँ कथाक रूप दऽ जीवंत कऽ देलनि‍। मैथि‍ली प्रेमी ऐ तरहक रचनाकेँ नजरअंदाज नै कऽ सकैत छथि‍। आबैबला पीढ़ीक लेल ऐ प्रकारक रचना नै मात्र मनोरंजक अपि‍तु प्रेरणादायक सेहो सि‍द्ध हएत। पोथीक सभसँ पैघ बात ई अछि‍ जे प्रत्‍येक चि‍त्र एकटा वि‍शेष अंदाज आ दशाकेँ प्रस्‍तुत करबामे सफल भेल अछि‍ जे लि‍खल गेल पाँति‍क भाव स्‍पष्‍ट कऽ रहल अछि‍। प्राय: सभ जाति‍क लोकक चि‍त्रण ऐ चि‍त्रकथामे समाएल अछि‍। जे प्रीति‍ जीक समन्‍वयवादी सोचक परि‍चायक अछि‍। प्रगति‍शील वि‍चार तँ सहजहि‍। मि‍थि‍ला सभ दि‍नसँ उदारक परि‍चायक रहल मुदा कि‍छु लोक बेवसायि‍क एवं जाति‍वादी सोचक लाड़नि‍ बीचमे चलौलनि‍ आ चलाइयो रहल छथि‍। हमरा हर्ख भऽ रहल अछि‍ ऐ चि‍त्रकथाक लेखि‍कापर जे एतेक सुन्‍दर, सुगम, आ प्रगति‍शील डेग बढ़ा मैथि‍ली साहि‍त्‍यक वि‍कासमे एकटा बेछप स्‍थान बनौलनि‍ अछि‍।
हमर शुभकामना सतत रहत जे प्रीति‍जी ऐ प्रकारक रचना करैत रहती आ श्रुति‍ प्रकाशन प्रकाशि‍त करैत रहत तँ नि‍श्चि‍त रूपेँ मि‍थि‍ला, मैथि‍ली आ मैथि‍लामे रहनि‍हार सभ पूर्णत: समृद्ध भऽ जेताह।