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Monday, September 3, 2012

विभा रानीक नाटक भाग रौ:सामाजिक-राजनीतिक निहितार्थ -रविभूषण पाठक


साहित्यक प्रतिमान बदलैत रहैत अछि मुदा किछु तत्वक निरंतरता बनल रहैत अछि। नाटक साहित्यमे दू तत्वक महत्व कमोबेश स युगमे रहल अछि। प्रासंगिकता आ रंगमंचीयता एहने दू टा तत्व अछि। पहिलक सम्बन्ध मोटामोटी विषयवस्तु आ दोसरक सम्बन्ध शिल्पसँ अछि। विभा रानी लिखित भाग रौक विश्लेषण ऐ दृष्टिसँ कएनाइ उचित अछि।
विभा रानी द्वारा ऐ नाटक मे भिखमंगा बच्चाक जीवन आ समाजक क्रूर दृष्टिक चर्चा कएल गेल अछि। लेखिका द्वारा चयनित विषय वस्तु मैथिलीए मे नइ बल्कि आनो-आन भाषामे विरल अछि। भिखमंगा बच्चा सभ आपसी वार्तामे समाज आ जिनगीक कतिपय क्रूर पक्षसँ परिचय करबैत अछि। समाज, सरकारक साथे-साथ भगवानोसँ उपेक्षित ई बच्चा भारतीय समाज आ राष्ट्रक महानतापर व्यंग्य करैत अछि।
भिखमंगा बच्चा सभ अपन जिनगीक क्षतिपूर्ति गोविन्दा, रितिक रोशन, शाहरूख, अभिषेक आदिक चर्चासँ करैत अछि आ अपन कथात्मक सन्दर्भ मे ई जेहन करूण साबित होइत अछि, रंगमंचीय दृष्टिसँ ओहने कलात्मक। यद्यपि विद्वान लोकनिकें हीरो हीरोइनक ई अतिचर्चा अनसोहात लागि सकैत छन्हि मुदा अपन संदर्भक मध्य ई रूचिगर आ प्रासंगिक बुझाइत अछि।
दानापुर माने दाना सपूरम पूराभाग रौ नाटकक कथा प्रसंग देशक एहने दाना दाना चुगएला ससँ वंचित आ कर्मठ वर्गक कथा छै।
वर्गक ससँ अभिप्सित भूख, चाह आ गंध थिकै रोटीक गंध। पेटमे मरल सनकिरबोक थाह नइ मिललइ, ई देशक नीति-निर्माता आ प्रभु वर्गपर प्रचण्ड प्रहार अछि। भूखल बच्चा ऐ समाजमे अपन स्तर आ महत्वसँ परिचित अछि, दुआरे बच्चा १ कहैत अछि- प्रधानमंत्री छें जे मरि जेबें तदेसक काजधंधा थम्हि जेतै।
नाटकक भाषा विषय-वस्तुक अनुरूप करू आ मारक अछि। तद्भव आ देशज शब्दक बाहुल्य नाटकके रूचिगर आ रंगमंचीय बनेने रहैत अछि।
-सिटी ससाहेब भगेलै तहमरा ओरक भूख-पियासक रंग बदलि गेलै की?, उपरोक्त वाक्यक प्रश्नवाचकता आ कथनगत असंभाव्यता एकटा तनावके जन्म दैत अछि।
भिखमंगा सभ आपसी गपशपमे दूटा महिला राजनीतिज्ञक चर्चा सेहो करैत अछि आ विडंबना ई जे दुनू महिला परिवारवाद आ भारतीय राजनीतिक अनुर्वरताक पोषक छथि। बच्चा सभ कहैत अछि जे पढ़ि की बनब? ई या ई? दुर्भाग्य देखू जे दुनू महिला अपन विद्वता आ नैतिक शक्तिसँ जनमनक नेतृत्व नइ कलक।
एहन समाज आ राजनीति एकटा खास तरहक भाषाक इस्तेमाल करैत अछि। ई भाषा प्रथम दृष्टया अश्लील आ मूलतः असंवेदनशील होइत अछि।
-ई डंडा एमहरसघुसतौ तमुह दने निकलतौ
वर्चस्व, आक्रमण आ यौनविद्वेषसँ भरल ई भाषा एकटा खास सामंती आ मर्दवादी समाजक मानसिकताके पोषित करैत अछि।
ऐ समाजक बुद्धिजीवी एहन भाषाक उपयोग नै करैत अछि मुदा अपन अनुर्वरतामे इहो तेहने अछि। दू टा पत्रकार- युवक आ युवती- अपन शिक्षा आ संस्कारमे किछु अलग अछि मुदा इहो वर्ग सृजनशीलता आ नवोन्मेषसँ पूर्णतः रहित अछि। युवतीमे किछु नया करबाक संभावना अछि मुदा अंधकारक विराट आकाशमे ई संभव नै भेल।
ऐे वर्गक भाषामे एकटा खास किस्मक नफासत अछि। तत्सम बहुलता आ अंग्रेजी शब्द आ वाक्यक बाहुल्यसँ ई वर्ग अपन विशिष्ट अस्तित्व आ रूचिपर बल दैत अछि।
-नॉट ए बैड आइडिया, ही इज डफर, बी पेशेंट, सनक चालू वाक्य रंगमंचीय अछि।
रंगमंचीय उपकरणक रूपमे किछु नव प्रयोग सेहो अछि। नाटकमे समवेत स्वरमे गान या बलाघातसँ किछु खास कहबाक प्रयास कएल गेल अछि।
-हम स किछु नै सकैत छी।, -हमसब.......मात्र पुतली भरि
; ई स अपन संदर्भमे बहुत अर्थवान अछि मुदा ऐठाम रंगमंचीय कौशल सेहो अपेक्षित अछि, अन्यथा अंतिम प्रभाव उड़ियएबाक संभावना अछि।
भाग रौ नाटकक असफलता सेहो स्पष्ट अछि। दोसर अंकक पहिल दृश्यमे मंगतू एक पृष्ठक स्वगत बाजैत अछि। ऐ दृश्यक उद्देश्य स्पष्ट रहितो रंगमंचीयता संदिग्ध अछि। दोसर अंकमे लेखिकाक नियंत्रण नाटकपर कम अछि। भिखमंगाला संदर्भ जतेक जीवंत अछि, ओतेक पत्रकार आ प्रेसला नै। मध्यांतरक बाद ऐ गुरूत्वाकर्षणक कमी एकदम स्पष्ट अछि।
नाटकक अंत एकटा कवितासँ होइत अछि। संयोगवश ऐ कविताक समानता आ समरूपता हिन्दी कवि शमशेर बहादुर सिंहक कविता -काल, तुझसे होड़ है मेरी, सँ बहुत ज्यादा अछि।
शमशेर- काल,
तुझसे होड़ है मेरी: अपराजित तू -
विभा -ओ काल...
अहीं सहँ, अहीं सअछि टक्कर हमर
शमशेर-भाव, भावोपरि
सुख, आनंदोपरि
सत्य, सत्यासत्योपरि
विभा-जे अछि सत्यो सबढ़ि कसत्य
शिवो सबढ़ि कशिव
अमरोसअमर
सुंदरतोससुंदर.....
ई कविता नाटक भाग रौक महत्वपूर्ण भाग नै अछि। तें एकर शमशेरक कवितासँ समानताक कोनो खास महत्व नै अछि। मैथिली नाटकक इतिहासमे विभारानी अपन ऐ नाटकक संग विशेष महत्वक उत्तराधिकारिणी छथि। विषयवस्तुमे नवोन्मेषक संगे-संग ट्रीटमेंटक अभिनवता भाग रौनाटकके उल्लेखनीय बनबैत अछि।

बेचन ठाकुरक नाटक बेटीक अपमान -आशीष अनचिन्हार



हम व्यक्तिगत रुपेँ हरियाणाक प्रायः-प्रायः प्रत्येक कोमे रहल-बसल छी आ तँए स्थानीय जनताक रुपमे हरियाणामे कत्तौ घुसि जाइ छी। एकर हानि हमरा जे भेल हुअए मुदा लाभ एतेक तँ जरुर भेल जे हम स्थानीय परेशानी बुझए लागल छिऐ। ओना हरियाणाक नाम सुनिते मोनमे समृद्धिक नजारा देखाए लगैत छैक। भरल-पुरल खेत सुझाए लगैत छैक। मुदा ठामक स्थानीय समस्या बहरिआ लोककेँ नै बुझल छै। ऐठाम हरेक साल १००-१५० लड़काक बिआह दोसर राज्यक लड़कीसँ होइ छै। जँ सोझ ढगे कही तँ हरियाणाक सेक्स-रेसियो (लिंगानुपात) असमान अछि अर्थात १००० लड़कापर ८५०-९०० लड़की।
आब अहाँ सभ हमरा हूट करबाक सोचि रहल हएब। प्रस्तुत पोथी मैथिलीक अछि आ हम हरियाणाक गप्प कऽ रहल छी से अहाँ सभकेँ उन्टा लागि रहल हएत। मुदा ऐठाम हम ई कहए चाहब जे मात्र स्थान आ मनुख बदलि जाइ छै, मनोवृति आ समस्या वएह रहै छै। आब हम अही समस्याकेँ मिथिलाक परिप्रेक्ष्यमे सोची। बेसी अंतर नै भेटत आ से ऐ द्वारे जे नेपालमे सेहो मिथिला छै। आ भारतक मिथिला आ नेपालक मिथिला दुनूमे बिआह प्रचलित छै। तथापि जँ भारतक हिसाबे सोची तँ बिहारमे १००० लड़कापर ९२१ लड़की छै (ओना जँ २०११ क जनगणनाक प्रोविजनल रिपोर्ट देखब तँ संपूर्ण भारतमे १००० लड़कापर ९४० लड़की छै)।
आ जँ ऐ समस्याक परिप्रेक्ष्यमे विकसित हरियाणा आ अविकसित मिथिलाकेँ देखी तँ कोनो बेसी अंतर नै बुझाएत। अर्थात ऐ समस्यासँ दुनू क्षेत्र ग्रसित अछि। मुदा ई आब विचारए पड़त जे ई समस्या कहाँसँ निकलैत छैक? कोन मनोवृत्तिसँ ई समस्या परचालित होइ छै? आखिर ई कोन दृष्टिकोण छै जइ तहत लोक बेटी नै चाहैत अछि आ ऐ लेल भ्रूण हत्या सन पाप करबासँ सेहो नै हिचकैत अछि? मिथिलाक हिसाबे गप्प करी तँ दहेज प्रथाकेँ एकर जिम्मेदार ठहराओल जा सकैए मुदा हरियाणाक हिसाबें ई कारण ओतेक प्रभावी नै, कारण हरियाणामे दहेज प्रथा नै कऽ बराबर छै। तँए हम दहेजकेँ भ्रूण हत्याक एकटा कारण मानैत छी मुदा प्रमुख कारण नै। हमरा हिसाबे ऐ समस्याक प्रमुख कारण एखनो आधुनिक कालमे बेटाकेँ अनिवार्य मानब अछि। एकरा समाजिक आ आर्थिक दुनू पक्षमे बाँटए पड़त।
समस्या आ साहित्य दुनू एकै चीजक अलग-अलग नाम थिक। बिना समस्या कोनो साहित्य नै भऽ सकैत अछि। आ अंततः साहित्ये कोनो समस्याक समाधान तकैत छैक। मुदा मैथिली साहित्य एकर अपवाद अछि। ऊपर हम देखिए चुकल छी जे कोना मिथिला भ्रूण हत्याक समस्यासँ ग्रसित अछि। तथापि ऐठामक साहित्यकार ऐपर कलम नै चलौलन्हि। घोर आश्चर्यक विषए। आश्चर्यक विषए ईहो जे एहने-एहने समस्यासँ कतिआएल साहित्यकारकेँ आलोचक आ मठाधीश सभ बढ़ाबा देलथि।
कोनो समाज कोनो समस्यासँ कतिआ कऽ बेसी दिन नै रहि सकैत अछि। एकर अनुभव हमरा श्री बेचन ठाकुर लिखित नाटक "बेटीक अपमान" पढ़लापर बुझाएल। आ संगहि-संग ईहो बुझाएल जे आब बेसी दिन मिथिला सूतल नै रहत आ ने बेटीकेँ खराप बुझल जाएत ।


बेचन ठाकुरक नाटक छीनरदेवी -आशीष अनचिन्हार



ऐ नाटकक मादें किछु कहबासँ पहिने ओ गप्प कही जे प्रायः-प्रायः अंतमे कहल जाइ छै। श्रुति प्रकाशन एकटा बड़का काज ठानि लेने अछि- हीरा-मोती-माणिककेँ चुनबाक। आ ऐ मे ई कतेक सफल भेल तकर निर्धारण भविष्य करत, वर्तमान नै, कारण वर्तमान समयक नीति-निर्धारकक इमान शून्य स्तरपर पहुँचि गेल अछि। मुदा एहन-एहन समस्याक अछैतो हमर शुभकामना ऐ प्रकाशनक संग अछि आ विश्वास अछि जे जेना ई धारक दूरी पार केलक अछि तेनाहिते आब ई समुद्रक दूरी पार करत। आ संगहि-संग ऐ नाटककेँ पर अनबामे जनिकर कनेकबो योगदान छन्हि से अशेष धन्यवादक पात्र छथि।
जहिया सनातन धर्ममे पुराण-उपनिषद आगमन भेल रहै, तहिया देवी-देवताक संख्या ३३ करोड़ रहै। आजुक समयमे जखनकि पौराणिक समय बितला बहुत दिन भगेल तखन देवी देवताक संख्या कतेक हएत? हमरा बुझने ३३ करोड़सँ बेसिए। तथापि सुविधाक लेल एकरा यथावत् मानू। आ एतेक देवी-देवताक अछैतो छीनरदेवीक आविर्भाव किए?
उत्तर हम नै देब कारण ई गप्प सभ जनैत छथि मुदा लोक ऐ उत्तरकेँ नुका कऽ रखैत अछि। आ संभवतः छीनरदेवीक ऐ रूपकेँ छिनरधत्त कहल जाइत छै। ओना एकरा बादमे हम निरुपित करब। ओइसँ पहिने एकटा आरो महत्वपूर्ण प्रश्नपर चली। जँ अहाँ श्री बेचन ठाकुर कृत ऐ नाटककेँ नीकसँ पढ़ब तँ ई बुझबामे कोनो भागठ नै रहत जे ऐ नाटकक मूल स्वर अंधविश्वासपर चोट करब छै। आ जखने अहाँ ऐ निष्कर्षपर पहुँचब, अहाँकेँ तुरंते प्रो. हरिमोहन झा मोन पड़ि जेताह, से उम्मेद अछि। आ जखने अहाँकेँ प्रो. झा मोन पड़ताह तखने हमरा मोनमे ई प्रश्न उठत जे प्रो. झा जइ प्रबलतासँ अंधविश्वासपर कलम चलेने छलाह तकरा बाबजूदो ६०-७० साल बाद बेचन जीकेँ ऐपर कलम चलेबाक जरूरति किए पड़लनि? एकर दूटा कारण भऽ सकैत अछि, पहिल जे प्रो. झाक प्रहारक बाबजूदो अंधविश्वास मेटाएल नै (हम ई नै कहि रहल छी जे ई प्रो. झाक हारि थिक कारण हरेक लेखकक एकटा सीमा होइ छै) आ दोसर कारण भऽ सकैत अछि जे बेचन जीकेँ कोनो बिषए नै भेटल होइन्ह आ मजबूरीमे ओ ऐपर कलम उठेने होथि। मुदा आइ जखन गामे-गाम घूमै छी आ ओकर आंतरिक स्थितिकेँ परखैत छी तँ दोसर कारण अपने-आप खत्म भऽ जाइत अछि। आइयो गाम आ अर्धशहरी इलाकामे एलोपैथीक संगे-संग भस्म-विभूति आ ब्रम्हथानक माटि उपचारमे लाल जाइत अछि। आ एकरा संगे ईहो स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे प्रो. झाक बादो ई अंधविश्वास मरल नै। आ एहने समयमे हमरा लग ई प्रश्न विकराल रूप धऽ आबि जाइत अछि जे प्रो. झाक बाद जे नाटककार भेलाह (चूँकि बेचन ठाकुर जीक विधा नाटक छन्हि तँए हम नाटकेक दृष्टिसँ गप्प करब) से एतेक दिन धरि की करैत छलाह?
आब हम ऐ प्रश्न सबहक उत्तर ऐठाम नै लिखब। एकर कारण अछि जे हमरा सदासँ विश्वास रहल अछि जे साहित्यिक संदर्भमे वर्तमान समयक उत्तर जँ भविष्यमे प्राप्त हुअए तँ ओ बेसी सटीक आ सार्थक होइ छै। अस्तु श्री बेचन ठाकुर जीसँ मैथिली मंचकेँ बड्ड आस छै आ तइ आसकेँ पूरा करबाक तागति भगवान हुनका देथिन्ह तइ आशाक संग चली हम प्रेक्षक समूहमे।
कोनो नाटक पहिने लिखल जाइए आ तकर बाद ओ टाइप होइए वा सोझे टाइप कएल जाइए आ तकर बाद कखन छपैए, मंचनक बाद वा मंचनक पहिने; ऐ सभमे आब कोनो अन्तर नै रहलै। जॉर्ज बर्नार्ड सॉ शॉर्टहैण्डमे लिखै छलाह आ हुनकर स्टेनो ओकरा लौंगहैण्डमे टाइप करै छलीह। बिनु छपने मैथिली धूर्तसमागम मैथिलीक पहिल पोस्ट मॉडर्न अबसर्ड नाटक अछि। ई तर्क जे छपलाक पहिने मंचन भेलासँ बहुत रास कमी दूर भऽ जाइए, ऐ सन्दर्भमे मलयालम कथाकार बशीरक उदाहरण अछि जे सभ नव छपल संस्करणमे अपन कथामे नीक तत्व अनबाक दृष्टिसँ संशोधन करै छलाह, ई कथामे सम्भव तँ नाटकमे तँ आर सम्भव। तँ सिद्ध भेल जे लिखल जेबाक वा छपि गेलाक बादे नाटकक मंचन हएत से नै; आ मंचनक बाद लिखल वा छपल दुनूमे सुधार सम्भव अछि। बेचन ठाकुरजी रंगमंच निर्देशक सेहो छथि आ विगत २५ बर्खसँ अपन गाममे मैथिली रंगमंचकेँ जियेने छथि बिना कोनो संस्थागत (सरकारी वा गएर सरकारी) सहयोगक। हिनकर रंगमंचपर हिनकर दर्जनसँ बेसी नाटकक अतिरिक्त गजेन्द्र ठाकुर आ जगदीश प्रसाद मण्डलक नाटक, एकांकी आ बाल नाटकक मंचन सेहो भेल अछि।

गुणनाथ झा पर गजेन्द्र ठाकुर

गुणनाथ झा

गुणनाथ झा "लोक मञ्च" मैथिली नाट्य पत्रिकाक संचालन- सम्पादन केने छथि। मैथिलीमे आधुनिक नाटकक प्रणयन। हुनकर नाटक कनियाँ-पुतरा, पाथेय, ओ मधुयामिनी, सातम चरित्र, शेष नञि, आजुक लोक आ जय मैथिली सभक बेर-बेर मंचन भेल अछि। बाङ्गला एकाङ्की नाट्य-संग्रह- ऐमे बांग्लाक २४ टा नाटककारक २४ टा नाटकक संकलन ओ सम्पादन अजित कुमार घोष केने छथि आ तकर बांग्लासँ मैथिली अनुवाद श्री गुणनाथ झा द्वारा भेल अछि।
कनियाँ-पुतरा- गुणनाथ झा जीक ई पहिल पूर्णाङ्क नाटक थिक। नाटक बहुदृश्य समन्वित करैबला घूर्णीय मञ्चोपयुक्त अछि। कथा काटर प्रथापर आधारित अछि आ तकर परिणामसँ मुख्य अभिनेता आ मुख्य अभिनेत्री मनोविकारयुक्त भऽ जाइत छथि, तइ मनोदशाक सटीक चित्रण आ विश्लेषण भेल अछि।
मधुयामिनी: एकाङ्क नाट्य शैलीमे दूटा पात्र, पुरुष संयुक्त परिवारक पक्ष लेनिहार आ स्त्री तकर विरोधी। संयुक्त परिवारक पक्ष लेनिहारक सामंजस्यपूर्ण विजय होइत अछि। "लोक मञ्च" मैथिली नाट्य पत्रिकामे प्रकाशित अछि
पाथेय: एकाङ्क नाट्य शैलीमे रचित, मुदा पूर्णाङ्कक सभ विशेषता ऐमे भेटत। मुख्य अभिनेता मिथिलाक अधोगतिसँ दुखी भऽ गामकेँ कर्मस्थली बनबैत छथि, स्वजन विरोध करै छथि। मुदा बादमे पत्नी हुनकर संग आबि जाइ छथिन्ह। भाषा मधुर आ चलायमान अछि।
लाल-बुझक्कर: एकाङ्क नाट्य शैलीमे रचित। दाही रौदीसँ झमारल निम्न आ मध्य-निम्न वर्ग स्वतंत्रताक पहिनहियो आ बादो जीविकोपार्जन लेल प्रवास करबा लेल अभिशप्त छथि। माता-पिता विहीन लाल बुझक्करजी कनियाँकेँ नैहरमे बैसा कऽ आ सन्तानहीन पित्ती पितियैनकेँ छोड़ि नग्र प्रवास करै छथि।
सातम चरित्र: एकाङ्क नाट्य शैलीमे रचित। मैथिली रंगमंचपर महिला अभिनेत्रीक अभाव, सातम चरित्रक प्रतीक्षामे पूर्वाभ्यास खतम भऽ जाइत अछि। ई "लोक मञ्च" मैथिली नाट्य पत्रिकामे प्रकाशित अछि
शेष नञि: आधुनिक सामाजिक पूर्णाङ्क नाटक। पिता-माताक मृत्युक बाद अग्रजक अनुजक प्रति पितृवत व्यवहार। अनुज चाकरी करै छथि, परिवर्तनशील सामाजिक परिस्थितिक शिकार भऽ अचिन्तनीय कार्यकलाप करै छथि आ अग्रज प्रतारित होइ छथि। मुदा अग्रज मरणासन्न पत्नीक प्राणरक्षार्थ साहसपूर्ण डेग उठा लैत छथि। 
आजुक लोक: पूर्णाङ्क नाटक। विषय निम्नमध्यवर्गीय बेरोजगारी आ बियाहक दायित्वक बोझ। 
जय मैथिली: पूर्णाङ्क नाटक। मिथिलाक भाषिक-सांस्कृतिक समस्या एकर कथावस्तु अछि। 
महाकवि विद्यापति: विद्यापतिक नव विश्लेषण।

नव–नव क्षितिजक सन्धान करैत सुजीतक जिद्दी- डा.राजेन्द्र विमल



साहचर्य–सम्भूत रसोद्भावनाक चतुर, युवा कथाकार सुजीत कुमार झाक कथा मिथिलाञ्चलक महानगरोन्मुख शहरक विविधतापूर्ण परिवेश आ पात्रक स्थिति–मनस्थितिक सूक्ष्म चित्राङ्कन प्रस्तुत करैत अछि । प्रत्येक कथा कोनो एक गोट एहने शहरी पात्रक जीवनमे झटका नेने आएल कोनो निर्णायक मोड़क नाटकीय रुपमे जखन प्रत्यक्षीकरण करबैछ तऽ पाठक चिहँुकि उठैत अछि ।
सामान्य घटनासभक श्रृङ्खलासँ आरम्भ भेल कथा मध्यधरि अबैत–अबैत सूच्याग्र भऽ जाइत अछि आ अन्तमे एकटा ‘करेण्ट’ जेकाँ लगबैत अछि । – जेना सामान्य यात्रामे चलैत–चलैत केओ आगाँमे फँेच कढ़ने, नाङरिपर ठाढ़ गहुमन देखि नेने हो ! शिल्पक ई वैशिष्ठ्य हिनका मैथिलीक अन्य कथाकारसँ अलगहे फराक कए दैत अछि ।
महानगरोन्मुख समाजक चित्राङ्कनक संगहि कथा एक गोट मनोवैज्ञानिक सत्यक उद्घाटन करैत अछि । कथामे एक गोट एहन स्थल अबैत अछि जखन आश्चर्यचकित भेल पाठक सोचैत अछि, ‘ अरे ! ई की भऽ गेलै ?’ – आ तखने कथाक अन्त भऽ जाइ छै । अमेरिकी कथाकार ओ. हेनरीक स्मरण भऽ अबैछ । अवग्रहमे पड़ल पात्रक प्राण जेना अकस्मात् मुक्ति–पथ पाबि
लैछ !
कथाकार सुजीत कुमार झाक कथाकारिताक दोसर उल्लेखनीय निजत्व थिक – अनतिदीर्घता अर्थात् संक्षिप्तता । हिनक कथाक घटना–परिघटना ज्यामितीय चित्र जेकाँ एक–दोसरकेँ कटैत, ओझराइत–सोझराइत आगाँ नहि बढ़ैछ । कथाक तीर सनसनाइत जाइत अछि आ अर्जूनक लक्ष्य–भेद जेकाँ चिड़ैक आँखिटा देखैत ओकर भेदन करैत अछि आ कुशल धनुर्धरक धनुर्विद्याक सफलताक प्रमाणसँ धन्य भऽ जाइत अछि । तँए कथासभमे एकटा प्रभावान्वितियुक्त त्वरा छैक ।
हिनक सभ पात्र खाँटी मैथिल थिकाह – विभिन्न जाति, वर्गक मध्यवित्तीय मैथिल । सुजीत कुमार मध्यवित्तीय मैथिल जीवनक सफल कथाकार छथि । परम्परागत मूल्यक सिमेण्टसँ ठोस बनल संयुक्त परिवारमे देखल जाइत पारस्परिक स्नेह, विश्वास, वलिदान, सेवा, करुणा, अनुशासन आदि श्रेष्ठ मानवीय गुणमे लागल पश्चिमी सोचक नोनीसँ उत्पन्न दरार देखि कथाकारक हृदय दरकि जाइत छैन्हि आ हुनक लगभग प्रत्येक कथा खण्डित होइत एहि मूल्यकेँ पुनस्र्थापित करबाक कलात्मक चेष्टा बनि जाइत अछि ।
सहज–स्वभाविक कथोपकथनक मुक्तावलीसँ बनल–बूनल ई कथा सभक कथाकारक अपन परिवेशक भोगल यथार्थ सभक चित्रावलीसँ सजाओल सुन्दर ‘अलबम’ थिक ।
कथाकार सुजीत कुमारक कथाक सेहो एक गोट प्रमुख तत्व थिक सहज मानवीय राग–बन्ध । सुप्रसिद्ध आलोचक ई.एम.एलब्राइड लिखने छथि जे कथा–साहित्यक समस्त भावात्मक तत्वमे एकटा प्रेमे एहन थिक जकर सर्वाधिक प्रयोग भेल अछि, कारण प्रेम मानव–स्वभावक सर्वव्यापक तत्व थिक ।
‘पूmल फुलाइएकऽ रहल’ कथाक उच्च कुलशीला, सुशिक्षिता नायिका पिंकी अन्तद्र्वन्द्वक भंवरमे फँसि उबडुब करैत मुक्तिक हेतु तखन हाथ पएर भाँजऽ लगैत छथि । जखन हुनका पता लगैत छैन्हि जे जाहि पुरुषकेँ सहायक स्टेशन मास्टर कहि हुनक विवाह रचाओल गेल छल आ जकरा अपन सम्पूर्ण संचेतना समर्पण दऽ ओ इन्द्रधनुषी कल्पनाक इन्द्रजालमे ओझराएलि अपन सुधिबुधि हेरा चुकलि छलीह से सहायक स्टेशन मास्टर नहि एकटा साधारण पैटमैन अछि जे वस्तुतः अपन मालिक स्टेशन मास्टर आ सहायक स्टेशन मास्टरक घरलए बजारसँ झोड़ाक भोड़ा तरकारी कीनिकऽ अनैत अछि तऽ ओ सातम आसमानसँ खसैत छथि । मुदा, ई स्वयंसिद्ध नायिका अग्निकेँ साक्षी राखि लेल गेल पतिब्रत्य संकल्पकेँ स्मरण कए एकटा नव अवतार लैत छथि – अपन चिताक छाउरसँ पुनः उड़ि आसमानकेँ छुबैत मिथकीय पन्छी ‘स्फिङ्स’ जेकाँ ! नायककेँ एम.ए.धरि पढ़बैत छथि । अन्ततः नायक सहायक स्टेशन मास्टरक पदपर प्रतिष्ठित होइत छथि ।
‘नयाँ व्यपार’–क रोगग्रस्त नायक जितेन्द्र प्रसादक हँसैत–खेलैत गार्हस्थ जीवन महत्वकांक्षाक बबण्डरमे उधियाकऽ तहस–नहस भऽ गेल अछि । स्वयं रोगशैय्यापर पड़ल छथि, बच्चासभ अपन–अपन व्यवसाय–संसारमे हेराएल अछि आ पत्नी साधना सड़कपर चलैत लोकक आँखिमे गरदा झोंकैत, मिश्राजीक स्कूटरपर बैसि, अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवसमे सहभागी होएबाक लेल उड़ि जाइत छथि । कथा वर्तमान पारिवारिक जीवनक विद्रूपता आ विसङ्गतिकेँ रेखाङ्कित करैत अछि ।
‘खाली घर’–क नायक जयचन्द्र आ नायिका जानकी रेलक पटरी जेकाँ जीवन पर्यन्त समानान्तर चलैत छथि, मुदा कहियो, कखनो मीलि ने पबैत छथि । तकर कारण छैक पतिकेँ आदेश–अनुवर्तिनी ‘रोवोट’ नारीक चाहिऐन्हि, सासु–ससुरकेँ पुतहुक पटमासि कएल बहिकिरनीक बेगरता छैन्हि । मुदा पति अपन ‘स्व’–क संग जीवाक आकांक्षिणी छथि । एकटा शीतयुद्धमे जीवन बीति जाइत अछि, रीति जाइत अछि ।
‘लाल किताब’ परामनोविज्ञानपर आधारित रहस्य–रोमाञ्चसँ भड़ल कथा थिक । सेवक प्रसाद यादवजी १८ गतेकेँ अपन कक्षमे एकसरि बैसलि कथा नायिका मित्रपत्नीकेँ अत्यन्त अनुराग पूर्वक एक गोट लाल डायरी भेंट कऽ गेल रहै छथि । मित्रपत्नीकेँ जबर्दस्ती हाथ पकड़ि ओ अपना लग बैसबै छथि–हाथ अकल्पित रुपें सर्द–हेमाल किए लगै छल से ओ बूझि नहि पबैत छथि । मुदा जखन मित्रक मृत्युपर शोकविह्वल भेल नायिका पति बाहरसँ आबिकऽ सेवक प्रसादक मृत्यु सत्रहे गते भऽ गेल होएबाक सूचना दै छथिन्ह तऽ ओ काँपि उठैत छथि ।
मायक सह पाबि गिन्नी पढ़ाइ छोड़ि नृत्यमे प्रशिक्षित भऽ आय दिन नव–नव ‘पब्लिक शो’ करऽ लगलीह । बाप अपन बेटीकेँ ग्लैमर दिशि आकृष्ट देखि चिन्तामग्न रहै छथि, मुदा जिदाहि पत्नीक आगाँ विवश रहै छथि । परिणामतः जखन पता चलल जे गिन्नी व्यसनी, व्यभिचारिणी आ गर्भिणी भऽ गेलि छथि तऽ वातावरण हाक्रोशकऽ उठैत अछि । ताबत बहुत बिलम्ब भऽ गेल रहैत छैक ।
‘जादू’ कथाक नायिका सिम्मी घरपर जा कम्पनीक उत्पाद बेचऽबाली सेल्सगर्ल छलीह, मुदा हुनक मधुरवाणी आ शिष्ट व्यवहारक जादू रेणु आ हुनकर पतिक दिमागपर एना ने चढ़ल जे रेणुक पति हुनका अपन कम्पनीक नीक पदक हेतु अफर दऽ देलथिन्ह ।
परम्परावादी मूल्यक खण्डहरपर ठाढ़ होइत बलुआही पारिवारिक संरचनापर कठोर प्रहार अछि कथा– ‘ आदर्श’ परम्परावादी पति आ सासुकेँ लात मारि घर छोड़ि चलि तऽ अबै छथि अद्र्धआधुनिका शिक्षिका नायिका, मुदा पन्द्रह वर्षक पश्चात् जखन अपन कक्षामे एक गोट भविष्णु युवकक नाम ‘ आदर्श’ सूनि ओ चिहुँकि उठै छथि जेना ककोड़विच्छा अनचोकेमे डंक मारि देने होइक । आदर्शक पिताक नाम छै – अरुण, जिला न्यायाधीश, अर्थात् ओकर पूर्वपति । स्टाफ रुममे आबिकऽ धम्म दऽ बैसि जाइत छथि, मस्तिष्कमे अन्हड़–विहाड़ि नेने । एहि स्थलपर आबि विखण्डनवादी मूल्य हारि जाइत अछि आ संयुक्त परिवारक परम्परावादी मूल्य विजय घोष करैत अछि ।
‘अर्थहीन यात्रा’क नायिका नेहा अपन पति माधवसँ एहि दुआरे असन्तुष्ट रहैत छथि जे ओ महत्वकांक्षाक उन्मादसँ ग्रस्त नहि छथि, पार्टी–क्लवक सौखीन नहि छथि, भौतिक चमक दमकमे विश्वास नहि करैत छथि, नेहाक लेल ‘ गिप्mट’ नहि अनैत छथि आदि । तलकालए ओ जानकीरामसँ विवाह करैत छथि, बेटी तेजिकऽ । फेर ओ जानकी रामकेँ छोड़ि अन्य पुरुष संगे रहए लगैत छथि – पति पत्नीवत्, मुदा अविवाहित । पश्चिमसँ आएल ‘लिविङ्ग टूगेदर’–क चपेटिमे पड़लि नेहा अन्ततः अपनहि लेल निर्णायक कारण पश्चातापक आगिमे धू–धूकऽ जरऽ लगैत छथि । प्रस्तुत कथा सेहो पछबा हवाक विरोध आ पुरवाक समर्थनमे देवाल जेकाँ ठाढ़ अछि ।
नारी मनोविज्ञानक सुन्दर आ यर्थाथवादी विश्लेषण प्रस्तुत करैत कथा ‘व्यर्थक उड़ान’–क नायक कार्यालयक काजसँ जे विराटनगर गेलाह तऽ दू–चारि दिन विलम्ब की भेलैन्हि नायिका ऊनी स्वेटर जेकाँ मोनमे लहराइत भावक रंग–विरंगी लच्छाकेँ ओझरबैत–सोझरबैत जँ दुर्भाग्यसँ वैधव्यक पहाड़ टूटि पड़ल होइन्हि तऽ शेष यात्रा कमलसंग बितएबाक, ओकरा संग हनीमून मनएबाधरिक कल्पनामे डूबि जाइ छथि कि धम्म दऽ पति जूमि जाइत छथिन्ह । ओ पतिकेँ भरि पाँज पजियाकऽ हबोढ़कार भऽ कानऽ लगै छथि ।
‘निष्ठा कि देखाबा’ एक गोट घोर यथार्थवादी मार्मिक कथा अछि । नीमाक पति सोहनक दुनू किडनी सड़ि गेल छैक जकर प्रत्यारोपण डाक्टरक सलाह अनुसार भेल्लोरमे जा करएबाक बदला ओ पतिकेँ जल्दीसँ जल्दी गाम एहि दुआरे लऽ जाइत छथि जे सम्पति सम्बन्धी कागजात सभपर हुनकर हस्ताक्षर लेल जा सकए । पतिकेँ मरबाक चिन्ता नहि, सम्पति डुबबाक चिन्ता बेसी घेरने छैन्हि । मुदा भाग्यक व्यंग्य ई थिक जे अन्तिम साँसधरि पति हुनका पतिपरायणा मानैत छथि ।
‘केहन सजाय’ एक गोट टुग्गरि बालिका चमेलीक कथा अछि । जकरा कोनो सन्तानहीन सम्भ्रान्त दम्पती गोद नेने छल, मुदा जखन ओहि दम्पतीकेँ अपन औरसँ सन्तान जनमि जाइत छैक, चमेली ओहि घरमे नहि, ‘महिला सदन’मे पठा देल जाइत छथि । ओ तऽ धन्य कही संस्थाक नव अध्यक्षा आ पूर्व प्रधानाध्यापिका कामिनी मैडमकेँ जनिक करुणापूर्ण प्रयाससँ ओ रितेशक संग परिणय सूत्रमे बन्हा जीवनक भसिआइत नाओक लेल किनार पाबि लैत छथि ।
मेनकाक कोमल नारी हृदयकेँ हँथोड़ैथि ‘मेनका’ जीवन झँझावातक आघात–प्रतिघातसँ नारी हृदय समुद्रमे उठैत उत्ताल तरङ्गक विक्षोभकारी कथा थिक । मेनका परित्यक्ता थिकीह । हुनक पति चन्द्रभूषण सुन्दरी युवती नीनाक मोहपाशमे ओझरा हुनकर परित्यागकऽ देने छलथिन । नारी–अहंपर चोट लगैत अछि । मेनका प्राध्यापन सेवामे संलग्न छथि, जतऽ हिनक सम्पर्क विवाहित सहकर्मी राजीव सरसँ होइत छैन्हि । राजीव सरक व्यक्तित्वक चुम्बकीय प्रभावमे मेनकाक व्यक्तित्व लौहकण जेकाँ आकृष्ट होइत अछि, मुदा जखन ओ सोचै छथि जे राजीवपत्नी आरतीक हेतु हुनक प्रणय–लीला नीना–कर्मसँ कम हिंसक किंवा घृणित नहि होएत तऽ ओ अपनामे सिमटिकऽ कठोर लौहपिण्ड बनि जाइत छथि, जे चुम्बककेँ घीचि सकैत अछि, मुदा चुम्बकसँ घिचा नहि सकैत अछि ।
कथाकार सुजीत कुमार झाक कथाक विषय– चयन, बनाबट आ बुनाबट, भाषा शैली आ कलात्मक उच्चतामे उत्तरोत्तर प्रौढ़ता अबैत जाएत आ ओ मैथिली कथाक हेतु एहिना विषय आ शिल्पक नव–नव क्षितिजक सन्धान करैत नव प्रतिमानक स्थापनामे सफल होएताह, हमर विश्वास अछि ।

पृथ्‍वीपुत्र -शि‍वकुमार झा ‘टि‍ल्‍लू’



अति‍क्रमण सबल व्‍यक्‍ति‍ वा समूहक अमानुषि‍क प्रवृति‍ रहल अछि‍। वैज्ञानि‍क मान्‍यताक अनुसारे सेहो अस्‍ति‍त्‍वक लेल संघर्ष आ ओइ संघर्षमे योग्‍यतमक उत्तरजीवि‍ता कालक्रममे होइ रहल अछि‍। जखन सम्‍पूर्ण सृष्‍टि‍मे बौद्धि‍क चेतनासँ युक्‍त मानव अस्‍ति‍त्‍वक लेल बेवस्‍थाक वि‍रूद्ध संघर्ष केवल तखन मि‍थि‍लाक माटि‍-पानि‍ कोना अछोप रहए।

समाजक ऊँच-नीच आ जय-पराजयक वृत्ति‍-चि‍त्रक रूपेँ ललि‍तेश मि‍श्र ललि‍त जीक उपन्‍यास पृथ्‍वी-पुत्र पुस्‍तकाकार सन् 1965 ई.मे प्रकाशि‍त भेल। जेना की आमुखमे स्‍वयं उपन्‍यासकार लि‍खने छथि‍ जे ई उपन्‍यास हंसराज जीक तगेदामे लि‍खल गेल, तँए ऐमे रचनाकारक सम्‍पूर्ण आत्‍मीयता देखब भ्रामक सि‍द्ध हएत। हमरा सबहक संग ई दुर्भाग्‍य रहल जे आत्‍मि‍क भाषामे रचनाकार अपन आशुत्‍वसँ बेशी तगेदाक कारणेँ रचना करैत रहलाहेँ।



रचनाक कारण जे हुअनि‍ मुदा एतबा तँ अवश्‍य प्रासांगि‍क आ मैथि‍ली साहि‍त्‍यक लेल वरदान मानल जाए जे पृथ्‍वीपुत्र उपन्‍यासक माध्‍यमसँ उपन्‍यसकार मि‍थि‍लाक माटि‍-पानि‍मे समाहि‍त सभसँ अंति‍म वर्गक समाज धरि‍ पहुँचि‍ गेल छथि‍ जे सोझ मानसि‍क प्रवृत्ति‍क द्योतक अछि‍। ओना ललि‍तक कथा “रमजानी” सेहो समाजक दलि‍त वा पछड़ल लोकक वृत्ति‍चि‍त्र थि‍क। स्‍वाभावि‍के छैक रचनाकार प्रशासनि‍क सेवामे रहल छथि‍,, समाजक ऊँच-नीच कृत्‍य-कुकृत्‍य आ वर्गक वि‍षमताक दर्शन बरोबरि‍ होइत हेतनि‍ तँए अपन दैनन्‍दि‍नीक अनुभवकेँ कल्‍पनाक सरोवरि‍मे बोरि‍ यथार्थवादी रूप देबाक प्रयास कएलनि‍ जइमे अंशत: सफल सेहो भेलाह।



उपन्‍यासक गाथा व्‍यावसायि‍क चलचि‍त्र जकाँ मध्‍यसँ प्रारंभ होइत अछि‍। घटनाक गर्त्तमे गेलासँ ई उपन्‍यास दलि‍त समाजमे सामन्‍तवादी शोषणक वि‍रूद्ध वर्ग संघर्षक चलचि‍त्र थि‍क।

जंगी पासवानक पुत्र वि‍सेखी पासवान कर्मसँ वैड-कैरेक्‍टरक चोर अछि‍। जकरा अपन दुनू पुत्र गेनालाल आ सरूपसँ बेशी अपन शि‍ष्‍य छतरपर वि‍श्वास छैक। गेनालाल जेकरा गेनमा कहल जाइछ ओकर चरि‍त्र भकलोल-मनुख मुदा कर्मशील मजूरक छैक। सरूप ऐ उपन्‍यासक नायक थि‍क। जकरा कतौ उपन्‍यासकार दलि‍त समाजक क्रांति‍-वीर वनएबाक प्रयास करैत छथि‍ तँ कतौ अपन बहि‍न बि‍जलीक कल्‍पनाथ मि‍श्र उर्फ कलपू मि‍श्रक संग अनैति‍क सि‍नेहक प्रोत्‍साहक वा साक्षी। सरूपक चि‍त्रक ई अर्न्‍तद्वन्‍द्व दलि‍त समाजक जीवन शैलीमे वि‍राधाभास मानल जाए। गेना लालक अर्द्धागि‍नी बेनी अपन पति‍क मृत्‍युक पश्चात् पारि‍वारि‍क सहमति‍ आ उत्तरदायि‍त्‍वक कारणे अपन देओर सरूपसँ बि‍आह कऽ लैत अछि‍। उपन्‍यास गाथाक वि‍चि‍त्र पात्र छथि‍ बि‍जुली वा बि‍जो बि‍जुरी आ बि‍जुरि‍या सन छद्म नामसँ वि‍भूषि‍त बि‍सेखी पासवानक कन्‍या “बि‍जली”। कौमार्यक आंगनमे प्रवेश करि‍ते बि‍जलीकेँ गामक पंडि‍त कुलमे जनमल कल्‍पनाथ मि‍श्रसँ प्रेम भऽ जाइत अछि‍। कलपू मि‍सर वि‍वाहि‍त छथि‍ मुदा पहि‍ल प्रसव पीड़ाक क्रममे हि‍नक कनि‍याँक देहान्‍त भऽ गेलनि‍। ऐ अनर्गल आ ि‍नष्‍कर्ष रहि‍त प्रेमक आभास दलि‍त समाजकेँ लागि‍ जाइत अछि‍। फलत: रेलवेमे पेटमेन हीरालालसँ बि‍जलीक बि‍आह कऽ देल गेल। रीति‍-प्रीति‍ आरंभे कालसँ साहि‍त्‍यक महत्‍वपूर्ण बि‍न्‍दु रहल छैक। ओइ मार्गदर्शनपर आगाँ बढ़ैत ललि‍त जी उपन्‍यासमे आकर्षणक सोमरस घोरबाक प्रयास करैत ऐ वि‍चि‍त्र पात्राकेँ ऐमे समाहि‍त कएलनि‍। दू-तीन बेरि‍ पेटमेन हीरा लालक सानि‍ध्‍यसँ बि‍जली पड़ा कऽ गाम आबि‍ गेलीह। मान-मनोबलक बाद फेर पति‍क क्‍वाटरमे गयलाक बाद कोयला सन धुरधुर घऽर आ बऽर नीक नै लगलनि‍। हीरा लालकेँ बि‍जलीक चरि‍त्रक वास्‍तवि‍कताक भान भऽ जाइत अछि‍। पुरुष सभ कि‍छु बर्दास्‍त कऽ सकैत अछि‍ मुदा अपन दाराकेँ दोसर पुरुषक सन आत्‍मि‍क वा दैहि‍क वरण पुरुषक लेल घोंटव असंभव। बि‍जलीक प्रति‍ हीरा लालक व्‍यवहार कर्कश भऽ जाइत अछि‍।



अंति‍म परि‍णति‍ भेल जे बि‍जली सभ दि‍नक लेल नैहर आबि‍ गेली। हीरा लाल पुनि‍ आएल मुदा ओकरा चरि‍त्रपर खलनायि‍का बि‍जली लांछना लगेबाक लेल सरुपकेँ उत्‍साहि‍त केलक। गामक मानि‍जन अर्थात् जति‍या राजा काी दासक अंति‍म ि‍नर्णय भेल जे बि‍जली आब हीरा लाल संगे नै जेतीह। ओना समाजक सभ पंच एकमत छलाह जे बि‍जलीक पुर्नवि‍वाह कराओल जाए, मुदा जखन रचनाकार मात्र उपन्‍यासक आकर्षक लेल ऐ चरि‍त्रक ि‍नर्माण कएने छथि‍ तँ क्रांति‍क आश असंभव। कल्‍पनाथ मि‍श्र आ बि‍जलीक सि‍नेह पत्रहीन नग्‍न गाछ जकाँ मानल जाए जकर अस्‍ति‍त्‍व नै। एक दि‍स जखन सरूप पुछैत अछि‍ बि‍जलीसँ-

“पाहुन मोन पड़लौ की....?” तँ बि‍जलीक उत्तर दार्शनि‍क जकाँ भेटल तँ दोसर दि‍स बि‍जली कलपू मि‍सर द्वारा दोहरि‍ मोड़ि‍ कऽ देबए काल बलजोरी शब्‍द सुनि‍ बजैत अछि‍- तोरा संग कुश्‍तम पटकममे डाँड़ तँ नै हएत हमरा....।

ई सि‍नेह कोन तरहक मानल जाए ई ि‍नर्णए करब सर्वथा असंभव।



उपन्‍यासगाथामे कथाक्रमानुसारे वि‍कराल वर्ग संघर्ष देखार होइत अछि‍। सर्वे एलाक बाद गरीबक जमीन कागतपर तँ आपि‍स होइत अछि‍ मुदा जंग बहादुर सि‍ंह सन जमीन्‍दार दुसाध आ मुसहर समाजकेँ जमीन देबाक लेल तैयार नै अछि‍। वर्ग संघर्ष करबाक लेल सरूप उद्यत भेल। सरूपक दलमे जजाति‍ कटबाक लेल गेनालाल सन माटि‍क पूत मात्र छल। जंग बहादुरक हँसेरीदल लोहा सि‍ंहक नेतृत्‍वमे सरूपपर हमला कऽ देलक। अनुजकेँ वचेबाक क्रममे गेनमा मारल गेल। ऐ वर्ग संघर्षक अंत औचि‍त्‍वहीन लगैत अछि‍। सन् 1965 ई.मे भारत आजाद भऽ गेल छल। तखन दलि‍त समाजक एकटा माटि‍क लाल सामन्‍तवादी तत्‍वक आगाँ लुप्‍त भऽ गेल आ जंगबहादुर सन सामन्‍तीक ओइठाम पुलि‍स पहुँचल नै हएत...। ई अत्‍यन्‍त हास्‍यास्‍पद लगैत अछि‍। जौं ऐ तरहक घटना भेलो हएत तैयो उपन्‍यासकारकेँ ऐमे क्रांति‍ अनबाक प्रयास करबाक छलनि‍। साम्‍यवादी लेखनीसँ ि‍नकसल उपन्‍यासक अंश अत्‍यन्‍त ि‍नर्बल मानल जाए।



ऐ घटनासँ पूर्व बि‍जलीक चरि‍त्रपर आधात दुर्योधन सि‍ंह सन सि‍पाही करैत अछि‍। ओकरा सरूप काटि‍ दैत अछि‍। पुत्रकेँ जेहलसँ बचएबाक लेल बि‍सेखी सभ दोख अपना ऊपर लऽ जहल चलि‍ जाइत अछि‍ जइठाम संग्रहणी सन बेमारीसँ ओकर मृत्‍यु भऽ गेल।



बिसेखीक चरि‍त्रक काल-क्रमानुसार परि‍वर्त्तन उपन्‍यासक सबल पक्ष मानल जाए। पहि‍ने जखन चोर छल तँ ओकरा कि‍छु नै भेल आ जखन कि‍छु नै केलक तँ पुत्रमोह आ पारि‍वारि‍क मर्यादाक कारणेँ सजा भेटल। बी.सी. कैरेक्‍टरक चोरसँ मुक्‍ति‍ पाबए लेल कलक्‍टरक आगाँ सप्‍पत खेने छल। ओइ सप्‍पत खेबामे घुरन दुसाध, मंडर पाण्‍डे, खख्‍खन जट्ट, रौदी खलीफा आ बुच्‍ची झा सन चोर सेहो छल। उपन्‍यासकार द्वारा चोरक नाम चयन करबामे ई स्‍पष्‍ट भऽ गेल चोरक कोनो जाति‍ नै होइत छैक, समाजक अग्र आसन बैसैबला लोककेँ सेहो कुकर्मी समाजमे स्‍थान छन्‍हि‍। ई उपन्‍यासकारक समन्‍वयवादी सोच मानल जाए।



आब बि‍सेखीक परि‍वारमे पुरुष पात्रक रूपमे बचैत अछि‍- सरूप। सरूपकेँ ललि‍त पृथ्‍वीपुत्र बनेबाक कोनो अबसरि‍ नै छोड़ैत छथि‍। ऐ उपन्‍यासक ओ वास्‍तवि‍क नायक अछि‍। अपन पि‍ताकेँ चोरि‍ नै करबाक सप्‍पत खाइत काल लड़खड़ाइत देखि‍ ओ क्रोधि‍त भऽ जाइत अछि‍। ओकरा चोरि‍ करब कथमपि‍ पसि‍न्न नै। जंगबहादुरकेँ ललकारि‍ जजाति‍ काटि‍ लेबाक उपक्रममे शोषि‍त समाजक ओ “क्रांति‍वीर” बनि‍ जेबाक लेल उद्यत अछि‍। बहि‍नक आँचरपर दुर्योधन सि‍ंह सन सि‍पाहीक हाथ देखि‍ ओकर हत्‍या कऽ केलक। सरूप कर्मवादी सत्‍पुरुष अछि‍। जाधरि‍ बेनीकेँ सरूपक माय एकर अंक नै लगलन्‍हि‍ ताधरि‍ ओइ भाउजमे सरूप मात्र श्रद्धापूर्वक मातृत्‍व रूप देखलक। ऐ दलि‍त समाजक आदरणीय पात्रकेँ ललि‍त एकठाम कलंकी चरि‍त्र बना देलनि‍। कल्‍पनाथ मि‍सरक अनर्गल सि‍नेहसँ बँधलि‍ बि‍जलीकेँ सरूप आत्‍मसात केना केलक। एकठाम भाउजि‍क वि‍षक्‍त हँसी आ व्‍यंग्‍यवाणसँ आकुल भऽ सरूप बि‍जलीपर क्रोध तँ करैत अछि‍ मुदा सम्‍पूर्ण उपन्‍यासमे कलपू मि‍सरक प्रसंगमे पृथ्‍वीपुत्र चुप्‍प रहि‍ गेल। सि‍नेह कोनो अपराध नै, कि‍यो केकरोसँ कऽ सकैत अछि‍, मुदा ऐ सि‍नेहक कोनो नि‍ष्‍कर्ष नै। सरूप सन सोझ मानसि‍कताक पुरुष ऐ अनर्गल सि‍नेहकेँ केना समर्थन देलक। बि‍जली ठाम-ठाम औचि‍त्‍यहीन सि‍नेही जकाँ बेनीसँ अपन प्रेमकेँ सबलता प्रदान करबाक लेल नि‍रर्थक संवाद करैत अछि‍। ऐसँ इहए प्रमाणि‍त होइछ जे ऐ नारीकेँ अपन माता-पि‍ता आ भाइक मर्यादाक कोनो बोध नै। तखन एकठाम महान दार्शनि‍क जकाँ बि‍जलीकेँ दृष्‍टि‍ पटलपर राखब उपन्‍यासकारक अदूरदर्शिता छन्‍हि‍। जखन कलपू मि‍सर अपन माइक राखल अभरन बि‍जलीकेँ पहि‍रबाक अनुरोध करैत अछि‍ तँ ओ बजैत अछि‍ जे-

“ओ गहना पहि‍रब तँ हम जरि‍ जाएब। जखन बि‍जली एतेक बुद्धि‍मती महि‍ला अछि‍ तँ अपन मान-मर्यादा अपन बाप-पुरूखाक द्वारा बनाओल बेवस्‍था अर्थात् पाणि‍ग्रहण संस्‍कार द्वारा वरणेय हीरालालकेँ कि‍अए छोड़ि‍ देलक। ई नि‍श्चि‍त रूपे जातीय संकीर्णतासँ बान्‍हल उपन्‍यासकारक व्‍यक्‍ति‍गत अनर्गल सोच छन्‍हि‍।”



जौं ऐ उपन्‍यासमे वर्ग-संघर्ष देखाएब यथार्थबोध मानल जाए तैयो ऐमे कमजोरी अछि‍। वर्ग संघर्षमे हत्‍या आ ओइ हत्‍याक बाद केनि‍हारकेँ कोनो सजा नै, अत्‍यन्‍त ि‍नर्बल पक्ष थि‍क। कलपू मि‍सर आ बि‍जलीक ि‍सनेहमे बि‍सेखीक परि‍वारक कोनो तीक्ष्‍ण अवरोध नै देखाएब दलि‍त समाजक चेतनापर आधात मानल जाए। समाजक कात लागल वर्ग सवर्ण आ सामन्‍तवादी लग अपन घरक गणि‍काकेँ परसि‍ सकैत अछि‍... सर्वथा असंभव। दलि‍त समाजक नारीसँ सवर्ण समाजक पुरुष बेबाक गप्‍प तखने कऽ सकैत छथि‍ जखन हुनक वि‍चार आ चरि‍त्र वि‍श्वसनीय हुअए। भऽ सकैत अछि‍ बि‍जली सन कोनो वि‍शेष नारी एहेन मानसि‍कता रखैत छथि‍ वा होथि‍ मुदा परि‍वारक आन लोक ऐ तरहक िसनेहकेँ कथमपि‍ नै स्‍वीकार करत। जौं एकर अंत दुनूक बि‍आह देखा कऽ कएल जइतए तँ ई उपन्‍यास अवश्‍य दूरगामी होइतए। अंर्तद्वन्‍द्वसँ भरल समाजसँ ललि‍त कोनो अलग नै छथि‍ तँए सभ सकारात्‍मकताक आश राखब उचि‍त नै।



एतेक तँ नि‍श्चि‍त जे पृथ्‍वीपुत्र शि‍ल्‍पमे बड़ नीक स्‍थान रखैत अछि‍। वि‍म्‍ब कोनो वि‍शेष नै मुदा समाजक अंति‍म वर्ग धरि‍ पहुँचल तँए व्‍यापक मानल जाए। जि‍तपुर मौजाक टोल बबुरबन्नाक गाथा, मुदा टोलमे खएरक बोन बबूरसँ बेसी मुदा नाओं बबुरबन्ना। वास्‍तवि‍कता अछि‍ सामर्थ्‍यवान लोक कम रहि‍तौ पूजनीय होइत छथि‍, उपन्‍यासकारक दृष्‍टि‍कोण सम्‍यक् आ समन्‍वयवादी ऐठाम तँ अवश्‍य लगैत अछि‍। भाषा ओ शैली गति‍मान आ खाँटी ग्रामीण आंचलि‍क मैथि‍लीमे लि‍खल गेल जे ललि‍तक योग्‍यताक प्रत्‍यक्ष प्रमाण थि‍‍क। आाचार्य रमानाथ झाक ऐ मतसँ हम सहमति‍ नै रखैत छी जे हास्‍य रसक अभावमे पृथ्‍वीपुत्र झुझुआन लगैत अछि‍। जखन स्‍थि‍ति‍ कनबाक हुअए तँ हास्‍य समागम संमव नै ऐ उपन्‍यासमे हास्‍य रसक समागम करब ि‍नरर्थक होइतए।



ऐ पोथीक सभसँ सकारात्‍मक पक्ष थि‍क समाजक यथार्थवादी बेवस्‍थाक मौलि‍क चि‍त्रण। जाति‍-पाति‍मे टुटल समाजक सत्‍यकेँ स्‍पष्‍ट देखबैत उपन्‍यासकार एकठाम एहेन साहस कऽ देलनि‍ जे संभवत: सबल समाजमे जनमल दोसर साहि‍त्‍यकारसँ अवश्‍य असंभव होइतए। पृथ्‍वीपुत्र पलायनवादक वि‍रोध करैत अछि‍। जमीन्‍दार कृषि‍कार्य स्‍वयं नै करताह, मुदा जमीनक सकल उत्‍पाद आ स्‍वामि‍त्‍व हि‍नके भेटनि‍, ऐ कटु सत्‍यसँ ललि‍त वि‍लग छथि‍। हि‍नक लेखनीसँ क्रांति‍क सुगंध पसरल जे जमीन ओकरे हएत जे एकरा जोतए। वास्‍तवि‍कता सेहो छैक साम्‍यवादी बेवस्‍थामे कर्म पुरुषकेँ कर्मक फल अवश्‍य भेटबाक चाही। जे संतान माए-बापक प्रति‍ अपन कर्त्तव्‍य पालन नै करए ओकरा मातृ-पि‍‍तृ सि‍नेह मंगबाक कोनो अधि‍कार नै। अपन पसेनासँ माटि‍ कोरि‍ जे मजूर धरतीकेँ बाँझ होएबासँ बचाबथि‍ हुनके ऐ माटि‍क स्‍वामि‍त्‍व भेटबाक चाही।

जौं ऐ प्रकारक सोचकेँ सबलता प्रदान कएल जाए तँ कृषि‍ प्रधान देशमे अपन मौलि‍क कर्मसँ लोक वि‍मुख भऽ पड़ाइन नै करताह। प्राकृति‍क संतुलनकेँ जीवन्‍त राखब सभक मौलि‍क कर्त्तव्‍य थि‍क। ऐ तरहक साम्‍यवादी दृष्‍टि‍कोण मैथि‍ली साहि‍त्‍यकेँ अवश्‍य नव दि‍शा देलक। ि‍नष्‍कर्षत: पृथ्‍वीपुत्र कि‍छु अर्न्‍तद्वन्‍द्वसँ भरल रहलाक बादो मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे नव चेतना भरबाक लेल अनुगामी उपन्‍यास मानल जाए।

जीवन-मरण :: दुर्गानन्‍द मण्‍डल




जीवन-मरण उपन्‍यास, एकटा लब्‍ध प्रति‍ष्‍ठि‍त उपन्‍यासकार श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल जीक अनुपम कृति‍ अइ। हुनक लि‍खल अनेको उपन्‍यास, जे एक-सँ-बढ़ि‍-कऽ–एक अछि‍। जइमे उपन्‍यासकार द्वारा उठाओल गेल वि‍भि‍न्न प्रकारक सामाजि‍क रूढ़ि‍वादि‍ताक ज्‍वलंत उदाहरण प्रस्‍तुत कएल गेल अछि‍। मात्र प्रस्‍तुति‍करण धरि‍ कथा नै अपि‍तु ओकर सामाधान तकबामे सेहो उपन्‍यासकार सतत् सफल रहला अछि‍।



प्रस्‍तुत उपन्‍यासमे मनुखक जे अपन जि‍नगी छै, ओकर जे अपन समाज छै, समाजक प्रति‍ व्‍यक्‍ति‍ वि‍शेषक उत्तरदायि‍त्व होइत अछि‍ से, आ नवका पीढ़ी जे पश्चि‍मी सभ्‍यताक असभ्‍यतासँ ग्रसि‍त भऽ असभ्‍य बनि‍ गेला अछि‍ तइपर उपन्‍यासक आरंम्‍भमे एकटा कसगर चोट देलनि‍ अछि‍।



देवनन्‍दन जे बेवसायसँ डाॅक्‍टर छथि‍, पत्नी शीला द्वारा जनलनि‍ जे पि‍ताक मृत्‍यु भऽ गेल तैयो घबरेला नै सोचलनि‍ पि‍ताक अपन समाज छन्‍हि‍ जइ बीच ओ अपन जि‍नगी बि‍तौलनि‍। तँए उचि‍त हएत जे हुनका अपना समाजमे पहुँचा दि‍यनि‍ आ मृत्‍युक सभ कर्म सामाजेक अनुकूल बढ़ि‍यासँ करी ि‍नर्णए लेलनि‍।



मोबाइलसँ नम्‍बर नि‍कालि‍, टि‍पि‍ अपन जेठ बेटा दयानन्‍दकेँ जनौलनि‍-

“बच्‍चा, बाबू मरि‍ गेलाह, तँए दुनू भाँइ गाम आऊ।”

मुदा वाह रे पश्चि‍मी सभ्‍यता! देखू हमरा लोकनि‍केँ केना ग्रसि‍त केने अछि‍, दयानन्‍द बाजि‍ उठलाह-

“बाबू, ऐ लेल गाम कि‍अए जाएब? आब तँ बि‍जलीबला शबदाहमे आसानीसँ काज सम्‍पन्न भऽ जाइत अछि‍”

दयानन्‍दक वि‍चार सुनि‍ देवनन्‍दन कहलकनि‍-

“बच्‍चा, सभ जीव-जन्‍तुकेँ अपन-अपन जि‍नगी होइत अछि‍। आ जे जेहने जि‍नगीमे जीबैत अछि‍ ओकरा लेल वएह जि‍नगी आनन्‍ददायक होइत अछि‍। जेना, चीनी, मि‍रचाइ आ करैला तीनूक तीन तरहक स्‍वाद, मीठ, कड़ू आ तीत होइए। मुदा की मरि‍चाइक कीड़ा आबि‍ करैलाक कीड़ा चीनीमे जीब सकत? कथमपि‍ नै। जखन की ओ तँ अधलाहसँ नीकमे गेल।”

पि‍ताक बात सुनि‍ दयानन्‍दकेँ आश्चर्य भेलनि‍, मुदा देवनन्‍दनक अनुसारे ऐमे आश्चर्य कोन। कि‍एक तँ गामक दोसर नाम समाज सेहो छि‍ऐ। जे शहर-बाजारमे नै अछि‍। ऐठाम उपन्‍यासकार समाजकेँ मानव नै मानवक जे मूल सभ्‍यता छै ओकरा एकैसम सदीक नव पीढ़ी लेल एकटा मि‍शाल देखौलनि‍ अछि‍। जे वर्त्तमानमे आजुक पीढ़ी समाजकेँ नै बूझि‍ कि‍दैन बुझै छथि‍न, ओ बि‍सरि‍ गेलाह जे समाज की थि‍क, ओकर मान-मर्यादा कि‍ होइ छै, सामाजि‍क बन्‍धन की छी, ओकर कानून-कायदा की छै। आजूक वर्त्तमान आधुनि‍क समाज जइमे सभ अपने पाछू बेहाल रहैए। ओ केकर सुख-दुख, जीवन-मरणकेँ सुनत। ओ तँ भरि‍पेट नीक अन्न-तीमन खाएब मात्र जनैए। मुदा तइसँ कि‍ मन थोड़े अस्‍थि‍र भऽ सकैए। जाधरि‍ आत्‍माक संतुष्‍टि‍ नै हेतैक। बुझेबामे केत्तौ कोनो प्रकारक कि‍न्‍तु-परन्‍तु नै राखि‍, मनुक्‍ख एकटा सामाजि‍क प्राणी होइत अछि‍, ओकर अपन एकटा समाज छै, जइमे सभ एक-दोसराक सुखसँ सुखी आ दुखसँ दुखी होइ छथि‍, देखेबामे सफल भेलाह। वर्त्तमानमे जन्‍म जरूर जाति‍-समाजमे होइ छै, मुदा लगले आँखि‍-पाँखि‍ भेने हमरालोकनि‍ अपन मूल समाजकेँ भूलि‍-बि‍सरि‍ आन समाजमे मि‍लि‍ हूलि‍-माि‍ल उठेने रहै छी। केतेक दुखक बात भेल। कला आ संस्‍कृितसँ दूर तँ स्‍वभावि‍क रूपे तँ छि‍हे ओना हम सभ कतेको नोर मंचपर कि‍एक ने बहा ली।

दोसर दि‍स उपन्‍यासकार मि‍थि‍लानि‍क एकटा गजब चि‍त्र प्रस्‍तुत केलनि‍ अछि‍। मैथि‍ल नारि‍ अपन पति‍केँ परमेश्वर मानै छथि‍। जि‍नकेपर हुनका भरि‍ मांग सेनुर आ भरि‍ हाथ चुड़ी रहैत छन्‍हि‍। अपना पति‍क प्रति‍ कतेक नि‍ष्‍ठा रखै छथि‍ स्‍पष्‍ट अछि‍-

“अदौसँ सावि‍त्री, अनुसुर्इया आदि‍ ऐ वि‍षयमे जगवि‍दि‍त छथि‍। देवनंदनक माए सुभद्रा जि‍नका चेहरापर सोग नै अपि‍तु सि‍नेह उमरि‍ रहल छन्‍हि‍। मोने-मन आनंदि‍त जे, जहि‍ना हाथ पकड़लनि‍ तहि‍ना पार-घाट लगा देलनि‍। भड़ल-पुड़ल फुलवाड़ी अछि‍ कतौ हेराएल रहब।”

मि‍थि‍लानि‍क महान वि‍चार आ ति‍यागक स्‍तरकेँ कतेक सुक्ष्‍म रूपेँ उपन्‍यासकार रखलनि‍ अछि‍। ति‍यागक मूर्तिक रूपमे ऐ तरहेँ स्‍पष्‍ट अछि‍ जे पति‍केँ मुइला बादो हर्ष छन्‍हि‍ जे हमरा अछेत मरलाह से नीके भेलनि‍। अन्‍यथा मोनमे लागल रहैत जे हुनक शेष दि‍न केहेन...।



सभ पौस-प्राणी गुनधुनमे पड़ल गाम चलल जा रहल छथि‍। देवनंदन सोचथि‍, से नै तँ आइ समाजक काज पड़त। समाजक की महत छै। मनुक्‍ख कोन तरहेँ सामाजि‍क प्राणी होइए, समाजक बीच बाबूजी केना जीबथि‍, कतेक परि‍वारसँ दोस्‍ती छलनि‍ आ कतेकसँ दुश्‍मनी, गुनधुनमे पड़ल माएसँ पुछलखि‍न-

“माए, कते परि‍वारसँ बाबूजी केँ दोस्‍ती छेलनि‍।” तखन माएकेँ मोन पड़लनि‍ ओ समाज, जतए सभ मि‍लि कुमरम, बि‍आह, सामा, घरक गोसाँइसँ लऽ कऽ दुर्गा स्‍थानक गीत मोन पड़ए लगलनि‍। देवनंदनक बात सुनि‍ माए-सुभद्रा बजलीह-

“छिया, छिया। मिथिलाक समाज छी। ऐ समाजमे मुर्दा जरबैले, केकरो घरक आँगि मिझबैले, केकरो-साँप-ताप कटने रहल आकि‍ गाछ-ताछपर सँ खसलापर केकरो कियो कहै नै छै। ई सामाजिक काज छी। तँए, अपन काज बूझि सभ अपने तैयार भऽ जाइत अछि।”

ऐठाम उपन्‍यासकार मि‍थि‍ला आ मैथि‍ल समाजक एकटा वि‍लक्षण उदाहरण द’ अपन सभ्‍यता आ संस्‍कृति‍क परिचए द’ समाजक समुद्री रूपकेँ दर्शन करौलनि‍ अछि‍। पूर्वोमे बाढ़ि एलापर करि‍याकाका आ देवनंदन द्वारा उठाओल गेल कदम आबैबला समाजक लेल एकटा आदर्श उपस्‍थि‍त केलनि‍ अछि‍। आखि‍र दि‍न बि‍सेक बाद सभ घूमि‍ अपन-अपन घर आएल रहथि‍। ओही समाजक एकटा अभि‍न्न अंग देवनंदनक पि‍ता जे समाजक प्रति‍ष्‍ठि‍त व्‍यक्‍ति‍‍ रघुनंदनक लहाश गाम पहुँचते आगू-आगू गाड़ी आ पाछू करमान लागल लोक दि‍यादीमे सबहक चुल्हि‍ मि‍झाएल।

दोसर दि‍स उपन्‍यासकार जे मर्द-पुरुखक क्रि‍या-कलाप, स्‍त्रीगण सबहक गप-सप तँ एक दि‍स 111 बर्खक रधि‍या दादी गाइक गर्दनि‍ जकाँ लटकल चमरी, बाइस गाहीक बर्ख भेल, पूर्वमे रधुनंदनकेँ कतेको दि‍न दूध पि‍औने रहथि‍न, उपस्‍थि‍त क’ सामाजि‍क आ मातृत्‍व प्रेमक ज्‍वलंत उदाहरण प्रस्‍तुत केलनि‍। जि‍नका दादी जूरशीतलमे अछि‍ंजलसँ असि‍रवाद द’ फगुूआमे रँगो खेलाइत छलीह। से सप्‍तरंगी समाजक इंद्रधनुषी संबंधक एकटा वि‍लक्षण उदाहरण अछि‍।

श्राद्ध-बि‍‍आह समाजेक काज होइते अछि‍। समाज तँ समाजे होइए तहूमे ओहेन समाज जइठाम रघुनंदनकेँ उत्तरे-दछि‍ने सुता उज्जर दप-दप वत्रसँ छाँपि‍ सि‍रहानामे धूप-गुगुल जरैत अछि‍। तइ बीच बचनू, चंचन, झोली, बौकू, बतहू देहपर तौनी आ डाँरमे धोती पहि‍रने कान्‍हपर कुरहरि‍ नेने संग-मि‍लि‍ कानी-गाबी आ हँसी ऐ सँ पैघ सुख केकरा कहबै? जइ सुखक लेल लोक नीच-सँ-नीच काज करैए मुदा पाबि‍ नै पबैए। ऐठाम उपन्‍यासकार भौति‍क सुखकेँ सुख नै मानि‍ आत्‍मि‍क सुख, अतिइन्‍द्रि‍य सुख जइसँ आत्‍मि‍क शान्‍ति‍ भेटैत छै, ओ वास्‍तवि‍क सुख थि‍क। तँए मात्र दैहि‍क सुखकेँ क्षणि‍क आ आत्‍मि‍क सुखकेँ वास्‍तवि‍क बता अपनाकेँ आध्‍यात्‍मि‍क हेबाक सेहो परि‍चय द’ समाजोकेँ आध्‍यात्‍मि‍क बातपर चि‍न्‍तन-मनन अनुकरणक प्रेरणा देलनि‍ अछि‍।



समाजक समस्‍त काजक जि‍म्मा करि‍याकाकापर छन्‍हि‍। समाजक ऊँच-नीच, छोट-पैघ सभ जाति‍क लोक, जाति‍-परजाति‍ सभ मि‍लि‍ रघुकाकाक काजमे पूर्ण सहयोग देबए चाहै छथि‍ चाहे ओ ि‍कर्तनि‍या हुअए आकि‍ भजनि‍या, लेलहा हुअए आकि‍ बौका, सुन्‍दर काका होथि‍ वा छीतन भाय दुनू परानी जे जाति‍क डोम छथि‍। जे पूर्वमे गुनापर रघुकाकाकेँ पाँचटा गीत सुनौने छलाह। जीवि‍ते छथि‍ छीतन भाय। छि‍तनो भायकेँ बरि‍यातीमे हकार देब नै बि‍सरब, समाजक जाति‍-पाति‍क कुप्रर्थासँ नि‍कालि‍ मनुक्‍खक जे एकटा अपन समाज होइछ, मनुक्‍खक जे एकटा जाति‍ होइए जइमे सभ वर्ग आ वर्णक लोक रहैए, वास्‍तवमे ओ ने समाज छी। ओइ जाति‍गत भावनासँ ग्रसि‍त समाजकेँ ऊपर मुँहेँ उठा स्‍वच्‍छ वातावरणमे शुद्ध साँस लेबाक बाट देखौलनि‍ हेन। जहि‍ना हवा अनेक गैसक मि‍श्रन छी तहि‍ना तँ समाजो अनेक वर्ग आ वर्णक मि‍श्रण छी। जौं से नै तँ कि‍यो एक-दोसरक बि‍ना जीब सकत? संभव नै, मुदा से बुझैत लोक अपने स्‍वार्थमे आन्‍हर भेल रहैए। आ फल्‍लंमा डोम तँ फल्‍लांमा दुसाध ई संस्‍कार नैन्‍हि‍येटा सँ माए-बाप देबामे पाछू नै रहै छथि‍। आखि‍र एकटा प्रश्न हमरा तरफसँ, अहाँ प्रबुध समाजक लेल अछि‍, जौं समाजमे सभ जाति‍ नै रहत तँ की समाजि‍क जीवन चलि‍ सकत यदि‍ हँ तँ केना? जौं नै तँ फेर एहेन भावना कि‍एक? डोमसँ हम छूबल जाएब, मुदा ओकर बनाओल चीज-बौस गौसाँइ-पि‍तरपर चढ़त तँ की इष्‍ट-देव नै छुऔत। जौं छुआएत तँ सनातनि‍ये सँ कि‍एक ने..... ? आ जौं देव-पि‍तर नै छुआएत तँ हमरा-अहाँकेँ छुएबाक कोन आधार बनल अछि‍??



झाँपले परदामे उपन्‍यासकार जाति‍-प्रथाकेँ तोड़ि‍ एकटा आदर्शवादी समाज स्‍थापनापर जोर देलनि‍। जहि‍ना फुलवाड़ीमे जुही, चमेली फूल रहैत अछि‍ तहि‍ना गेना गुलाब सेहो। अधला नै तँ नीकक महत्ते की? तीत नै तँ मीठक स्‍वादे की? कारी नै तँ गोरे की? तहि‍ना तँ समाजो एकटा फुलवाड़ी होइ छै। जइमे सभ तरहक लोकक अपन-अपन भूमि‍का होइ छैक।

वि‍चार करबाक थि‍क जे वैदि‍क पद्धति‍पर चलए बला समाजक चि‍त्र जे जहजहि‍ उपन्‍यासमे आएल अछि‍ से तँ सहज अछि‍। मुदा आजुक ओहन समाज जइमे अलगाव अछि‍। मनुक्‍ख-मनुक्‍खमे एतेक अन्‍तर कि‍एक अछि‍? प्रश्नक संग इशारामे उत्तर सेहो बतेबामे उपन्‍यासकार पाछू नै हटलथि‍। जेकर स्‍पष्‍ट उदाहरण रघुकाकाक बरि‍यातीमे छीतन भाय सदृश लोककेँ अपन बाजाक संग भजन करैले चलैक लेल कहि‍ एकटा आदर्श समाजक परि‍पक्‍व छाप छोड़लनि‍ अछि‍।

ओतबे नै, एकटा कहावत अछि‍ ‘भेल-गेलपर शि‍व जगरनाथ’ एहने एकटा व्‍यक्‍ति‍ छथि‍ फोंचभाय, पाही जमीनदारक टहलू धड़फराएल आबि‍ छौंकए चाहै छथि‍ ई बाजि‍-

‘सभ कथुक आरि‍औन तँ देखै छी मुदा ससर आ घी कहाँ अछि‍?’

माने काज भँगठा एवं भरि‍या देबए चाहलनि‍। मुदा लेलहा फोंचभायकेँ चौहटैत ई सावि‍त क’ देलकनि‍ जे रघुकाका आ देवभाय सँ हमरो केकरोसँ कम अपेक्षा नै। फोंचभाय कएल काजमे केवल गलति‍येटा तकैबला लोक छथि‍।



मुदा हाय रे उपन्‍यासकार, समस्‍त उपन्‍यासमे जीवन थि‍क तँ मरण असंभावी.., ई खेल चलि‍ते रहैए। अही समाजक बीच लोक जनमो लइए आ मरबो करैए। पैघत्‍व तँ ऐ बातमे अछि‍ जे जइ समाजमे रघुबाबू सन दाता छलाह आइ ओकरे ऋृण चुकबए खाति‍र अर्थी उठबैले बुझू जे माि‍र भ’ रहल अछि‍। तही बीच लेलहाक मुँहसँ अनायास नि‍कलल जे सुनै जाउ, कान्‍ही लगा उठबि‍यनु नै तँ दरद हेतनि‍।’ सभ मानि‍ गेल।



एक दि‍स आंगनसँ लहास उठल आ दोसर दि‍स सहनाइपर वि‍दाइक धून। आहहा... यएह तँ सुख आ दुखक दुि‍नयाँ छी। जीवन-मरणक सार्थकता छी। मुदा हमरालोकनि‍ जीवनक एक्के भाग देखै आ जनै छी। जीवन आ मरण सृष्‍टि‍क चक्र छी। ऐसँ कि‍यो बाँचल कहाँ। एक ि‍दस करि‍याकाका आ दोसर दि‍स सुन्नरकाका रघुभायकेँ अंति‍म प्रणाम कऽ डेग आगू बढ़ौलनि‍। पाछू-पाछू देवनंदनक हाथमे आगि‍ अा कोहा दऽ पाछू-पाछू बरि‍आती सजि‍ वि‍दा भेल। तइ पाछू करि‍याकाका रेलगाड़ीक गार्ड जकाँ पाछू-पाछू। गाछी पहुँचि‍ सभ कि‍यो सभ कथुक जोगर अपना-अपना वि‍वेकसँ लगा सि‍रहौना-पथौना रूपी औछाओनपर सुता एक-एक चेरा चढ़बैत छाती भरि‍ ऊँच कऽ सुन्‍दरकाका देवक बाँहि‍ पकड़ि‍ धधकैत उक मुँहमे लगा देलकनि‍। बाँकी सभ काज समाजक नि‍अमानुसार तेरहसँ सत्तर दि‍न धरि‍ चलैत रहल। समाज तँ समाजक नि‍अम। तही बीच हुलन दुनू परानी, जेकर आधा देह झाँपल आ आधा उघार छल, ओसरक नीच्‍चेसँ अपन कर्मकेँ धर्म बूझि‍ प्रणाम केलकनि‍ आ मने-मन सोचबो करए जे रघुबाबूक काजमे कत्ते वर्तन लागत।

ईम्‍हर देवबाबू जि‍नका गाड़ामे उतरी छन्‍हि‍ हुनकोसँ बेसी चि‍न्‍ता करि‍याकाकाकेँ छन्‍हि‍ मुदा करि‍याकाकासँ कम कुसुमलाल पण्‍डि‍तकेँ कहाँ छै? ओकरा तँ ऐ बातक चि‍न्‍ता छै जे श्रधुआ वर्तनक काज तँ दसम-एगारहम दि‍न हएत, मुदा दहीक लेल?

ओतबे नै, रघुनन्‍दन बाबूक काजक मादे ततबेक चि‍न्‍ता राजेसर नौआकेँ सेहो। जेकर काज एक दि‍स पुजबैक प्रकि‍या तँ दोसर दि‍ि‍स कर्म सम्‍पन्न करेबाक। मुदा एतेक सभ कि‍छु होइतौ अपना समाजमे जे पण्‍डि‍तक कि‍रदानी छन्‍हि‍ तेकरो बखि‍या उघारैमे कतौ कमी नै रखला अछि‍। जे नायकक रूपमे शि‍वशंकर छथि‍ जे अदौसँ अद्यतन आन-आन श्राध-कर्मक उदाहरण दऽ जजमानक खून उड़ि‍स जकाँ पीबैत रहलाह जेकर साक्षात् उदाहरण सि‍ट्ठी भेल समाज सबहक सोझामे अछि‍।



मनुक्‍ख वि‍चारसँ पैघ होइत अछि‍। वि‍चार बदलल। नव पीढ़ीक प्रसादे सुन्‍दर आ दुधि‍गर गाए सभ सेहो गाममे आएल। तइ बीच चाहक संग सभ सभ अपन-अपन वि‍चार रखलनि‍। जइमे सर्वसम्‍मति‍सँ वि‍चार यएह भेल जे पाँच गोटे वि‍चार कऽ डेग उठाउ,

(1)  श्राद्ध घरवारी आ कर्ताक अनुकूल हुअए। दानस्‍वरूप मात्र झरखंडी बाछा नै दागल जाए।  

(1)(2) आन गामक पंच माने भोज खेनि‍हारसँ परहेज कऽ गामक सभ जाति‍केँ खुऔल जाए आन गामक दोस्‍त–कुटुम-दि‍आद तँ रहबे करता।

(1)ऐ प्रकारे उपन्‍यासक मादे उपन्‍यासकार हमरालोकनि‍क बीच व्‍याप्‍त वि‍भि‍न्न प्रकारक नीक आ अधला प्रथा-रीति‍-चलनि‍-मान्‍यताक बीच वि‍भि‍न्न प्रकारक लोक सबहक अमुल्‍य वि‍चार आ ओही समाजक दालि‍-भातमे मुसलचन्‍दक उदाहरण दऽ ओकरासँ सावधान केलनि‍। सृष्‍टि‍क जे चक्र छी जीवन-मरण जइसँ कि‍यो बँचि‍ नै सकै छी जेकरा समाज आ कर्त्तकेँ मनोनुकूल कऽ समाजमे रचनात्‍मक काज करी ऐ लेल एकटा दि‍शा-ि‍नर्देश देलनि‍। जेकरा देवनन्‍दन जी अपने शब्‍दे स्‍वीकार कऽ पि‍ताक नि‍म्मि‍ते साले-साल भोजे नै वल्‍कि‍ यथासाध्‍य कल्‍याणकारी काजक प्रेरणा देलनि‍।

नाटक बेटीक अपमानपर एक नजरि- दुर्गानन्‍द मण्‍डल



मैथि‍ली साहि‍त्यक एकटा वि‍धा नाटक अछि‍, जे वि‍धा सभ दि‍न रौदि‍याहे सन रहल। गि‍नल-चुनल नाटककारक कि‍छु नाटक जे आंगुरपर गनल जा सकैत अछि‍, दोगा-दोगी कोनो पुस्तकालयक शोभा मात्र बढ़ौलक। एकटा समए छल जइमे नाटककार जे नाटक लि‍खलनि‍ तइमे वाक्-पटुता नै रहबाक कारणे वा शुद्ध-अशुद्ध उच्चारण नै भेने वा समुचि‍त वाद-संवादक संग समदि‍याक अभाव सभ दि‍न देखल गेल। चूँकि‍ ओना हम जत्ते-जे ढकि‍ ली मुदा एकटा सत्यकेँ स्वीकार करए पड़त जे हम मैथि‍ल छी। हमरा लोकनि‍क मातृभाषा मैथि‍ली भेल। मुदा माएकेँ माँ कहैत कनेको लाज वि‍चार नै होइए। जेना कि‍ आँखि‍सँ लाजक पानि‍ खसि‍ पड़ल। तात्पर्य, मैथि‍ल होइतो दोसर भाषाक दासताक शि‍कार भेल छी आ ओकर भोग भोगि‍ रहल छी, बुझाइत अछि‍ जेना मैथि‍लीक लेल एेठामक माइटि‍ये उसाह भऽ गेल अछि‍, जइपर गदपुरनि‍ मात्र उपजि‍ सकैए। मुदा ओहेन उसाह माटि‍पर “बेटीक अपमान आ छीनरदेवी” लि‍खि‍ नाटकार बेचन ठाकुर, चनौरागंज, मधुबनी, मैथि‍ली नाट्य जगतमे एकर सफल मंचन कऽ महावीरी झंडा गाड़ि‍ समस्त मैथि‍ली, मैथि‍ल आ मि‍थि‍लाक मान-सानकेँ मात्र बढ़ेबे टा नै कलनि‍ अपि‍तु चारि‍-चाँद लगा देलनि‍। ऐ लेल ठाकुर जीकेँ समस्त मैथि‍ल भाषी आ नाट्य प्रेमीक तरफसँ हम कोटिश: धन्यैवाद दैत अपार हर्ष महसूस कऽ रहल छी। हमरा वि‍श्वास अछि‍ जे अपने ई दुनू रचना जेकर मंचन अपने अपनहि‍ कोचि‍ंग संस्थानक छात्र-छात्रा लोकनि‍सँ करा, ई साबि‍त कऽ देलौं जे मि‍थि‍लाक माटिमे‍ अखनो ओतेक शक्ति बचल अछि‍ जइपर केसरो उपजि‍ सकैत अछि‍।
नाटककारक नाटकक वि‍षय अति‍ उत्तम छन्हि। वर्त्तमान शताब्दीक सभ मनुख ऐ बातसँ भि‍ज्ञ अछि‍, सरकारी सर्वेक्षणसँ सेहो स्प‍ष्टत अछि‍ जे दि‍नानुदि‍न लि‍ंगानुपात बढ़ि‍ रहल अछि‍। सभ राज्यक अनुपात थोड़े ऊपर-नीचाँ भऽ सकैए मुदा कि‍यो ऐ बातसँ मुँह नै मोड़ि‍ सकै छथि‍ जे प्रति‍ हजार लड़ि‍का-लड़ि‍कीक बीच एकटा बड़का खाधि‍ बढ़ैत जा रहल अछि,‍ जइ खाधि‍मे लड़ि‍कीक अनुपात नि‍रंतर नीचाँ मुँहेँ गि‍ड़ैत जा रहल अछि‍ आ हमरा लोकनि‍ कानमे तूर-तेल दऽ नि‍चेनसँ सूतल छी। जौं ई क्रम जारी रहल तँ आगू की हएत से तँ सोचू!! ई एकटा प्रश्नवाचक चि‍न्ह छोड़बामे नाटककार एकदम सफल रहला अछि‍। एतबे नै, आजुक वैज्ञानि‍क युगमे यंत्रादि‍क सहायतासँ ई जानि‍ जे माइक गर्भमे पलैत बच्चाक, बेटा नै बेटी छी.... ि‍नर्मम हत्‍या करबामे कनि‍क्को कलेजा नै कँपैए!! जेकर कोनो कसूर नै ओकरा कुट्टी-कुट्टी काटि‍ खुने-खुनामे कऽ माइक गर्भसँ बहार कऽ दै छि‍ऐ। जइ बेथे ओइ बच्चाक माए पनरह दि‍न धरि‍ बि‍छौन धेने रहैत अछि‍। ऐठाम एकटा गप हम फरिछा कऽ कहि‍ दि‍अ चाहै छी, ओ बेथा हुनकर ओइ बेटीक प्रति‍ये नै जेकर ओ हत्या करौलनि‍ अछि,‍ अपि‍तु शारीरि‍क बेथा छन्हि जइ लेल एत्ते आ एहेन कुकर्म करै छथि‍। ओइ ि‍नर्दोष बच्चाक माए-बाप दुनू ततबाए दोषी छथि‍। ओ ई नै बूझि‍ रहल छथि‍ जे जइ बेटीक ओ हत्याए करौलनि‍ जौं ओ बेटी आइ नै रहैत तँ की अपने रहि‍तौं? जौं बेटी नै हएत तँ सृष्टिक रचना संभव अछि‍? जौं हँ तँ केना वा नै तँ एहेन अपराध कऽ स्वयं कि‍एक एतेक पैघ हत्यारा साबि‍त भऽ रहल छी। रानी झांसी, लक्ष्मीबाई, सावि‍त्री, अहि‍ल्या, सती अनुसुइया, इन्दि‍रा गांधी, मैडम क्यूरी, मदर टेरेसा..., ईहो सभ तँ बेटी‍ये छलीह। जौं हि‍नको हत्या पूर्वहि‍मे कऽ देल गेल रहैत तँ आइ.....। तखन आँखि‍ रहैत एना हम सभ आन्हर कि‍एक? बुइध‍ रहैत मुर्खाहा जकाँ काज कि‍ए करै छी?
मनुक्ख तँ मनुक्ख छी ने, छागर-पाठी आकि‍ गाए-महि‍ंस तँ नै जे कतौ कोनो.....। तहूमे साढ़े-पारा अधि‍क भऽ जाए, गाए-महि‍ंस कम, तखन की हएत? जौं हम-अहाँ ई नै सोचबै तँ के सोचताह? ऐ हत्याक पाछाँ एकटा अओर कारण अछि‍ जेकर नाओं थि‍क दहेज। मुदा उहो तँ हमहीं अहाँ लेबाल आ देबालो छि‍ऐ। अखनो समाजमे आ प्राय: गाम पाछाँ एक-आध गोटे जरूर छथि‍ जे अपन बालकक बि‍आह एकटा नीक कुल-कनि‍याँ ताकि‍ आदर्श बि‍अाह कऽ उदाहरण बनै छथि‍। ऐ काजक दोषीकेँ सजा नै दऽ ि‍नर्दोषकेँ जानेसँ मारि‍ दुनू परानी ऐ पापक भागीदारी छी। छीह.......।

शास्त्रो एकटा बात बतबैत अछि‍ जे “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता।” मुदा ओकर पूजा की करबै, ओइ देवीक संसारमे एबाक अधि‍कारे छीनि‍ होइए, जे बड़का काज केलौं।
जतए समस्त वि‍श्व ऐ समस्यासँ जरि‍‍ रहल अछि‍ ओतए नाटककार अपना नाटकक माध्यमे एकटा साधारणो लेखक सदृश अपन लेखनीक माध्यमे समाजमे ई संदेश देबामे पूर्णत: सफल छथि‍ जे समए रहैत जौं नै चेतब तँ नाटकक मुख्य पात्र दीपक सदृश हाल हएत। जे अंतमे कनि‍याँक मुइला पछाति‍ अपनेसँ भात पसाबथि‍, कि‍एक तँ हुनक कनि‍याँ बरोबरि‍ गर्भपात करेबाक कारणे शोनि‍तक कमीसँ उड़ीस भऽ मुइलीह। एतबे नै, बेटीक अभावमे नगद गीनि‍ आ तखन पुतोहु घर अनलाह। तखन हुनका कबीर साहैबक ई पाँति‍ मोन पड़ैत छन्हि, “सन्तोक सभ दि‍न होत एक समाना।” आबो जौं नै चेतब तँ अहि‍ना टाका दऽ बेटी बेसाहऽ पड़त। नि‍रंतर चीज-बौस जकाँ बेटि‍योक दाम बढ़ैत जाएत, जेकरा कि‍नैत-कि‍नैत अहाँक प्राण नि‍कलि‍ जाएत। कि‍एक तँ अपना समाजमे एकटा नै कएक टा मरूकि‍याबला अखनो जीवि‍ेते अछि, जे चारि‍ लाख एकावन हजार टाका नगद आ सभ सरंजाम संगहि‍ बरि‍आती ऊपरसँ। चेतु हे मैथि‍ल आबो चेतु। नै तँ आब ओ दि‍न दूर नै जे गाड़ीपर नाव रहत। आब बेटी अपन अपमान बरदास नै कऽ सकैए।
ऐ प्रकारे नाटककार समाजक लेल एकटा पैघ संदेश दऽ रहल छथि‍ जे गर्भपातसँ पैघ कोनो पाप नै होइत अछि‍। तँए ऐ पापसँ बची आ बेटीक बाप बनी। अहुना बेटा आ बेटी दुनू कोइखि‍क श्रृंगार होइए। ऐ तरहेँ श्री बेचन ठाकुर जी हमरा लोकनि‍क नीन तोड़ैमे सफल रहला। जे श्री जगदीश प्रसाद मण्डल जीक प्रेरणापूर्ण आदर्शवादी व्यक्तिक हाथ हुनका माथपर छन्हि, हम सेहो बि‍नु मंगने शुभकामना दैत छि‍यनि‍, रहबनि‍, जे अहि‍ना नाटक लि‍खैत रहथु, मंचन करबैत रहथु। धन्यवादक पात्र श्रुति‍ प्रकाशनक श्रीमती नीतू कुमारी आ नागेन्द्र झाजी केँ जे प्रकाशनक समस्त भार उठा कृतज्ञ हेबाक मौका देलखि‍न। जौं वि‍देह प्रथम पाक्षि‍क ई-पत्रि‍काक सह सम्पादक उमेश मण्डल एवं सम्पादक गजेन्द्र बाबूकेँ, जि‍नक अथक सहयोगक प्रसादे प्रकाशनक रास्ता सुगम आ प्रकाशन सफल भेल, तँए नै लि‍खब-कहब तँ अनुचि‍त।