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Tuesday, August 28, 2012

जीवन-मरण :: दुर्गानन्‍द मण्‍डल


जीवन-मरण :: दुर्गानन्‍द मण्‍डल

जीवन-मरण उपन्‍यास, एकटा लब्‍ध प्रति‍ष्‍ठि‍त उपन्‍यासकार श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल जीक अनुपम कृति‍ अइ। हुनक लि‍खल अनेको उपन्‍यास, जे एक-सँ-बढ़ि‍-कऽ–एक अछि‍। जइमे उपन्‍यासकार द्वारा उठाओल गेल वि‍भि‍न्न प्रकारक सामाजि‍क रूढ़ि‍वादि‍ताक ज्‍वलंत उदाहरण प्रस्‍तुत कएल गेल अछि‍। मात्र प्रस्‍तुति‍करण धरि‍ कथा नै अपि‍तु ओकर सामाधान तकबामे सेहो उपन्‍यासकार सतत् सफल रहला अछि‍।

प्रस्‍तुत उपन्‍यासमे मनुखक जे अपन जि‍नगी छै, ओकर जे अपन समाज छै, समाजक प्रति‍ व्‍यक्‍ति‍ वि‍शेषक उत्तरदायि‍त्व होइत अछि‍ से, आ नवका पीढ़ी जे पश्चि‍मी सभ्‍यताक असभ्‍यतासँ ग्रसि‍त भऽ असभ्‍य बनि‍ गेला अछि‍ तइपर उपन्‍यासक आरंम्‍भमे एकटा कसगर चोट देलनि‍ अछि‍।
देवनन्‍दन जे बेवसायसँ डाॅक्‍टर छथि‍, पत्नी शीला द्वारा जनलनि‍ जे पि‍ताक मृत्‍यु भऽ गेल तैयो घबरेला नै सोचलनि‍ पि‍ताक अपन समाज छन्‍हि‍ जइ बीच ओ अपन जि‍नगी बि‍तौलनि‍। तँए उचि‍त हएत जे हुनका अपना समाजमे पहुँचा दि‍यनि‍ आ मृत्‍युक सभ कर्म सामाजेक अनुकूल बढ़ि‍यासँ करी ि‍नर्णए लेलनि‍।
मोबाइलसँ नम्‍बर नि‍कालि‍, टि‍पि‍ अपन जेठ बेटा दयानन्‍दकेँ जनौलनि‍-
बच्‍चा, बाबू मरि‍ गेलाह, तँए दुनू भाँइ गाम आऊ।
मुदा वाह रे पश्चि‍मी सभ्‍यता! देखू हमरा लोकनि‍केँ केना ग्रसि‍त केने अछि‍, दयानन्‍द बाजि‍ उठलाह-
बाबू, ऐ लेल गाम कि‍अए जाएब? आब तँ बि‍जलीबला शबदाहमे आसानीसँ काज सम्‍पन्न भऽ जाइत अछि‍
दयानन्‍दक वि‍चार सुनि‍ देवनन्‍दन कहलकनि‍-
बच्‍चा, सभ जीव-जन्‍तुकेँ अपन-अपन जि‍नगी होइत अछि‍। आ जे जेहने जि‍नगीमे जीबैत अछि‍ ओकरा लेल वएह जि‍नगी आनन्‍ददायक होइत अछि‍। जेना, चीनी, मि‍रचाइ आ करैला तीनूक तीन तरहक स्‍वाद, मीठ, कड़ू आ तीत होइए। मुदा की मरि‍चाइक कीड़ा आबि‍ करैलाक कीड़ा चीनीमे जीब सकत? कथमपि‍ नै। जखन की ओ तँ अधलाहसँ नीकमे गेल।
पि‍ताक बात सुनि‍ दयानन्‍दकेँ आश्चर्य भेलनि‍, मुदा देवनन्‍दनक अनुसारे ऐमे आश्चर्य कोन। कि‍एक तँ गामक दोसर नाम समाज सेहो छि‍ऐ। जे शहर-बाजारमे नै अछि‍। ऐठाम उपन्‍यासकार समाजकेँ मानव नै मानवक जे मूल सभ्‍यता छै ओकरा एकैसम सदीक नव पीढ़ी लेल एकटा मि‍शाल देखौलनि‍ अछि‍। जे वर्त्तमानमे आजुक पीढ़ी समाजकेँ नै बूझि‍ कि‍दैन बुझै छथि‍न, ओ बि‍सरि‍ गेलाह जे समाज की थि‍क, ओकर मान-मर्यादा कि‍ होइ छै, सामाजि‍क बन्‍धन की छी, ओकर कानून-कायदा की छै। आजूक वर्त्तमान आधुनि‍क समाज जइमे सभ अपने पाछू बेहाल रहैए। ओ केकर सुख-दुख, जीवन-मरणकेँ सुनत। ओ तँ भरि‍पेट नीक अन्न-तीमन खाएब मात्र जनैए। मुदा तइसँ कि‍ मन थोड़े अस्‍थि‍र भऽ सकैए। जाधरि‍ आत्‍माक संतुष्‍टि‍ नै हेतैक। बुझेबामे केत्तौ कोनो प्रकारक कि‍न्‍तु-परन्‍तु नै राखि‍, मनुक्‍ख एकटा सामाजि‍क प्राणी होइत अछि‍, ओकर अपन एकटा समाज छै, जइमे सभ एक-दोसराक सुखसँ सुखी आ दुखसँ दुखी होइ छथि‍, देखेबामे सफल भेलाह। वर्त्तमानमे जन्‍म जरूर जाति‍-समाजमे होइ छै, मुदा लगले आँखि‍-पाँखि‍ भेने हमरालोकनि‍ अपन मूल समाजकेँ भूलि‍-बि‍सरि‍ आन समाजमे मि‍लि‍ हूलि‍-माि‍ल उठेने रहै छी। केतेक दुखक बात भेल। कला आ संस्‍कृितसँ दूर तँ स्‍वभावि‍क रूपे तँ छि‍हे ओना हम सभ कतेको नोर मंचपर कि‍एक ने बहा ली।
दोसर दि‍स उपन्‍यासकार मि‍थि‍लानि‍क एकटा गजब चि‍त्र प्रस्‍तुत केलनि‍ अछि‍। मैथि‍ल नारि‍ अपन पति‍केँ परमेश्वर मानै छथि‍। जि‍नकेपर हुनका भरि‍ मांग सेनुर आ भरि‍ हाथ चुड़ी रहैत छन्‍हि‍। अपना पति‍क प्रति‍ कतेक नि‍ष्‍ठा रखै छथि‍ स्‍पष्‍ट अछि‍-
अदौसँ सावि‍त्री, अनुसुर्इया आदि‍ ऐ वि‍षयमे जगवि‍दि‍त छथि‍। देवनंदनक माए सुभद्रा जि‍नका चेहरापर सोग नै अपि‍तु सि‍नेह उमरि‍ रहल छन्‍हि‍। मोने-मन आनंदि‍त जे, जहि‍ना हाथ पकड़लनि‍ तहि‍ना पार-घाट लगा देलनि‍। भड़ल-पुड़ल फुलवाड़ी अछि‍ कतौ हेराएल रहब।
मि‍थि‍लानि‍क महान वि‍चार आ ति‍यागक स्‍तरकेँ कतेक सुक्ष्‍म रूपेँ उपन्‍यासकार रखलनि‍ अछि‍। ति‍यागक मूर्तिक रूपमे ऐ तरहेँ स्‍पष्‍ट अछि‍ जे पति‍केँ मुइला बादो हर्ष छन्‍हि‍ जे हमरा अछेत मरलाह से नीके भेलनि‍। अन्‍यथा मोनमे लागल रहैत जे हुनक शेष दि‍न केहेन...।
सभ पौस-प्राणी गुनधुनमे पड़ल गाम चलल जा रहल छथि‍। देवनंदन सोचथि‍, से नै तँ आइ समाजक काज पड़त। समाजक की महत छै। मनुक्‍ख कोन तरहेँ सामाजि‍क प्राणी होइए, समाजक बीच बाबूजी केना जीबथि‍, कतेक परि‍वारसँ दोस्‍ती छलनि‍ आ कतेकसँ दुश्‍मनी, गुनधुनमे पड़ल माएसँ पुछलखि‍न-
माए, कते परि‍वारसँ बाबूजी केँ दोस्‍ती छेलनि‍। तखन माएकेँ मोन पड़लनि‍ ओ समाज, जतए सभ मि‍लि कुमरम, बि‍आह, सामा, घरक गोसाँइसँ लऽ कऽ दुर्गा स्‍थानक गीत मोन पड़ए लगलनि‍। देवनंदनक बात सुनि‍ माए-सुभद्रा बजलीह-
छिया, छिया। मिथिलाक समाज छी। ऐ समाजमे मुर्दा जरबैले, केकरो घरक आँगि मिझबैले, केकरो-साँप-ताप कटने रहल आकि‍ गाछ-ताछपर सँ खसलापर केकरो कियो कहै नै छै। ई सामाजिक काज छी। तँए, अपन काज बूझि सभ अपने तैयार भऽ जाइत अछि।
ऐठाम उपन्‍यासकार मि‍थि‍ला आ मैथि‍ल समाजक एकटा वि‍लक्षण उदाहरण द’ अपन सभ्‍यता आ संस्‍कृति‍क परिचए द’ समाजक समुद्री रूपकेँ दर्शन करौलनि‍ अछि‍। पूर्वोमे बाढ़ि एलापर करि‍याकाका आ देवनंदन द्वारा उठाओल गेल कदम आबैबला समाजक लेल एकटा आदर्श उपस्‍थि‍त केलनि‍ अछि‍। आखि‍र दि‍न बि‍सेक बाद सभ घूमि‍ अपन-अपन घर आएल रहथि‍। ओही समाजक एकटा अभि‍न्न अंग देवनंदनक पि‍ता जे समाजक प्रति‍ष्‍ठि‍त व्‍यक्‍ति‍‍ रघुनंदनक लहाश गाम पहुँचते आगू-आगू गाड़ी आ पाछू करमान लागल लोक दि‍यादीमे सबहक चुल्हि‍ मि‍झाएल।
दोसर दि‍स उपन्‍यासकार जे मर्द-पुरुखक क्रि‍या-कलाप, स्‍त्रीगण सबहक गप-सप तँ एक दि‍स 111 बर्खक रधि‍या दादी गाइक गर्दनि‍ जकाँ लटकल चमरी, बाइस गाहीक बर्ख भेल, पूर्वमे रधुनंदनकेँ कतेको दि‍न दूध पि‍औने रहथि‍न, उपस्‍थि‍त क’ सामाजि‍क आ मातृत्‍व प्रेमक ज्‍वलंत उदाहरण प्रस्‍तुत केलनि‍। जि‍नका दादी जूरशीतलमे अछि‍ंजलसँ असि‍रवाद द’ फगुूआमे रँगो खेलाइत छलीह। से सप्‍तरंगी समाजक इंद्रधनुषी संबंधक एकटा वि‍लक्षण उदाहरण अछि‍।
श्राद्ध-बि‍‍आह समाजेक काज होइते अछि‍। समाज तँ समाजे होइए तहूमे ओहेन समाज जइठाम रघुनंदनकेँ उत्तरे-दछि‍ने सुता उज्जर दप-दप वत्रसँ छाँपि‍ सि‍रहानामे धूप-गुगुल जरैत अछि‍। तइ बीच बचनू, चंचन, झोली, बौकू, बतहू देहपर तौनी आ डाँरमे धोती पहि‍रने कान्‍हपर कुरहरि‍ नेने संग-मि‍लि‍ कानी-गाबी आ हँसी ऐ सँ पैघ सुख केकरा कहबै? जइ सुखक लेल लोक नीच-सँ-नीच काज करैए मुदा पाबि‍ नै पबैए। ऐठाम उपन्‍यासकार भौति‍क सुखकेँ सुख नै मानि‍ आत्‍मि‍क सुख, अतिइन्‍द्रि‍य सुख जइसँ आत्‍मि‍क शान्‍ति‍ भेटैत छै, ओ वास्‍तवि‍क सुख थि‍क। तँए मात्र दैहि‍क सुखकेँ क्षणि‍क आ आत्‍मि‍क सुखकेँ वास्‍तवि‍क बता अपनाकेँ आध्‍यात्‍मि‍क हेबाक सेहो परि‍चय द’ समाजोकेँ आध्‍यात्‍मि‍क बातपर चि‍न्‍तन-मनन अनुकरणक प्रेरणा देलनि‍ अछि‍।
समाजक समस्‍त काजक जि‍म्मा करि‍याकाकापर छन्‍हि‍। समाजक ऊँच-नीच, छोट-पैघ सभ जाति‍क लोक, जाति‍-परजाति‍ सभ मि‍लि‍ रघुकाकाक काजमे पूर्ण सहयोग देबए चाहै छथि‍ चाहे ओ ि‍कर्तनि‍या हुअए आकि‍ भजनि‍या, लेलहा हुअए आकि‍ बौका, सुन्‍दर काका होथि‍ वा छीतन भाय दुनू परानी जे जाति‍क डोम छथि‍। जे पूर्वमे गुनापर रघुकाकाकेँ पाँचटा गीत सुनौने छलाह। जीवि‍ते छथि‍ छीतन भाय। छि‍तनो भायकेँ बरि‍यातीमे हकार देब नै बि‍सरब, समाजक जाति‍-पाति‍क कुप्रर्थासँ नि‍कालि‍ मनुक्‍खक जे एकटा अपन समाज होइछ, मनुक्‍खक जे एकटा जाति‍ होइए जइमे सभ वर्ग आ वर्णक लोक रहैए, वास्‍तवमे ओ ने समाज छी। ओइ जाति‍गत भावनासँ ग्रसि‍त समाजकेँ ऊपर मुँहेँ उठा स्‍वच्‍छ वातावरणमे शुद्ध साँस लेबाक बाट देखौलनि‍ हेन। जहि‍ना हवा अनेक गैसक मि‍श्रन छी तहि‍ना तँ समाजो अनेक वर्ग आ वर्णक मि‍श्रण छी। जौं से नै तँ कि‍यो एक-दोसरक बि‍ना जीब सकत? संभव नै, मुदा से बुझैत लोक अपने स्‍वार्थमे आन्‍हर भेल रहैए। आ फल्‍लंमा डोम तँ फल्‍लांमा दुसाध ई संस्‍कार नैन्‍हि‍येटा सँ माए-बाप देबामे पाछू नै रहै छथि‍। आखि‍र एकटा प्रश्न हमरा तरफसँ, अहाँ प्रबुध समाजक लेल अछि‍, जौं समाजमे सभ जाति‍ नै रहत तँ की समाजि‍क जीवन चलि‍ सकत यदि‍ हँ तँ केना? जौं नै तँ फेर एहेन भावना कि‍एक? डोमसँ हम छूबल जाएब, मुदा ओकर बनाओल चीज-बौस गौसाँइ-पि‍तरपर चढ़त तँ की इष्‍ट-देव नै छुऔत। जौं छुआएत तँ सनातनि‍ये सँ कि‍एक ने..... ? आ जौं देव-पि‍तर नै छुआएत तँ हमरा-अहाँकेँ छुएबाक कोन आधार बनल अछि‍??

झाँपले परदामे उपन्‍यासकार जाति‍-प्रथाकेँ तोड़ि‍ एकटा आदर्शवादी समाज स्‍थापनापर जोर देलनि‍। जहि‍ना फुलवाड़ीमे जुही, चमेली फूल रहैत अछि‍ तहि‍ना गेना गुलाब सेहो। अधला नै तँ नीकक महत्ते की? तीत नै तँ मीठक स्‍वादे की? कारी नै तँ गोरे की? तहि‍ना तँ समाजो एकटा फुलवाड़ी होइ छै। जइमे सभ तरहक लोकक अपन-अपन भूमि‍का होइ छैक।
वि‍चार करबाक थि‍क जे वैदि‍क पद्धति‍पर चलए बला समाजक चि‍त्र जे जहजहि‍ उपन्‍यासमे आएल अछि‍ से तँ सहज अछि‍। मुदा आजुक ओहन समाज जइमे अलगाव अछि‍। मनुक्‍ख-मनुक्‍खमे एतेक अन्‍तर कि‍एक अछि‍? प्रश्नक संग इशारामे उत्तर सेहो बतेबामे उपन्‍यासकार पाछू नै हटलथि‍। जेकर स्‍पष्‍ट उदाहरण रघुकाकाक बरि‍यातीमे छीतन भाय सदृश लोककेँ अपन बाजाक संग भजन करैले चलैक लेल कहि‍ एकटा आदर्श समाजक परि‍पक्‍व छाप छोड़लनि‍ अछि‍।
ओतबे नै, एकटा कहावत अछि‍ ‘भेल-गेलपर शि‍व जगरनाथ’ एहने एकटा व्‍यक्‍ति‍ छथि‍ फोंचभाय, पाही जमीनदारक टहलू धड़फराएल आबि‍ छौंकए चाहै छथि‍ ई बाजि‍-
‘सभ कथुक आरि‍औन तँ देखै छी मुदा ससर आ घी कहाँ अछि‍?
माने काज भँगठा एवं भरि‍या देबए चाहलनि‍। मुदा लेलहा फोंचभायकेँ चौहटैत ई सावि‍त क’ देलकनि‍ जे रघुकाका आ देवभाय सँ हमरो केकरोसँ कम अपेक्षा नै। फोंचभाय कएल काजमे केवल गलति‍येटा तकैबला लोक छथि‍।

मुदा हाय रे उपन्‍यासकार, समस्‍त उपन्‍यासमे जीवन थि‍क तँ मरण असंभावी.., ई खेल चलि‍ते रहैए। अही समाजक बीच लोक जनमो लइए आ मरबो करैए। पैघत्‍व तँ ऐ बातमे अछि‍ जे जइ समाजमे रघुबाबू सन दाता छलाह आइ ओकरे ऋृण चुकबए खाति‍र अर्थी उठबैले बुझू जे माि‍र भ’ रहल अछि‍। तही बीच लेलहाक मुँहसँ अनायास नि‍कलल जे सुनै जाउ, कान्‍ही लगा उठबि‍यनु नै तँ दरद हेतनि‍।’ सभ मानि‍ गेल।

एक दि‍स आंगनसँ लहास उठल आ दोसर दि‍स सहनाइपर वि‍दाइक धून। आहहा... यएह तँ सुख आ दुखक दुि‍नयाँ छी। जीवन-मरणक सार्थकता छी। मुदा हमरालोकनि‍ जीवनक एक्के भाग देखै आ जनै छी। जीवन आ मरण सृष्‍टि‍क चक्र छी। ऐसँ कि‍यो बाँचल कहाँ। एक ि‍दस करि‍याकाका आ दोसर दि‍स सुन्नरकाका रघुभायकेँ अंति‍म प्रणाम कऽ डेग आगू बढ़ौलनि‍। पाछू-पाछू देवनंदनक हाथमे आगि‍ अा कोहा दऽ पाछू-पाछू बरि‍आती सजि‍ वि‍दा भेल। तइ पाछू करि‍याकाका रेलगाड़ीक गार्ड जकाँ पाछू-पाछू। गाछी पहुँचि‍ सभ कि‍यो सभ कथुक जोगर अपना-अपना वि‍वेकसँ लगा सि‍रहौना-पथौना रूपी औछाओनपर सुता एक-एक चेरा चढ़बैत छाती भरि‍ ऊँच कऽ सुन्‍दरकाका देवक बाँहि‍ पकड़ि‍ धधकैत उक मुँहमे लगा देलकनि‍। बाँकी सभ काज समाजक नि‍अमानुसार तेरहसँ सत्तर दि‍न धरि‍ चलैत रहल। समाज तँ समाजक नि‍अम। तही बीच हुलन दुनू परानी, जेकर आधा देह झाँपल आ आधा उघार छल, ओसरक नीच्‍चेसँ अपन कर्मकेँ धर्म बूझि‍ प्रणाम केलकनि‍ आ मने-मन सोचबो करए जे रघुबाबूक काजमे कत्ते वर्तन लागत।
ईम्‍हर देवबाबू जि‍नका गाड़ामे उतरी छन्‍हि‍ हुनकोसँ बेसी चि‍न्‍ता करि‍याकाकाकेँ छन्‍हि‍ मुदा करि‍याकाकासँ कम कुसुमलाल पण्‍डि‍तकेँ कहाँ छै? ओकरा तँ ऐ बातक चि‍न्‍ता छै जे श्रधुआ वर्तनक काज तँ दसम-एगारहम दि‍न हएत, मुदा दहीक लेल?
ओतबे नै, रघुनन्‍दन बाबूक काजक मादे ततबेक चि‍न्‍ता राजेसर नौआकेँ सेहो। जेकर काज एक दि‍स पुजबैक प्रकि‍या तँ दोसर दि‍ि‍स कर्म सम्‍पन्न करेबाक। मुदा एतेक सभ कि‍छु होइतौ अपना समाजमे जे पण्‍डि‍तक कि‍रदानी छन्‍हि‍ तेकरो बखि‍या उघारैमे कतौ कमी नै रखला अछि‍। जे नायकक रूपमे शि‍वशंकर छथि‍ जे अदौसँ अद्यतन आन-आन श्राध-कर्मक उदाहरण दऽ जजमानक खून उड़ि‍स जकाँ पीबैत रहलाह जेकर साक्षात् उदाहरण सि‍ट्ठी भेल समाज सबहक सोझामे अछि‍।
मनुक्‍ख वि‍चारसँ पैघ होइत अछि‍। वि‍चार बदलल। नव पीढ़ीक प्रसादे सुन्‍दर आ दुधि‍गर गाए सभ सेहो गाममे आएल। तइ बीच चाहक संग सभ सभ अपन-अपन वि‍चार रखलनि‍। जइमे सर्वसम्‍मति‍सँ वि‍चार यएह भेल जे पाँच गोटे वि‍चार कऽ डेग उठाउ,
(1)  श्राद्ध घरवारी आ कर्ताक अनुकूल हुअए। दानस्‍वरूप मात्र झरखंडी बाछा नै दागल जाए।    

(2) आन गामक पंच माने भोज खेनि‍हारसँ परहेज कऽ गामक सभ जाति‍केँ खुऔल जाए आन गामक दोस्‍त–कुटुम-दि‍आद तँ रहबे करता।
   ऐ प्रकारे उपन्‍यासक मादे उपन्‍यासकार हमरालोकनि‍क बीच व्‍याप्‍त वि‍भि‍न्न प्रकारक नीक आ अधला प्रथा-रीति‍-चलनि‍-मान्‍यताक बीच वि‍भि‍न्न प्रकारक लोक सबहक अमुल्‍य वि‍चार आ ओही समाजक दालि‍-भातमे मुसलचन्‍दक उदाहरण दऽ ओकरासँ सावधान केलनि‍। सृष्‍टि‍क जे चक्र छी जीवन-मरण जइसँ कि‍यो बँचि‍ नै सकै छी जेकरा समाज आ कर्त्तकेँ मनोनुकूल कऽ समाजमे रचनात्‍मक काज करी ऐ लेल एकटा दि‍शा-ि‍नर्देश देलनि‍। जेकरा देवनन्‍दन जी अपने शब्‍दे स्‍वीकार कऽ पि‍ताक नि‍म्मि‍ते साले-साल भोजे नै वल्‍कि‍ यथासाध्‍य कल्‍याणकारी काजक प्रेरणा देलनि‍।     ‍‍      

Sunday, August 26, 2012

जगदीश प्रसाद मंडलक “गामक जि‍नगी‍”- धनाकर ठाकुर


श्री जगदीश प्रसाद मंडलक “गामक जि‍नगी‍” कथा संग्रहमे १९ कथा छन्हिद। कथा सबहक शीर्षक बहुत छोट राखब लेखकक वि‍शेषता छन्हि। मुदा ऐ‍‍ कारणे ई मुख्यक पात्र प्रधान रहि‍ जाइत अछि‍।
गामक जि‍नगी केना शहरसँ अलग अछि‍ संभवत: लेखक एकरहि‍ प्रदर्शित करक प्रयास वि‍वि‍ध कथामे केने छथि‍। औद्यौगि‍क क्रांति‍क बाद बनल शहर, गामहि‍सँ उपटल लोकसँ बसल अछि‍ गामहि‍सँ जीवि‍काक खोजमे गेल लोकसँ जे बादमे क्रमश: गाम छोड़ि‍ देलनि‍। गाम छोड़ि‍ कोनो शहरमे जेबाक कारण प्रारम्भिा‍क अवस्थालमे औद्यौगि‍क पूंजी हुअए जइ‍‍मे गामक वर्णवैषम्यिक भाव भऽ नै‍‍ रहल हुअए मि‍थि‍लाक लेल कोसी-कमला समेत अनेक नदीमे अबएबला बाढ़ि‍ कारण रहल अछि‍ ओना बाढ़ि‍ स्वियं सेहो बड़का औद्यौगि‍क देशक सामान बेचक प्रकरण-उपकरणमे बनएबला बड़का बैराज-बांध आदि‍क कारणहि‍ अछि‍।

लेखककेँ मनमे कचोट छन्हिअ जे लोक कि‍एक गाम छोड़ि‍ बाहर जाइत अछि‍। पंजाब तक जकर परिणाम होइत छन्हिो बादमे नाव चलबैत, वा गामपर रि‍क्शाह चलबैत लगक कसबा वा स्टेनशनसँ जे पात्र कहैत छन्हिप- “हमर गामक लोक पंजाब नै‍‍ जाइत अछि‍।‍”

कि‍छु वर्ष पूर्व घोघरडीहा वा जयनगर सन स्टेशनसँ पंजाब आदि‍क छपल टि‍कट भेटैत छलैक जे एक दि‍नमे एक-एक स्टेँशनसँ लाख- लाख टाकाक कटि‍ जाइत छलैक जइपर पंजाबमे हरित क्रांति‍ अओलैक।

प्रति‍नि‍धि‍ कथा “डाक्टेर हेमन्तआ‍”, स्वियं डाक्टपर होइक चलते हम
सर्वप्रथम पढ़लौं। एक डाक्टइरक बेटा डाक्ट र हेमन्तर प्राय: दरभंगामे
काज करैत “लक्ष्मीकपुर‍” (बाढ़ि‍क गाम नि‍र्मली लग) जाइत अछि अधि‍कारीक आदेशसँ। चूँकि‍ ओ स्वटयं एक गामसँ नि‍कलल अछि‍ पि‍ताजीक उपार्जित धनक बंटबारामे मुकदमेबाजीसँ त्रस्त् अछि। डाक्टरर हेमन्तर तँ मि‍थि‍लेक शहरमे रहलाह। जतए कि‍ प्रमंडल एखन तक सहरसा या शहर सन कहबैत अछि‍। जतए कोनो शहर शहर सन‍ नै‍ अछि‍ बल्किो‍ गामहि‍क एक प्रति‍रूप अछि‍। मुदा हुनक बेटा कोनो दोसर प्रांतक शहरमे नौकरी लेल चलि‍ गेलखि‍न‍। डाक्टकर नै‍‍ बनलखि‍न यद्यपि‍ कहानीमे ई लि‍खल नै‍‍ अछि‍ कि‍एक मुदा संभवत: आब डाक्ट‍री पढ़नाइ कम टाका दऽ भऽ गेल अछि‍ तँए। कि‍छु वर्ष पहि‍ने तकक बि‍हारक गुंडाराजमे फि‍रौती अपहरणक कथा सामान्यस छल जकर धमकी स्वेरूप लाख टाका वा मौतक धमकी हेमन्त्केँ सेहो भेटलनि‍ मुदा ओहूसँ पैघ धमकी बाढ़ि‍ क्षेत्रमे काज करए जाउ वा जेल जे सामान्यखत: सुनल नै‍‍ गेल अछि‍ मुदा शासनक आतंक चोर-गुंडासँ कम नै‍‍ तकर उदाहरण अछि‍ ऐ‍‍मे। फि‍रौतीक माँगसँ बँचबाक लेल यदि‍ बाढ़ि‍-ड्यूटीकेँ हेमन्ति अंतमे धन्य वाद दैत तँ कथाक पूर्णतामे एक डेग होइत आ तहि‍ना बाढ़ि‍मे कतौसँ आएल कोनो परि‍वारमे पालिता सुकन्याय सुलोचनाक प्रति
डाक्ट रक मनोभावक वि‍कास कथामे नै‍‍ भऽ पएल। सुन्दलरी सुलोचनाक आयु कि‍छु बढ़ा नवयौवना बना आेइप‍र कामुक मनोदशाक चि‍त्र खि‍ंचल जा सकैत छल वा एक छोट कन्या क रूपमे बालि‍का सुलोचनाक प्रति‍ वात्सेल्य ताक जे मैथि‍ल
परम्प रा अनुसार होइत- “चलू दरभंगा ओतहि‍ पढ़ब अहाँ।‍” कि‍एक तँ वि‍देशी मनोदृष्टिा‍जन्यद कामव्याकधि‍सँ छोट बालि‍कामे कामुकता तकनाइ हमरा सबहक अग्राह्य रहैत। वा, सुलोचना कि‍छु मास बाद दरभंगा कोनो बीमारी जेना सांपक वि‍ष (जकर चर्चा प्रारम्भ मे अछि‍, लऽ डाक्टीर हेमन्तगक क्लिव‍नि‍कपर आबि‍ बचि‍ जइतथि‍ वा एन्टीध-स्ने्क भेनमक अभावमे तँ कहुना पहुँचि‍यौ कऽ दम तोड़ि‍ दि‍तथि‍ वा बँचलाक बाद आेइ‍ समए डाक्टिर हेमन्तरक नौकरीया बेटा
गामपर आएल रहैत आ ओकरा बि‍याहि‍ बंगलोर लऽ जइतथि‍। मतलब जे कथामे बात उठए से पूर्ण हेबाक चाही। गामक पड़ाइन रूकि‍ जाए, दरि‍द्रा कम भऽ जाए आदि आ तहि‍ना भाषागत शुद्धता हि‍न्दीजसँ लेल शब्दह लेल सेहो समान “सामान‍” जकाँ ग्रहण करब उचि‍त लेखककेँ। कि‍ताबक छपाइ नीक मुदा फोन्ट“ पैघ हेबाक छल आ दाम कि‍छु कम उपेक्षि‍त छल जे प्रकाशकीय धर्मक अनुरूप होइत।

मैथिली चित्रकथा/ गोनू झा आ आन मैथिली चित्रकथा - डा. रमण झा


श्रीमती प्रीति ठाकुरक दू गोट सचित्र कथा संग्रह -मैथिली चित्रकथा एवं गोनू झा आ आन मैथिली चित्रकथा देखलौं आ पढ़लौं । चित्रक माध्यमे कथाक प्रस्तुति एकटा अभिनव प्रयोग थिक जे लोककेँ, विषेषतः बच्चा सभकेँ अपना दिस आकृष्ट करत।
खिस्सा पिहानी कहबाक आ सुनबाक परंपरा मिथिलामे अदौसँ चल आबि रहल अछि। बूढ़ पुरान स्त्रीगण लोकनि छोट-छोट बच्चा सबहक े ँ सुतयबाक काल नाना प्रकारक खिस्सा सभ सुनबैत छथि जे मनोरंजनक संग संग उपदेषप्रद एवं षिक्षाप्रद सेहो रहैत अछि। आेइ खिस्सा सभमे प्रसिद्ध अछि -दैत्य सभक खिस स्सा, राज कुमार सबहक खिस्सा, रामायण महाभारतक खिस्सा, गोनू झाक खिस्सा प्रभृति। उच्च विद्यालय एवं महाविद्यालयमे प्रवेष कयलाक बाद छात्र-छात्रा लोकनि स्वयं कथा पढ़ैत छथि, बुझैत छथि, ओकर रसास्वादन करैत छथि आ समैपर लोककेँ सेहो सुनबैत छथि। 
मैथिलीक संग विडम्वना ई अछि जे महा विद्यालय एवं विष्वविद्यालय स्तरपर लोक विषयक रूपमे मैथिली रखितो अछि, पढ़ितो अछि किन्तु विद्यालय स्तरपर सरकारी घोसनाक बादो लोक ने मैथिली विषयक रूपमे रखैत अछि आने मैथिली माध्यमे कोनो आने विषय पढ़ैत अछि। एतेक धरि जे मिथिलांचलक विद्यालय सभमे गुरुओजी लोकनि मैथिलीमे पढ़यबामे हीनताक बोध करैत छथि। नव युवक लोकनि बि‍याह होइतहि पत्नीक संग हिन्दी झारय लगैत छथि। कनेक पढ़ल लिखल आ पदवीबला लोक सभकेँ देखबनि जे अपनामे जँ मैथिलीयोमे गप्प करताह तँ बच्चा सभसँ निष्चय रूपसँ हिन्दीमे। हुनका सभकेँ ई नै‍ बुझाइत छन्हिे जे मैथिली भाषा कठिन छैक। एकर समुचित ज्ञान जँ बच्चामे नै‍ होयतैक तँ बादमे होयब कठिन छैक । कवीष्वर चन्दा झा अमैथिलीभाषी(अन्यदेषीयक)क हेतु मैथिली भाषा ओहने कठिन कहलनि अछि जेहन एकटा इचना माछक बच्चाक हेतु समुद्रक सभटा जलकेँ पीयब छैक-
भाषा यदन्यदेषीयोः मिथिलायाः भवेत्तदा।
प्ीतमिंचाकपोतेन समस्तं वारिधेर्जलम्।।
जतय धरि हिन्दीक प्रष्न अछि तँ ओ तँ राष्ट्रªभाषा थिक । अनिवार्य विषय थिक। ओकर ज्ञान तँ स्वतः प्रत्येक व्यक्तिकेँ होयतैक आ रहिते छैक। 
एहन स्थितिमे श्रीमती प्रीति ठाकुरक उपर्युक्त विवेच्य पोथी देखि‍ हमर मन गदगद भए गेल। गोनू आ आन मैथिली चित्रकथामे कुल १६ गोट कथा अछि जइ‍मे गोनू झासँ सम्बद्ध नओ गोट कथा, महाकवि कालिदाससँ सम्बद्ध एक गोट आ शेष छओटामे राजा सलहेस, नैका बनिजारा इत्यादि प्रमुख चर्चित कथा सभ काल्पनिक चित्रक माध्यमे चित्रित कएल गेल अछि। ऐ‍ सभ कथामे किछु बात तँ शब्दक माध्यमे अभिव्यक्त कएल गेल अछि आ किछु गप्प चित्र स्वयं कहैत अछि। ऐ‍ कथा सबहक प्रसंग जे लोकक मनमे एकटा भावचित्र छल होयतैक से एतय बूझि पड़ैत अछि जेना साकार भए उठल हो। 
विदुषी कथा लेखिकाक दोसर संग्रह थिक मैथिली चित्रकथा जइ‍मे कुल १० गोट प्रमुख कथा सभ वर्णित अछि। ऐ‍ कथा सबहक बीच बीचमे काल्पनिक चित्र सबहक समायोजन कथाक यथार्थताकेँ प्रमाणित करैत अछि। ऐ‍ संग्रहमे संग्रहित महत्वपूर्ण कथा सभ थिक -राजा सलहेस, बोधि कायस्थ, दीना भदरी, नैका बनिजारा, विद्यापतिक आयु अवसान प्रभृति।
हमरा पूर्ण विश्वास अछि जे उपर्युक्त दुनू कथा संग्रह बच्चा सभकेँ तँ आकृष्ट करबे करत अपितु समाजक सभ वर्गक लोककेँ एक बेर‍ एकरा उलटयबाक लिप्सा होयबे करतैक। ऐ‍ दिशामे श्रीमती ठाकुरक स्तुत्य प्रयास अछि, साहसिक डेग अछि आ अभिनव प्रयोग अछि। हमर शुभकामना अछि जे कथा लेखिका एहने सरस, सहज आ सजल रचना सभसँ मैथिली साहित्यक भण्डारकेँ सुरभित करैत रहथि।

डॉ. शेफालिका वर्मा - प्रीति ठाकुरक मैथिली चित्रकथा


प्रत्येक भाषामे किछु एहेन रचनाकार होएत छथि, महिला वाकि पुरुष-वर्ग, अपन विलक्षण प्रतिभाक कारण सभसँ फराक बुझा पडै़त छैथ। ई दोसर बात थि‍क की आलोचक वर्ग महिला लेखनकेँ इतिहासक पन्नाक एकटा कोन दऽ दैत छथि‍। किछु भाग्यशाली लेखिकाकेँ किछु स्थानो भेट जाइत छैक, मुदा, समग्रतामे नै। लेखनमे महिला पुरुष नै होइत छैक, जइ विषएपर  लेखक लिखैत छैथ, आेइपर लेखिका सेहो लिखैत छथि‍, कखनो बेसी नीक, बस, आब एकेटा प्रतीक्षा अछि जे कोनो सशक्त महिला आलोचककेँ देखी, जे महिला नै भऽ मात्र आलोचक रहथि‍, पूर्वाग्रहसँ रहित नीक आलोचनाकेँ जन्म दैत। मैथिली साहित्यक इतिहासमे चारि चान लगाबथि‍, हम जनैत छी एहेन विद्वान लेखिकाक कमी नै अछि......
आइ प्रीति ठाकुरक मैथिली चित्रकथा, गोनुझापर पोथी देखि‍ चमत्कृत भऽ गेलौं। पहिने तँ हम मैथिलीक नेना भुटका लेल कोमिक्स बुझ्लौं, मुदा पढ़ए लगलौं तँ एकरामे डूबी गेलौं गागरमे सागर...। अद्भुद.. मैथिली लोकगाथाक विपुल संसारकेँ शिवक जटाजूट जकाँ कोना समेटी लेने छथि‍, ई पढ़ला उप्रानते बुझा पडत। कतेक कथाक खाली नाओं सुनने छलौं, ओ सभ ऐ‍ पोथीमे साकार छल। जहिना आजुक समाज अकबर बीरबलकेँ बिसरि रहल अछ, ओहिना गोनू झाकेँ।
प्रस्तुत पोथिक माध्यमसँ पाठक अपन समाजक सभ वर्गक आदर्शकेँ चीन्हि‍ सकैत छथि‍।
प्रीति जीकेँ अशेष शुभकामना एतेक सुन्दर पोथी लेल, प्रीतिजी आ गजेन्द्रजी सँ हम एकटा आग्रह करबनि‍ जे कोसी नदी लेल बड़ खिस्सा कथा समाजमे पसरल छैक, ओकरो चित्रकलामे समेटि‍ लथि‍। कोसी नदीक रहस्यमय चरित्र, सिंघेश्वर बाबासँ बि‍याह आदि, आदि खिस्सा सभ.....जहिना समाजक प्रत्येक क्षेत्रमे नारी आइ निरंतर आगू बढ़ि‍ रहल छथि, ओहिना मैथिली मिथिलाक विकासमे आजुक नारी अपन अपन स्तरसँ अमूल्य योगदान दऽ रहल छथि‍। अशेष साधुवाद, प्रीतिजी, असंख्य शुभाशंसा.........।

Wednesday, August 22, 2012

मैथि‍ली कथा साहि‍त्‍यक वि‍कासमे राजकमलक योगदान :: शि‍वकुमार झा ‘टि‍ल्‍लू’


मैथि‍ली कथा साहि‍त्‍यक वि‍कासमे राजकमलक योगदान :: शि‍वकुमार झा ‘टि‍ल्‍लू’



सन् 1954 मे “अपराजि‍ता” कथाक संग राजकमल जीक मैथि‍ली कथा साहि‍त्‍य जगतमे प्रवेश भेल। हि‍नक मूल नाओं मनीन्‍द्र नारायण चौधरी छन्‍हि‍। 1929मे जनमल ऐ साहि‍त्‍यकारक लेखनीसँ मैथि‍ली साहि‍त्‍यकेँ लगभग 36 गोट कथा भेटल। मात्र 38 बरखक अपन जीवनकालमे राजकमल मैैथि‍ली गद्य साहि‍त्‍यकेँ कि‍छु एहेन कृति‍ दऽ देलनि‍ जइसँ प्रयोगकेँ बादक धरातलपर प्रति‍ष्‍ठि‍त करबाक श्रेय साहि‍त्‍यक समालोचक लोकनि‍ ऐ साहि‍त्‍यकारकेँ ि‍नर्विवाद रूपेँ दऽ रहल छथि‍‍।



हि‍नक तीन गोट कथा संग्रह ललका पाग, एक आन्‍हर एक रोगाह आ “ि‍नमोही बालम हम्‍मर” पुस्‍तकाकार प्रकाशि‍त छन्‍हि‍। एकर अति‍रि‍क्‍त हि‍नक एक गोट पोथी “कृति‍ राजकमलक” मैथि‍ली अकादेमीसँ प्रकाशि‍त भेल अछि‍ जइमे 13 गोट कथा आ एकटा उपन्‍यास आन्‍दोलन संकलि‍त अछि‍। ओना कृति‍राजकमलक छओ गोट कथा “ललका पाग”मे सेहो छपल अछि‍।



रमानाथ झाक मतेँ राजकमलक कथा मूल उद्देश्‍य मनोवि‍श्लेषणात्‍मक प्रणालीसँ आरोपि‍त मर्यादा ओ आदर्शक पाछाँ नुकाएल आन्‍हरकेँ नाङट करब अछि‍। डॉ. डी.एन. झा सेहो ऐ मतसँ सहमत छथि‍।

“ललका पाग” कथा हि‍नक लि‍खल कथा सभमे अपन वि‍शि‍ष्‍ट स्‍थान रखैत छन्‍हि‍। ऐ कथाकेँ मैथि‍ली साहि‍त्‍यक कि‍छु श्रेष्‍ठ कथामे स्‍थान देब सर्वथा न्‍यायोचि‍त अछि‍। कथाक आरंभमे मैथि‍ली स्‍त्रीक चि‍न्‍हबाक वि‍श्‍लेषणमे कोनो अचरज नै। त्रि‍पुराक तुलना जइ वर्गक मैथि‍ल कन्‍याँ‍सँ कएल गेल कथाक भूमि‍कामे ओइ वर्गक स्‍पष्‍ट उल्‍लेख तँ नै कएल गेल मुदा ओ ब्राह्मण परि‍वारक कन्‍या छथि‍। अल्‍पायुमे पण्‍डि‍त पि‍ताक मृत्‍युक पश्चात् ति‍रू अपन माइक संग गाममे रहैत छलीह। अग्रज झि‍ंगुरनाथ बाहर धन उपार्जन लेल चलि‍ गेलाह। कि‍छुए वर्षमे ति‍रू युवती वयसमे प्रवेश कऽ गेलीह। दस-एगारह वर्षक बाद जखन झि‍ंगुरनाथ अपन गाम घुरि‍ अएलनि‍ तँ मातृसि‍नेहक संग-संग ति‍रूक हाथ पीअर करबाक जि‍म्‍मेदारीक आभास भेलनि‍। वास्‍तवि‍कतो छैक जे जखन ई कथा 1955मे वि‍देह वि‍शेषांकमे देल गेल ओइ कालकेँ के कहए वर्तमान समैमे सेहो अपना सबहक समाजमे कन्‍याक जन्‍म कालहि‍सँ बि‍याहक चि‍न्‍ता अभि‍भावककेँ सतबए लगैत छन्‍हि‍। ति‍रू तँ माघमे 14मे वर्षमे प्रवेश कऽ जेतीह। उद्देश्‍य जौं सार्थक हुअए तँ सफलता नि‍श्चि‍त भेटबे करैत अछि‍। चण्‍डीपुरक राम सागर चौधरीक सुपुत्र राधाकान्‍तसँ स्‍व. पण्‍डि‍त टेकनाथ झाक पुत्री त्रि‍पुराक बि‍याह सम्‍पन्न भेल। सासुर आबि‍ ति‍रू कनेको स्‍तब्‍ध नै छथि‍ कि‍एक तँ जीवन शैलीक कोनो ज्ञाने नै छन्‍हि‍। अज्ञानतामे बाड़ीक पछुआरमे पोखरि‍ देखि‍ अपन बेमात्र सासुसँ हेलबाक कलाक जि‍ज्ञासा कएलनि‍। यएह जि‍ज्ञासा हुनक जीवनक लेल काल भऽ गेलनि‍। चननपुरवाली सासु भोरे-भोर समस्‍त गाममे अफवाह पसारि‍ देलखि‍न जे राति‍मे नवकी कनि‍याँ पोखरि‍मे चुभकि‍ रहल छलीह। राधाकान्‍त ऐ घटनासँ मर्माहि‍त भऽ गेलाह। आब प्रश्‍न उठैत अछि‍ जे चननपुरवाली एना कि‍अए कएलीह? ओ अपन पि‍ति‍औत भाय डाॅ. शंभूनाथ मि‍सरक सुपत्रीसँ राधाकान्‍तक बि‍याह करबए चाहैत छलीह। ऐठाम कथाकार कनेक चुकि‍ गेल छथि‍। ऐ उद्देश्‍यकेँ कतौ स्‍पष्‍ट नै कएल गेल। माए जौं अपन बेटाक बि‍याह आनठाम करबए चाहैत छलीह तँ त्रि‍पुरासँ कोना भऽ गेलनि‍। जखन की चननपुरवाली परि‍वारक अभि‍भावि‍का छलखि‍न। हुनक पति‍क हुनकापर कोनो वि‍शेष अनुशासन सेहो नै छलनि‍ आ ने राधाकान्‍त त्रि‍पुरासँ प्रेम बि‍याह केलखि‍न तँ कथानकमे एहेन परि‍वर्त्तनकेँ सोझे-सोझ आत्‍मसात् करब कनेक कठि‍न लागि‍ रहल अछि‍। गाममे तँ कूटनीति‍ चलि‍ते अछि‍ कि‍एक तँ छद्म रोजी रोजगारपर बेरोजगारी भारी। तँए भोलामास्‍टर आ बंगट चौधरी सन परि‍वार वि‍ध्‍वंसक केँ राधाकान्‍त सन संवेदनशील लोककेँ दोसर बि‍याह करबाक प्रेरणा देबएमे यथार्थ बोध होइत अछि‍। ई सभ घटना चक्रसँ कथा रोचक होइत अछि‍। मुदा कथाकेँ आकर्षक बनेबाक क्रममे राजकमल बि‍सरि‍ गेलाह जे त्रि‍पुरा मात्र 13-14 वर्षक बालि‍का छथि‍। जखन पोखरि‍मे चुभकबाक जि‍ज्ञासा सासुरोमे छन्‍हि‍ तखन सौति‍न अएबाक संभावनाक मध्‍य अपन सकल गृहस्‍थ कार्यमे कोना लागल रहलीह? एक दि‍स चंचल रूपक उद्बोधन आ दोसरा रूपमे परि‍पक्‍व नारी, एकरा प्रयोगवाद तँ कहल जा सकैत अछि‍ मुदा प्रयोगात्‍मक रूप वास्‍तवि‍कतासँ बहुत दूर अछि‍। राधाकान्‍त सेहो शि‍क्षि‍त छथि‍, मात्र अपन स्‍त्रीकेँ पोखरि‍मे स्‍नान करबाक सजाक रूपेँ दोसर बि‍याह। ओना मि‍थि‍लामे पहि‍ने गप्‍पे-गप्‍पमे बि‍याह करबाक इति‍हास रहल अछि‍ परंच ऐ प्रकारक बि‍याहक कारण समीचीन नै लागल। अंतमे अपन बि‍याह कालक राखल ललका पाग जखन त्रि‍पुरा राधाकान्‍तकेँ दोसर बि‍याहक लेल प्रस्‍थानकालमे दैत छथि‍न तँ राधाकान्‍तक हृदए परि‍वर्तन भऽ जाइत अछि‍ आ पहि‍लुक ललका पागक मर्यादा रखबाक लेल ओ चुप्‍प भऽ आंगनमे आबि‍ कुर्सीपर बैस जाइत छथि‍। एहू घटनकाक्रममे कथा वास्‍तवि‍कतासँ बेसी कल्‍पवृक्षक पुष्‍प प्रतीत होइत अछि‍। जे राधाकान्‍त मात्र पोखरि‍ स्‍नानक दंडमे त्रि‍पुरासँ नारीक अधि‍कार छीनि‍ लेबाक ि‍नर्णए केलनि‍ ओ अंगुलि‍माल जकाँ क्षणहि‍मे कोना बदलि‍ गेलाह। ई ध्रुव सत्‍य अछि‍ जे मैथि‍ल ब्राह्मण परि‍वारमे ललका पागक स्‍थान वि‍शेष छैक आ ओइ पागकेँ सहेजि‍ कऽ त्रि‍पुरा धएने छलीह। भगवत परीक्षा जकाँ सौति‍न अनबाक लेल पति‍क हाथमे पाग देबाक ि‍नर्णएमे अंगुलि‍माल रूपी राधाकान्‍तकेँ बुद्धसँ दर्शन भेलनि‍। जौं एकरा संभवो मानल जाए तैयो कनेक कमी ई जे राधाकान्‍त त्रि‍पुराक तुलनामे कामाख्‍या दाइक संस्‍कारकेँ सोचि‍-वि‍चारि‍ वि‍शि‍ष्‍ट मानि‍ दोसर बि‍याह करबाक ि‍नर्णए कएलनि‍। कोनो क्षणहि‍मे नै। ऐ बि‍याहक सूत्रधार हुनक बेमात्र माए छलथि‍न। चननपुरवालीकेँ अछैत राधाकान्‍त माथपर बि‍नु पाग धएने कोना वि‍दा भऽ रहल छलाह, ई तँ सद्य: कथाक बहुत कमजोर पक्ष अछि‍।

भाषा वि‍ज्ञानक आधारपर जौं मूल्‍यांकन कएल जाए तँ कथाकार परम्‍परावादी मैथि‍ल साहि‍त्‍यकार जकाँ गद्यकेँ अधोषि‍त श्रृंगारक रूप देबाक प्रयास कएलनि‍।

ति‍रूक तुलना वाण भट्टक श्‍यामांगी नायि‍कासँ करए काल ई उद्देश्‍य स्‍पष्‍ट भऽ जाइत अछि‍। मुदा जखन लि‍खैत छथि‍ जे “मि‍थि‍लाक छौड़ी सभ अहि‍ना कनैत अछि‍।” तँ स्‍पष्‍ट भऽ जाइत छन्‍हि‍ आत्‍मि‍क रूपसँ कि‍छु आर कहए चाहैत छथि‍। ऐठाम छौड़ीक स्‍थानपर ‘कन्‍या‘ शब्‍दक प्रयोग सेहो कएल जा सकैत छल जे बेसी नीक लगि‍तए। कामाख्‍या दाइक वि‍षयमे राधाकान्‍तक मौन सि‍नेहमे पि‍आ आ आ जाऽ....... लि‍खबाक उद्देश्‍य स्‍पष्‍ट नै भऽ सकल।



ई सत्‍य अछि‍ जे राजकमल मैथि‍लीक संग-संग हि‍न्‍दीमे सेहो लि‍खैत छलाह, मुदा हि‍न्‍दीक प्रति‍ झॉपल सि‍नेह मैथि‍ली कथामे परि‍लक्षि‍त भऽ गेल‍। ई मैथि‍ली साहि‍त्‍यक लेल दुर्भाग्‍यक गप्‍प जे ऐ भाषाकेँ दुभाषी रचनाकार मात्र अपन नाओं-गाओंक लेल हथि‍यार बनेलनि‍ मातृभाषा सि‍नेहसँ साहि‍त्‍यि‍क रचनाक कोनो संबंध नै। ओना ऐ प्रकारक कथ्‍य यात्री आ आरसीक रचनामे नै भेटैत अछि‍। कथोपकथनमे वि‍रोधाभास देखलाक बादो एकरा नीक रचना मानल जा सकैछ कि‍एक तँ कथा बड्ड आकर्षक छन्‍हि‍। जौं बि‍म्‍बक वि‍श्लेषणकेँ शि‍ल्‍पक रूपमे देखल जाए तँ राजकमलजी स्‍थापि‍त शि‍ल्‍पी छथि‍ ई ललका पाग प्रकट भऽ गेल।



दमयन्‍ती हरण- ‘दमयन्‍ती हरण’ भरल सभामे कोनो वि‍वश नारीक चि‍र-हरणक वृत्ति‍ चि‍त्र नै। ई तँ समाजक पाग-चानन- ठोपधारी कि‍छु कथाकथि‍क भलमानुषक वास्‍तवि‍क झाॅपल चरि‍त्रकेँ नाङट करबाक कथा थि‍क। कथा नायि‍का छथि‍ तेइस-चौबीस बरखक- दमयन्‍ती दुलरैति‍न दम्‍मो अथवा समाजक कोप भाजन बनलि‍ दमि‍आँ। ऐ नायि‍काकेँ गामक रक्षक लोकनि‍ खलनायि‍का बना देलनि‍, जे दोसरक शोषण तँ नै करैत अछि‍ मुदा अपन चरि‍त्र हनन कऽ ग्राम्‍य समाजकेँ वि‍गलि‍त कऽ रहलीह जे कोनो अर्थमे उचि‍त नै। ऐ लेल दोष ककरा देल जाए? सामर्थ्‍यहीन मायकेँ वा ओहि‍ समाजकेँ जकर छाहरि‍मे नेनपनसँ सोझे अग्राह्य नारीक अवस्‍थामे प्रवेश कऽ गेली- दमि‍याँ।



मि‍थि‍ला समाजक वर्णन कोनो कवि‍तामे जतेक घृतगन्‍धा हुअए मुदा ई अक्षरश: सत्‍य अछि‍ जे जइ समैमे ई कथा लि‍खल गेल ओइ समैमे परीक्षा समाप्‍ति‍ आ नव कक्षामे प्रवेशक मध्‍यक समय छात्रक लेल मस्‍ताएल साँढ़सँ बेशी कि‍छु नै छल। जौं रहि‍तए तँ फूलबाबू रामपुरमे कि‍अए बौआइत रहि‍तथि‍। “फूल भैया ओइपार जएबह?” वेदव्‍यासक मत्‍स्‍यगंधा इत्‍यादि‍ संवादसँ नारी वि‍मर्शक वि‍ह्वल रूप प्रदर्शित होइत छैक। कथाकार तँ कथाक प्रारंभेमे अवश्‍ये ई नि‍श्चय केने हेताह की कथा नायि‍काकेँ वैश्याक रूपमे प्रदर्शित कऽ कथाक इति‍श्री कएल जाए। मुदा आदर्शवादी वि‍चारधारासँ एकटा वैश्‍याक भूमि‍का वॉधव बड़ कठि‍न कार्य भेल हएत। शनै:-शनै: ‘गाड़ीमे भीख मांगैत छौड़ी’ सदृश दमयन्‍तीक रूपक वि‍श्लेषणमे नारी जाति‍क अपमानसँ बेशी समाजक कटु सत्‍य इजोतमे आबि‍ गेल।

स्‍वेच्‍छासँ अमर्यादि‍त आचरणक आवरणमे दमि‍याँ नै गेलीह। ‘हे महादेव, चारि‍दि‍नसँ हमरा ऑगनमे चूल्‍हा नहि‍ जरल अछि‍’ सन संवादसँ ई परि‍लक्षि‍त होइत छैक।



गूढ़ मंथन कएलासँ कथामे कि‍छु वि‍शेष नै।

अपन बेटीक भरण-पोषणक लेल देह व्‍यापारकेँ केन्‍द्र वि‍न्‍दु बना कऽ लि‍खल गेल कथामे कोनो सम्‍यक समाज वि‍मर्श नै। कोनो आदर्श पथ नै मात्र पथभ्रष्‍ट समाजकेँ पाठक धरि‍ परसल गेल। यायावरी जीवन चक्रमे घुमैत जयद्रथ आ कथाकारक संवाद कोनो समाजक लेल आदर्श प्रस्‍तुत नै कएलाक। देलक तँ समाजकेँ ई संदेश जे जौं कोनो अवला मि‍थि‍लाक गाममे रामबाबू सन दु:खि‍ता पति‍ताक कथाकथि‍क रक्षक लग अपन आत्‍मरक्षाक ऑचर पसारतीह तँ ओ ऑचर खींच लेबामे कोनो संकोच नै करतथि‍।

’मायसँ कोन काज अछि‍’- नायि‍का कथाकारकेँ देखि‍ हुनको ग्राहके बुझली। ई कोनो भ्रम नै। अस्‍ति‍त्‍व वि‍हीन नारी लग देहलोलुपे मनुक्‍ख पहुँचैत छथि‍।

‘हम स्‍त्री नै छी, फूल भैया। हम तँ माटि‍क फूटलि‍ हाँड़ी छी। हमरापर दया करबाक कोनो प्रयोजन नहि‍’- मर्माहि‍त करबाक लेल चेतनाशील मनुक्‍खकेँ ई वाक्‍य भारी पड़त। छप्‍पन बरख पूर्व ई कथा लि‍खल गेल। ओइ समैमे समाजक ई दशा छल? तखन तँ वर्त्तमानकालक जीवन शैलीकेँ दोष देब उचि‍त नै। जखन जड़ि‍ए पथभ्रष्‍ट तँ छीपक वि‍षयमे नीक कल्‍पना करब सेहो भ्रामक अछि‍।

सम्‍पूर्ण कथामे झाजी आ चौधरीजी, मात्र पंचैती कालमे स्‍कूलक प्रधानाध्‍यापक यादवजी आ एकठाम खबास कुंजा धानुक अन्‍य वर्गक पात्र छथि‍। तखन ‘ब्रह्मो जानति‍ ब्राहण:’ कोना कलि‍युगमे प्रासंगि‍क मानल जाए। समाजमे नीति‍ शि‍क्षाक आचार्य जौं कुनीति‍क प्रधानाचार्य भऽ जाथि‍ तँ व्‍यवस्‍थे चौपट्ट कि‍एक नै हएत।

बेर-बेर जखन-जखन नारी वा शूद्रक चर्च होइत अछि‍ तँ तुलसीदासक ‘ढोल गॅवार शूद्र पशु नारीक’ उद्धरण देल जाइत अछि‍। महाकाव्‍यक रचनामे कोनो वि‍शेष पात्रक मुखसँ नि‍कसल ऐ वाणी द्वारा मानस पुरुषक चरि‍त्र हनन कएल जाइत अछि‍।



चौधरीजी बजलाह ‘घोर कलि‍युग आबि‍ गेल अछि‍ तुलसीदास ठीके लि‍खने छथि‍...’ ई उचि‍त नै लागल। तुलसीदास तँ एकठाम लि‍खने छथि‍ जे ‘धीरज धर्म मि‍त्र अरू नारी, आफत काल परेखहुँ चारी’ एकर उल्‍लेख कि‍एक नै कएल जाइत छैक? ओना ऐ कथामे नारी आ धर्ममे सहचरी बनेबाक कोनो गुंजाइश नै छल। मुदा तुलसीक वि‍षयमे लि‍खबाक काल ई धि‍यान रखबाक चाही जे रामचरि‍त मानस जनभाषाक कृति‍ अछि‍ जइसँ सम्‍पूर्ण हि‍न्‍दू संस्‍कृति‍ प्रभावि‍त भऽ रहल, कोनो वि‍शेष जाति‍क आधि‍कारि‍क भाषा संस्‍कृति‍मे लि‍खल नै गेल। तँए बाल्‍मि‍कि‍ रामायणसँ बेशी पाठक धरि‍ एकर पहुँच रहल।



कथाक बि‍म्‍ब वि‍श्लेषण रूचि‍गर लागल, जे राजकमलक वि‍शेष कथा लि‍खबाक कलाक परि‍णाम मानल जाए। हि‍नक कथामे कोनो हास्‍य समागम नै रहि‍तहुँ जनप्रि‍य रहल। तकर मौलि‍क कारण थि‍क गद्य काव्‍यात्‍मक वि‍श्‍लेषण। वाणि‍ज्‍यक छात्र रहि‍तहुँ राजकमल अंकगणि‍तीय वा सांख्‍यि‍क लेखा जोखामे नै पड़लाह कि‍एक तँ ‘आशुकथाकार’ छथि‍। कथाक अंतमे वएह पंचैतीक ि‍नर्णए जे हमरा सबहक समाजक व्‍याधि‍ छल। कानूनकेँ चुनौती देबाक लेल पंच परमेश्‍वर बनि‍ कि‍छु लोक पान चि‍बा कऽ इति‍श्री कऽ रहल छलाह। वर्त्तमान समैमे ई संभव नै छैक कि‍एक तँ मनुख सेहो ‘चेतनाशील भऽ रहल आ प्रजातंत्र दीर्घ सूत्री समाजक पागधारीसँ भरि‍गर भऽ गेल। मुदा अंतमे कथाकार बि‍सरि‍ जाइत छथि‍ आ मत्‍स्‍यगंधाक हँसी‍ प्रश्ने रहि‍ गेल। राजकमलक प्रश्नसँ कथाक इति‍श्री करब पाठककेँ भ्रमि‍त कऽ दैत अछि‍, मुदा रूचि‍पूर्ण। ि‍नर्णए तँ हमरा सबहक समाजमे ओझराएले रहि‍ गेल छल तँए संभवत: प्रश्नेसँ कथाक इति‍श्री कएल गेल भऽ सकैत अछि‍ कथाकार कथाकेँ रोचक बनेबाक लेल पाठक धरि‍ प्रश्न छोड़ि‍ कथाक इति‍श्री करब उचि‍त बुझैत होथि‍। जौं ई सत्‍य तँ एकरा मैथि‍ली साहि‍त्‍यक लेल दुर्भाग्‍यशाली मानल जाए, कि‍एक तँ न्‍यायाधि‍शकेँ ि‍नर्णए ओझरा क’ न्‍यायक कुर्सीपर सँ उतरलाक बाद बेवस्‍था चौपट हएब स्‍वभावि‍क छैक।



अाकाश गंगा- मैथि‍ली साहि‍त्‍यक संग सदि‍खन ई भ्रांति‍ रहल जे जौं कोनो साहि‍त्‍यकारक एक गोट कृति‍ साहि‍त्‍यकेँ आर सुवासि‍त कऽ देने अछि‍ तँ आगाँक रचनामे कथ्‍य ओ शि‍ल्‍पसँ बेशी कथाकारक नाओं मूल्‍यांकनक केन्‍द्र बि‍न्‍दु भऽ जाइछ। ऐ अर्न्‍तद्वन्‍द्वसँ राजकमल सेहो नै अछोप रहलाहेँ। ‘आकाश गंगा’ श्रैगांरि‍क बि‍न्‍दुकेँ स्‍पर्श करैत समाजक अर्न्‍तव्‍यथाक चि‍त्रण करबामे सफल कथा थि‍क, ऐमे कोनो संदेह नै। मुदा जौं अंत:करणसँ अवलोकन कएल जाए तँ ‘बऽर दुआरि‍पर उतरल नहि‍ की छींकक ध्‍वनि‍’ जकाँ कथाक प्रारंभे छायावादी शैलीमे कएल गेल। ‘वि‍वेकानन्‍द चौधरी नहि‍ मि‍थ्‍या कहलहुँ, आब जमीन्‍दार नहि‍ साधारण नागरि‍क। नागरि‍को नहि‍ साधारण ग्रामीण’ सन शब्‍दकोशसँ वाक्‍य बनाएब अप्रासंगि‍क मानल जाए। कथाकार स्‍वयं दृग्‍भ्रमि‍त तँ नै छथि‍ कि‍एक तँ हि‍नक प्रति‍भापर संदेह नै। तखन पाठककेँ दृग्‍भ्रमि‍त करबाक उद्देश्‍य स्‍पष्‍ट नै। कथाकारकेँ एकबेर स्‍पष्‍ट कऽ देबाक चाही जे वि‍वेकानंद की छथि? जौं ई काव्‍य रहि‍तए तँ क्षम्‍य छल, मुदा कथाक ऐ रूपकेँ की मानल जाए? सचार तखने नीक लगैत छैक जखन मूल खाद्य पदार्थ अक्षत हुए। मड़ुआक संग गाही साग तरकारी परसबाक बादो भोजनमे वि‍शेष स्‍वाद नै भेटत। कथोपकथनपर शि‍ल्‍पक भार एक नि‍श्चि‍त सीमाने तक शोभायमान लगैछ। वि‍वेकानंद चौधरीक अपन अर्द्धांगि‍नी मदालसासँ संबंध समाप्‍त भऽ गेलनि‍। वि‍वेकानन्‍द अपन बेटी अन्‍नपूर्णा संग रहए लगलाह। एकटा जमीन्‍दारक बेटी अन्‍नपूर्णा पि‍तृ आशाक वि‍परीत गरीब बालक राधाकान्‍तक संग वि‍आह कऽ लैत छथि‍। बाप-बेटीक संबंध समाप्‍त भऽ गेलनि‍। कालान्‍तरमे बेटी अन्‍नपूर्णा एक बालक अशोकक माए भऽ गेलीह। पति‍क देहावसानक बाद दरि‍द्रासँ लड़ैत माय अन्‍नपूर्णाक चरि‍त्र चि‍त्रणमे कथाकारक सबल दृष्‍टि‍कोण झलकैत अछि‍। नारी-वि‍मर्शक दृष्‍टि‍सँ कथा रोचक मुदा नारीक जीवन दशा समाजमे उदासी छैक, ई प्रमाणि‍त करब उचि‍त मुदा अगि‍ला पी‍ढ़ीक लेल उदासीन तँए रचनाकारकेँ ऐमे परि‍वर्त्तन करबाक चाही छल। अंतमे वि‍वेकानन्‍दक हृदए पझि‍जैत अछि‍ आ ओ बेटीक वि‍दागरीक लेल उद्यत भऽ जाइत छथि‍। ललका पाग जकाँ अहू कथामे परि‍णाम स्‍पष्‍ट नै भऽ सकल। श्रैंगारि‍क जीवनक परि‍धि‍मे घुमैत कथा परि‍णाम वि‍हीन, एेसँ एकरा कथाकारक पलायनवादी वैरागी प्रवृत्ति‍क द्योतक मानल जा सकैत अछि‍।

कादम्‍बरी उपकथा- वैधव्‍य जीवनक अवि‍रल चि‍त्रणसँ भरल ऐ कथामे नायि‍का ‘कादम्‍बरी’ वि‍धवा छथि‍। पति‍ वि‍श्वनाथक मरलाक बाद नैहर चलि‍ जाइत छथि‍। कि‍छु दि‍नक बाद देओर दुखि‍त भऽ गेलखि‍न तखन सासुर आबि‍ गेलीह। सासुरक लोकक कल्‍पना छल जे कादम्‍बरी ब्राह्मण संस्‍कृति‍क अनुकूल श्‍वेत वस्‍त्र धारि‍णी अवला बनि‍ अएलीह। मुदा सौन्‍दर्य सुन्‍नरि‍ कादम्‍बरी अंग-वस्‍त्रसँ वि‍पदा-मारलि‍ नै अएलीह। फेर धमगि‍ज्‍जरि‍। अपन केओ नै कि‍एक तँ जीवनक एक पहि‍या धसि‍ गेल छलनि‍। तँए ने दोसरक नेनामे शि‍क्षाक दि‍व्‍य संस्‍कार जगएबाक क्रममे परि‍हासक पात्र भऽ गेलीह। गायत्री देवी छोट दि‍आदि‍नी छलीह। शि‍क्षि‍त नारी कादम्‍बरीक महत नेना-सभक मध्‍य बेसी छल। कि‍एक तँ हुनकामे संतानहीन रहि‍तो मातृत्‍व छलनि‍। नेना आ मूक पालतू पशु सि‍नेहक भुक्‍खल होइत अछि‍। ई सभ गायत्रीकेँ सोहाइत नै छलनि‍। अपना तँ ऊक देबाक लेल एकटा अल्‍लुओ पेटसँ नै उखड़लनि‍’ गायत्रीक ऐ प्रति‍घातसँ कादम्‍बरी पाषाण भऽ गेलीह। आङनक पाठशाला बन्न कऽ देलखि‍न कि‍एक तँ गायत्रीक छोटकी बेटी नि‍रमलाक मृत्‍यु भेलापर ‘डाइन’ शब्‍दसँ सेहो वि‍भूषि‍त कएल गेलीह। जखन की नि‍रमला सर्प दंशसँ जहान छोड़ि‍ वि‍दा भेलीह।



कथाक अंति‍म चक्र बड़ नीक अछि‍। लुब्‍धा खबासक स्‍त्री प्रसव पीड़ासँ व्‍यथि‍त कादम्‍बरीक आङनमे छटपटाइत छथि‍। एकटा गरीब समाजक कात लागल वर्गक नारीक व्‍यथा कादम्‍बरीकेँ कर्त्तव्‍य परायणताक भावुक प्रवाहमे लऽ गेलनि‍। हास-परि‍हास आ परि‍तापक भयसँ मुक्‍त भऽ  ओइ नारीक संग-संग संसारमे आबए बला नेनाक लेल भगवतीसँ छागर कबुला केलखि‍न। जखन ई गप्‍प बादमे गायत्री कादम्‍बरीक मुखसँ सुनलनि‍ तँ प्रायश्चि‍तमे अश्रुकण बाहर भऽ गेलनि‍। ग्‍लानि‍ भरल समाजक वैधव्‍य जीवनक वृति‍ चि‍त्र अंतमे सि‍नेहसँ समाप्‍त भेल।

आकर्षणमे कथा चुम्‍बकीय प्रभाव जकाँ पाठककेँ झपटि‍ लैत अछि‍, मुदा की समाजक ऐ अनि‍श्‍चयवादी बेवस्‍थाकेँ ‘नारी-वि‍मर्शक’ दृष्‍टि‍सँ उचि‍त मानल जाए। जइ कालमे ई कथा लि‍खल गेल, भारतवर्षमे सेहो धर्म सुधार आन्‍दोलन भऽ रहल छल, मुदा मैथि‍ल ब्राह्मण समाज ओहि‍कालकेँ के कहए एखन धरि‍ ‘वैधव्‍य जीवन’सँ मुक्‍ति‍क आन्‍दोलनकेँ जाति‍-संस्‍कार वि‍रोधी मानैत अछि‍। ऐ मतेँ ई कथा लि‍खब कोनो अनुचि‍त नै। मुदा प्रयोगधर्मिताक रूपेँ जौं धि‍यान देल जाए तँ राजकमल क्रांति‍दूत भऽ सकैत छलाह। परि‍णाम मि‍श्रि‍त देखा सकैत छलथि‍ परंच ‘कादम्‍बरी’केँ रूढ़ि‍वादि‍तासँ मुक्‍ति‍ करबाक प्रयास कथाकारकेँ ओइ शि‍खरपर स्‍थापि‍त कऽ सकैत छल जतए धरि‍ मैथि‍ली साहि‍त्‍य एखन तक नै पहुँचल अछि‍।

नि‍ष्‍कर्षत: व्‍यवस्‍था फेर नाङट भेल से उचि‍त कि‍एक तँ संकीर्ण मानसि‍कताक समाजक मध्‍य ई कथा घुमैत अछि‍।



घड़ी- कथा साहि‍त्‍यमे रचनाकारक संग-संग समीक्षक लोकनि‍ सेहो बि‍म्‍ब ओ शि‍ल्‍पकेँ कथाक सचार मानैत छथि‍न। हमर मत ऐ रूपेँ कनेक वि‍लग अछि‍। कोनो रचनाकेँ पढ़लाक बाद ओकर मूल्‍यांकन हेतु जे मौलि‍क तत्‍व होइछ ओ थि‍क रचनाकारक दृष्‍टि‍कोण। जेना स्‍वस्‍थ व्‍यक्‍ति‍क सम्‍मि‍लनसँ स्‍वस्‍थ परि‍वार आ समाजक ि‍नर्माण होइत अछि‍ ठीक ओहि‍ना जौं रचनाकारक दृष्‍टि‍कोण समाजपयोगी हुअनि‍ तँ रचनाक सार्थकता सत्य प्रमाणि‍त भऽ जाइछ।

’घड़ी’ शीर्षक कथाक बि‍म्‍ब चलन्‍त जेकरा सामान्‍य शब्‍दमे चालू कहल जाइत अछि‍। शि‍ल्‍प आवृति‍सँ भरल अर्थात् परि‍वर्त्तनशील आ दृष्‍टि‍कोण आश्चर्यजनक रूपसँ समाजक लेल कलुष अछि‍। नाओंसँ प्रथम दृष्‍टि‍ए बुझना जाइछ जे ‘घड़ी’ अर्थात् समाजमे कालक प्रहरी मुदा अन्‍तरावलोकनक बाद काल प्रहरी घड़ी समाजमे अकालक सार्थकता सि‍द्ध कऽ रहलैक। अकाल माने जे ने उचि‍त मानल जाए तकर व्‍याख्‍या, ओहूमे अनैति‍क संबंधक केन्‍द्र बि‍न्‍दु बना कऽ लि‍खल गेल कथामे कथाकार सेहो अनैति‍क नायककेँ संग दैत छथि‍न।

रजनीकान्‍त प्राध्‍यापक बनि‍ पटनामे रहैत छथि‍न। पत्नी चन्‍द्रमुखी आ पाँच सन्‍तानक संग-संग एकटा वि‍धवा शि‍क्षि‍का मौसी उर्मिला हि‍नक परि‍वारक सदस्‍या थि‍कीह। टकाक ओ ओछौनपर सूतनि‍हार रजनीकान्‍तकेँ ‘घड़ी’सँ कोनो प्रेम नै। ‘घड़ी’ नामक यंत्रसँ रजनीकान्‍त घृणा करैत छथि‍। ई बात पटना नगरमे मैथि‍ल समाजक सभ लेाककेँ बुझल छैक। ई लि‍खबाक प्रयोजन आ प्रमाणि‍कतापर संदेह होइत अछि‍ जौं शि‍ल्‍पक आधारपर उचि‍त मानलो जाए तँ एकर प्राथमि‍कता पूर्णत: असत्‍य हएत। काल्‍पनि‍क कथामे सेहो ऐ तरहक शब्‍द वा वाक्‍य नै लि‍खबाक चाही। “मैथि‍ल समाजक सभ लोक”मे पटनामे रहनि‍हार सम्‍पूर्ण मैथि‍लकेँ केन्‍द्रि‍त कऽ कऽ 1965 मे ई कथा लि‍खल गेल। रजनीकांत कोनो भारतीय सि‍नेमा जगतक प्रसि‍द्ध कलाकार नै छथि‍ आ ने महात्‍मा गाँधी सन राष्‍ट्रक सेवक एकटा प्रोफेसरकेँ सभ लोक कोना जानि‍ सकैत अछि? मैथि‍ल समाजमे अमीरक संग-संग गरीब लोक सेहो छथि‍। तत्‍कालीन पटनामे समाजक कि‍छु लोक मोटि‍या, रि‍क्‍शा चालक जूता पॉलि‍श केनि‍हार सेहो हेताह हुनका रजनीकान्‍तसँ केना परि‍चय? खैर प्रयोगवादी राजकमलक ऐ कृत्‍यकेँ मैथि‍ली भाषामे क्षम्‍य कऽ देल गेल जे साहि‍त्‍यक अदूरदर्शिताक परि‍चायक थि‍क।

कथा कोनो वि‍शेष बि‍म्‍ब नै रखने अछि‍। कथाकार स्‍वयं ऐमे सहनायक छथि‍। मैथि‍ल समाजक मुसलमान जाति‍क पात्र अमजद मि‍याँ अपन नवयुवती पत्नी जहूरनक इलाजक लेल पटना अबैत छथि‍। चूड़ीक व्‍यापारी अमजद कथाकारपर वि‍श्वसनीयता रखैत हि‍नकेसँ सहयोग लैत छथि‍न। “एक रि‍क्‍शापर हम आ जहूरनी आ दोसर रि‍क्‍शापर अमजद अली आ रत्नेश झा कम्‍पाउन्‍डर आ दुसधा खबास अस्‍पतालसँ घुरैत छलहुँ।” ऐ प्रकारक संवादमे कथाकारक दृष्‍टि‍कोण पूर्णत: स्‍पष्‍ट भऽ गेल अछि‍। कोनो पुरुष ओहि‍कालमे कथमपि‍‍‍ नै स्‍वीकार कऽ सकैत छल जे अोकर कनि‍याँ पर-परुषक संग वैसए जौं एना कएलो गेल तँ एकर परि‍णाम अनर्गल साबि‍त भेल। कालान्‍तरमे वएह जहूरन प्रो. रजनीकान्‍तक संग अबैत-अबैत हुनक प्रेमालाप मे ओझरा गेलीह। ओइ प्रेमालापकेँ कथाकार समर्थन तँ नै कएलनि‍ मुदा गबाह अवश्‍य भऽ गेलखि‍न। अनर्गल प्रेमकेँ प्रकाशि‍त कएलनि‍ मुदा प्रो. साहेवक कनि‍याँसँ एकरा नुका कऽ रखलनि‍। मि‍त्रक ई कर्त्तव्‍य होइत अछि‍ जे अपन मि‍त्रकेँ कुमार्गसँ रोकथि‍। जौं नै रोकि‍ सकलाह तँ स्‍वयं संग छोड़ि‍ देबाक चाहि‍यनि‍ छल। राजा बलि‍ वचनक रक्षाक लेल जखन गुरुक संग छोड़ि‍ देने छलथि‍ तँ राजकमल एक कुकर्मी मि‍त्रक कुकर्मक भागी कोना बनबाक लेल तैयार छथि‍? ई घटना मात्र कथाक, मुदा कथोमे ऐ प्रकारक भ्रांति‍ उत्पन्न करब सर्वथा अनुचि‍त मानल जाए। ‘दुसधा खबास’ लि‍खब उचि‍त नै जौं हम दोसरकेँ इज्‍जति‍ नै देब तँ ‘बाभन’ शब्‍द सुनबामे कि‍एक क्षोभ होइत अछि‍? अंतमे रजनीकान्‍त अपन सत्‍य पथपर पुन: आबि‍ जाइत छथि‍। ‘घड़ी’ तँ कीनि‍ लेलथि‍ मुदा ई घड़ी जहूरनीक चरि‍त्र आ चन्‍द्रमुखीक वि‍श्वासकेँ केना घुराएत?



ब्रह्माण्‍डशास्‍त्री, दार्शनि‍कसँ लऽ कऽ भौति‍कीय गणकक दृष्‍टि‍कोणमे चुम्‍बकीय आकर्षण वि‍परीत ध्रुवक मध्‍य होइत छैक। जीवन धर्ममे नर-नारी संग रहि‍तो वि‍परीत कि‍एक तँ शारीरि‍क संरचनासँ सृजनक माध्‍यममे अन्‍तर होइछ। स्‍वाभावि‍क छैक जे साहि‍त्‍यकार ऐ गृहस्‍थ आश्रममे प्रवेश करैत रचनाक बि‍म्‍ब तैयार करैत अछि‍। तँए कोनो साहि‍त्‍यक आदि‍ कालमे मौलि‍क वि‍मर्श भक्‍ति‍ आ श्रृंगार रहल। राजकमल जीक पदार्पण मैथि‍ली साहि‍त्‍यक आधुनि‍क कालमे भेलनि‍ मुदा ताधरिक‍ कथा जगतमे अपन भाषाकेँ कृषकाय मानल जाए। अपेक्षाकृत राजकमल युवा सेहो रहथि‍ तँए सौन्‍दर्य आकर्षण पनकब कोनो असहज नै। अपराजि‍ता कथा हि‍नक पहि‍लुक रचना छन्‍हि‍ जे वैदेहीक अक्‍टूवर 1954 अंकमे प्रकाशि‍त भेल रहए।



जेना नाओंसँ स्‍पष्‍ट अछि‍ “अपराजि‍ता” जे स्‍त्री पराजि‍त नै भेल हुअए मुदा ऐठाम कोनो मण्‍डन मि‍श्रक भारतीक उल्‍लेख नै। कथाकारक मि‍त्र नागदत्तक कनि‍याँ छथि‍- अपराजि‍ता। एकर अर्थ कथमपि‍ नै जे ओ नागदत्तपर वि‍शेषाधि‍कार रखैत छलीह। सि‍नेहसँ राखल नाओं आ अधि‍कारक दृष्‍टकोणमे व्‍यापक अंतर होइत छैक। तँए कथाकारकेँ ई नाओं अनसोहाँत लगैत छन्‍हि‍।



मि‍थि‍ला क्षेत्र एखन धरि‍ प्राकृति‍क वि‍पदा बाढ़ि‍क कोपभाजि‍ता बनैत रहलीह। सन् 1954मे स्‍थि‍ति‍ तँ आर फराक छल। “सरि‍पहुँ... बागमती, कमला, बलान, गण्‍डक आ खास कऽ कोसी तँ अपराजि‍ता अछि‍ ने। ककरो सामर्थ्‍य नै जे एकरा पराजि‍त कऽ सकए” ....ऐ कथांशक द्वारा कथाकार कोनो बातसँ मुक्‍ति‍क आश नै रखने छथि‍, हि‍आसँ भऽ सकैछ जे रखने होि‍थ मुदा कथाक दृष्‍टि‍कोण बेछप्‍प मानल जाए।



कथाकारकेँ कथामे तँ अवश्‍य पीड़ा भऽ रहलनि‍ जे जे वेदमे नदीकेँ मनुक्‍खक सेवि‍का कहलकैक अछि‍। मनुक्‍खक पत्नी कहलकैक अछि‍... मुदा, बहुओ भऽ कऽ कोसी आ वागमती अपराजि‍ता छथि‍।



एक दि‍स बाढ़ि‍क उजैहि‍यासँ पसरल अधोगति‍केँ देखि‍ कथाकार व्‍यथि‍त छथि‍ तँ दोसर दि‍स मि‍ि‍थलाक परम सत्‍यकेँ उधार कऽ रहलाह। सम्‍पूर्ण भारत-वर्षक अधि‍कांश भूभागमे नारी-जीवन सोझ वि‍चार रखनि‍हार लोकक लेल चि‍न्‍ताक वि‍षय रहल। राजकमलक कथा सभमे सम्‍पूर्ण भारत वर्षक उल्‍लेख नै आ ने मि‍ाि‍लाक सम्‍पूर्ण समाजक ि‍हनक कथा प्रति‍नि‍धि‍त्‍व करैत छन्‍हि‍। मूलत: मैथि‍ल ब्राह्मण परि‍वारकेँ केन्‍द्र बि‍न्‍दु बना कऽ लि‍खल गेल हि‍नक “अपराजि‍ता” शि‍क्षि‍त मैथि‍ल परि‍वारक नारी जकरा पति‍ रहि‍तौं अवला कहल जा सकैछ केर स्‍थि‍ति‍क वास्‍तवि‍क वि‍वेचक थि‍क। ओना ऐ कथामे कतौ नारी शोषि‍त अथवा दोहनक प्रत्‍यक्षत:  उल्‍लेख नै। सम्‍पूर्ण कथा “द वनि‍र्ग ट्रेन” जकाँ रेलगाड़ीसँ प्रारंभ भऽ समस्‍तीपुर आ दड़ि‍भंगाक बीच पटरीक मध्‍य झुलैत अछि‍। समस्‍तीपुरसँ मुक्‍तापुर होइत हायाधाट धरि‍ बाढ़ि‍क प्रकोपक मध्‍य प्रारंभ भेल कथामे रेल पटरीपर पानि‍ आबि‍ जयबाक कारण यात्री सबहक परेशानी कथा मूल बि‍म्‍ब थि‍क। बि‍म्‍ब कोनो वि‍शेष अर्थक नै मुदा शि‍ल्‍प जोरगर तँए कथा कि‍छु हद धरि‍ रोचक भऽ गेल।



प्राय: मैथि‍ली कथाकारक संग समस्‍या रहल जे कथा लि‍खबाक उद्देश्‍य बहुत ठाम स्‍पष्‍ट नै होइत अछि‍। राजकमलक अपराजि‍ता सेहो इएह प्रकारक कथा मानल जाए। हमरा सबहक समाजक नकारात्‍मक स्‍वरूपकेँ ऐ कथामे नांगट तँ खूब नीक जकाँ कएल गेल मुदा की मात्र नांगट कएने समस्‍याक नि‍दान संभव छैक?

ऐ कथामे तँ ई प्रमाणि‍त होइत छैक जे साहि‍त्‍य समाजक दर्पण मुदा भांगल दर्पणमे कांति‍ देखलासँ कांति‍ सेहो स्‍पष्‍टत: नै देखाएत आ आँखि‍पर असर पड़ब सेहो अवश्‍यांभावी तँ कथाकार पाठककेँ ऐ कथासँ पूर्णत: प्रभावि‍त कएलनि‍ ई कहब सर्वथा अनुचि‍त।



“फुलपरास वाली” कथा नारी प्रधान कथा थि‍क जकर नायि‍का छथि‍। वि‍लट भाय पटनामे रहि‍ रि‍क्‍शा  चलबैत छथि‍न्‍ह। एकटा पंडि‍तक पुत्र भऽ रि‍क्‍शा हाँकब कथाकारक अर्द्धांगि‍नी शशि‍केँ नीक नै लगैत छन्‍हि‍। शारीरि‍क श्रमक अभ्‍यास नै रहलासँ जीवन दुष्‍कर भ’ जाइछ छै। शशि‍केँ ऐसँ बेसी खटकैत छन्‍हि‍ जे वि‍लट भाय हुनक भैंसुर छथि‍। पंडि‍त चन्‍द्रकांत झा वेदान्‍तक पुत्र वि‍लट झा रि‍क्‍शा चएलबाक कर्मकेँ अनुचि‍त नै मानैत छथि‍। मनुक्‍ख कर्मशील भऽ अपन पेट पोसए तँ कोनो हर्ज नै। पैतृक ठाठ-बाठक घंटी डोलेलासँ पेट तँ नै भरि‍ सकैत अछि‍। श्रमजीवी श्रमसँ पेट भरि‍ सकैत अछि‍ मुदा जौं शरीर अस्‍वस्‍थ भऽ जाए तँ जीवन चलाएब नि‍तांत असहज भऽ जाइत छैक।



वि‍लट भाइ बेमार पड़ि‍ जाइत छथि‍ जि‍नका देखबाक लेल कनि‍याँ अर्थात् फुलपरास वाली पटना अबैत छथि‍। वि‍लट भाइक ज्‍वर तँ शांत भऽ जाइत छन्‍हि‍ मुदा एकटा ज्‍वार बढ़ि‍ गेलनि‍ ओ थि‍क सुरा पान। कहि‍यो पीबि‍ कऽ नाली खसैत छथि‍ तँ कहि‍यो घर आबि‍ गुड़कैत छथि‍। कथाकार अर्थात मणि‍ बाबू आ हुनक कनि‍याँ शशि‍केँ ई सभ बड़ अनसोहाँत लगलनि‍। बि‍लट कर्मोपदेश दैत छलाह जे कोनो काज कऽ कऽ जीवन यापान करब अनुचि‍त नै। मुदा आब ताड़ी-दारूपर उतरि‍ गेल छथि‍। एतबे नै एक दि‍न अपन संग फुलपरास वालीकेँ सि‍नेमा देखबए लऽ जाइत छथि‍ जइठाम मीनाक्षी अर्थात् फुलपरासवालीक हाथ वि‍लट भाइक एकटा लुच्‍चा मि‍ऋ पकड़ि‍ लैत अछि‍।



बादमे बि‍लट अपन अधलाह कर्मपर प्रयश्चि‍त सेहो करैत छथि‍। ऐ बीच कथाकार कथानककेँ थोड़े मोरि‍ दैत छथि‍। फुलपरास वाली जे मणि‍ बाबूक भौजी थि‍कीह ति‍नकासँ प्रेम करबाक नाटक। अश्चर्य मानल जाए जे नारी वि‍मर्शमे राजकमलक लेखनी कतए धरि‍ भसि‍या जाइत छन्‍हि‍। ओना देओर अर्थात् मणि‍बाबू मीनाक्षीकेँ अपन पि‍यासक शि‍कार नै बना सकलनि‍। कि‍एक तँ पति‍क देल पीड़ासँ मैथि‍ल नारी आत्‍मासँ कानि‍ तँ सकैत अछि‍ मुदा अपन पति‍केँ छोड़ि‍ अान पुरुषकेँ अपन सर्वस्‍व न्‍योछावर करबाक कल्‍पनो नै करत। एेठाम कथाकारक दृष्‍टि‍कोण साफ आ समाजक लेल आदर्श मानल जाए। जौं दोसर अर्थमे सोचल जाए तँ वि‍जय कुकर्मी पुरुषेकेँ भेल। अपने कोनो कर्म करब, पथभ्रष्‍ट भऽ जाएब मुदा जीवन संगि‍नी सदि‍खन संग देत, संभवत: यएह कारण थि‍क जे पुरुष कोनो हद धरि‍ खसि‍ जएबामे संकोच नै करैत अछि‍ आ तथापि‍ ओकरा वि‍श्वास रहैत छैक जे गृहि‍णी कदापि‍ नै वि‍मुख हएत।



वि‍हनि‍ कथाक वि‍कासमे राजकमलक सेहो कि‍छु योगदान छन्‍हि‍। “कि‍रतनि‍याँ” सर्वकालि‍क वि‍हनि‍ कथामे अपन वि‍शेष महत रखैत अछि‍। एकर कारण जे राजकमल ऐ कथाक माध्‍यमसँ पहि‍लुक बेर मि‍थि‍लांक ब्राह्मण समाजसँ इतर भऽ कथा लि‍खैत छथि‍। कि‍रतनि‍याँ कोनो भजन संकीर्तण मण्‍डलीक सदस्‍य नै एकटा भि‍खमंगनी बालि‍का अछि‍। जौं सवल परि‍वारमे जनमलि‍ रहैत तँ उमेर पढ़ब लि‍खब आ नेनपनक भभटपन करबाक छल। मुदा गरीबक कोन शेखी। माए-बाप कहि‍या जहान छोड़ि‍ देलक पता नै। 80-90 वर्षक बुढ़ि‍या मइयाँक संग भीख मंगैत अछि‍। पूस मासक जाड़मे बुढ़ि‍या लटुआ कऽ खसि‍ पड़ल। ऐ घटनाक तीन दर्शक नांगड़ा, झपसुआ आ भि‍खमंगाक मेट चन्नरदास छल। नेंगरा कोनो नामकरण संस्‍कारसँ देल नाओं नै। नांगड़ तँए नगड़ा ओना भि‍खमंगाक नामे की...? कथाकारक दर्शन नीक लगैत अछि‍। झपसुआ नामधारी जीव आ चन्नरदास दि‍नमे नि‍पट्ट अन्‍हारक भूमि‍कामे भीख मंगैत अछि‍ आ राति‍मे अपन वास्‍तवि‍क रूपमे। कथाकार ऐ प्रसंगसँ प्रमाणि‍त करबामे सफल होइत छथि‍ जे जीवनक मंच आ रंगमंचमे भि‍न्नता छैक। बुढ़ि‍या मरि‍ गेल ओकर लहास लग बैसि‍ कि‍रतनि‍आँ चन्नरदास संग भीख मांगि‍ लहास जरेबाक लेल नाटकीय क्रीड़ा करैत अछि‍। भीखक कैंचा गनि‍-गनि‍ सवा तीन टका पूरा कएल गेल, मुदा लहास नै जराओल जाएत। कि‍रतनि‍आँ बाजलि‍- “एह! तीन टकामे हम दुनू आठ दि‍न ताड़ी पी लेब।”

चन्नरदास अपन उद्देश्‍यमे सफल होइत अछि‍। ओकर उद्देश्‍य छल बाल जीवनसँ युवती बनलि‍ कि‍रतनि‍याँक शारीरि‍क दोहन। आब कि‍रतनि‍आँ सेहो नि‍डर भऽ गेली। स्‍वाभावि‍क छैक जखन नारी कलंकि‍ता बनि‍ जाइत अछि‍ तँ ि‍नर्लज्‍ज होएब नि‍श्चि‍त भऽ जाइछ। कथाक गति‍मे गेलासँ ई प्रमाणि‍त होइत छैक जे ऐ तरहक स्‍थि‍ति‍क लेल दोषी ई पुरुष प्रधान समाज रहल। बि‍म्‍ब आ शि‍ल्‍प दुनूमे ई कथा राजकमलक सर्वश्रेष्‍ठ कथामे सँ एकटा मानल जाए। सबल पक्ष ई जे कथा समाजक सभसँ अंति‍म वर्गक जीवन शैलीक कथा थि‍क। एकटा आन वि‍हनि‍ कथा पनि‍डुब्‍वी सेहो राजकमलक श्रेष्‍ठ कथामे स्‍थान रखैत अछि‍। हि‍नक अधि‍कांश कथा ब्राह्मण-परि‍वार विषयमूलक अछि‍ मुदा एकटा कथा “मलाहक टोल : एक चि‍त्र” समाजमे पि‍छड़ल वर्गक नारीकेँ केन्‍द्रि‍त कऽ कऽ लि‍खल गेल तीन नायि‍का पि‍रि‍ति‍आ कमली आ केतकीक कथा ि‍थक। एे कथामे राजकमल मूलत: नारी वि‍मर्शकेँ बि‍म्‍बि‍त कएलनि‍ मुदा ऐठाम ई अवश्‍य प्रमाणि‍त भऽ गेल जे समाजक कात लागल वर्गक नारीमे साहस, चेतना आ दृढ़ नि‍श्चय समाजक अधि‍ष्‍ठाता वर्गक नारीसँ बेशी अछि‍। तँए ऐ वर्गक नारी अपन इच्‍छानुसार अधोगति‍केँ प्राप्‍त तँ कऽ सकैत अछि‍ मुदा ओकरा संग कि‍यो जबरदस्‍ती नै कऽ सकैछ। जौं कि‍यो करबाक प्रयास करत तँ “कैतकी” जकाँ समाजक कात लागल र्वगक नारी रूद्रा बनि‍ ति‍रपि‍त मि‍सर सन चरि‍त्र हीन व्‍यक्‍ति‍क हत्‍या तक कऽ सकैत अछि‍। ऐ प्रकारक घटना समाजमे होइत रहल तँए राजकमल जीक प्रयास ऐठाम उचि‍त मानल जाए।



प्रयोगकेँ बादक धरातलपर आनैबला राजकमल मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे कथाकेँ वि‍शेष स्‍थान दि‍औलन्हि‍। हरि‍मोहन आ ललि‍त जकाँ हि‍नक कथा पाठकमे प्रि‍य अछि‍। जौं अल्‍पायु (मात्र 39 बर्ख) मे कालकलवि‍त नै भेल होइत अछि‍‍ तँ भऽ सकैत छल जे आगाँ आर परि‍पक्‍व भऽ कथा जगतमे प्रवेश करि‍तथि‍। मुदा हि‍नक कथाक सभसँ पैघ कमी रहल नारी सौन्‍दर्य आ अनैति‍क संबंधकेँ मूल बना कऽ कि‍छु कथा लि‍खि‍ साहि‍त्‍यमे अनैति‍क संबंधकेँ बलशाली बनेबाक प्रयास कएलनि‍। ओना ऐ तरहक घटना समाजमे होइत रहल अछि‍ मुदा सत्‍यकेँ नांगट कऽ कऽ छोड़ि‍ देलासँ साहि‍त्‍य सबल नै भऽ सकैछ। दोसर कि‍छु कथाकेँ जौं छोड़ि‍ देल जाए तँ कथाकार स्‍वयं फूलबाबू बनि‍ कथा नायक बनल छथि‍ मुदा सोचमे पारदर्शी नै। राजकमलकेँ सम्‍पूर्ण कथाकार तँ नै मानल जा सकैछ मुदा “शि‍ल्‍पी”क रूपमे मैथि‍ली कथा जगतक वि‍शि‍ष्‍ट कथाकार तँ अवश्‍य छथि‍।

Wednesday, August 15, 2012

कृष्‍णजन्‍म - समीक्षक शिव कुमार झा टिल्लू


कृष्‍णजन्‍म :: कथाकाव्‍यक सूत्रपात

मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे महाकाव्‍यक पहि‍लुक छाँह रति‍पति‍ भगतक गीत-गोवि‍न्‍दसँ सन 1723ई.क लगि‍चमे देखएमे आएल। जइ छाहरि‍केँ स्‍पष्‍ट बि‍म्‍बक रूप मनवोध द्वारा 18म शताब्‍दीक मध्‍यमे कृष्‍ण जन्‍म स्‍वरूपे देल गेल। मनबोध मध्‍यकालीन मैथि‍लीक वि‍शि‍ष्‍ट रचनाकार मानल जाइत छथि‍।

जौं पदावलीकेँ छोड़ि‍ देल जाए तँ ज्‍योति‍रीश्‍वर आ वि‍द्यापति‍क अधि‍कांश रचना तत्‍समसँ लीपि‍त छल। मनबोधक प्रवेश मैथ्‍ज्ञि‍ली काव्‍य जगतमे अत्‍यन्‍त महत्‍वपूर्ण कि‍एक तँ कृष्‍णजन्‍म तत्‍सम परम्‍पराकेँ तोड़लक मात्र नै संग-संग चन्‍दा झा रचि‍त मि‍थि‍ला भाया रामायणसँ आधारशीला सेहो प्रदान कएलक। डाॅ. ग्रि‍यर्सनक मते कृष्‍णजन्‍म महाकवि‍ वि‍द्यापति‍ आ आधुनि‍क मैथि‍लीक हर्षनाथ झा आर तत्‍कालीन अन्‍य महाकाव्‍यक योजक कड़ी थि‍क। ई ि‍नर्विवाद सत्‍य जे कृष्‍णजन्‍मक भाषा ओ शैली संस्‍कृत, प्राकृत, अपभ्रंश ओ अवहट्ठसँ वि‍लग जनभाषामे रचत पहि‍लुक काव्‍य थि‍क। रति‍पति‍ भगतक गीत-गोवि‍न्‍दक वि‍परीत कृष्‍णजन्‍मक व्‍यापक प्रचार-प्रसार भेल कि‍एक तँ कतौ भाषामे क्‍लि‍ष्‍टता नै। तँए प्राय: सभ समालोचक एक मतेँ स्‍वीकार करैत छथि‍ जे तुलसीकृत रामचरि‍त मानस जकाँ कृष्‍णजन्‍म मैथि‍ली साहि‍त्‍यकेँ प्रबंध काव्‍यक पहि‍लुक सबल स्‍तंभ प्रदान कएलक। वि‍द्यापति‍क रचना रीति‍काव्‍यात्‍मक मुदा मनवोध ऐ परम्‍पराकेँ तोड़ि‍ जे नवल बि‍म्‍ब ओ शैलीक सृजन कएलनि‍ ओइसँ चन्‍दा झा अवश्‍य प्रेरि‍त छथि‍।

सुभाषचन्‍द्र यादव लि‍खैत छथि‍ मनवोध कथाकाव्‍यक परम्‍पराक आरंभ कएलनि‍। श्रृंगारि‍क काव्‍य परम्‍पराकेँ वि‍राम दऽ कऽ ओ वात्‍सल्‍य भावसँ युक्‍त रचनामे वि‍शेष रूचि‍ देखैलनि‍। मनवोध वि‍षय आ शि‍ल्‍प दुनू स्‍तरपर परम्‍पराक अति‍क्रमण करैत छथि‍। वि‍षयक स्‍तरपर कृष्‍णक नेनपन आ पराक्रम हुनका आकृष्‍ट करैत छन्‍हि‍ तँ शि‍ल्‍पक स्‍तरपर चौपाइ। लोक भाषासँ सम्‍पृक्‍ति‍ सन वि‍द्यापति‍क परम्‍पराकेँ मनवोध अखुण्‍ण बनौने रखैत छथि‍।
दुर्गानाथ झा श्रीशक शब्‍दमे अठारहम शताब्‍दीक अंति‍म चरणमे मनवोध अवश्‍य कृष्‍णजन्‍मक रचना कएलनि‍ ओ अद्भुत लोक भाषात्‍मक प्रवाह ओ वि‍लक्षण संक्षि‍प्‍त मुदा सजीव वर्णनक दृष्‍टि‍सँ लोकप्रि‍य सेहो भेल। परन्‍च कृष्‍णजन्‍मसँ प्रबंधकाव्‍यक वि‍कास परम्‍परा स्‍थापि‍त नै भेल। ई स्‍थापि‍त भेल कवीश्‍वर चन्‍दा झाक मि‍थि‍ला भाषा रामायण एवं लालदासक रमेश्‍वर चरि‍त रामायणसँ। कृष्‍णजन्‍म झुझुआन काव्‍य तँए महाकाव्‍य वा प्रबंध काव्‍यक श्री गणेश श्रीष एकरा नै मानैत छथि‍ संग-संग महाकाव्‍यीय परम्‍पराक सर्ग वि‍भाजन ऐमे नै भऽ कऽ अध्‍यायमे बि‍भक्‍त अछि‍। एकर एकटा आर ि‍नर्वल पक्ष जे अठारह अध्‍यायमे वि‍भक्‍त ऐ कृति‍क पहि‍ल दस अध्‍याय मात्र मौलि‍क आ खॉटी मैथि‍लीमे रचि‍त अछि‍। अन्‍य आठ अध्‍याय जनभाषा ओ रचनाक दृष्‍टि‍ऍं वि‍वादि‍त तँए श्रीश जीक मत अंशत: सत्‍य मानल जाए मुदा महाकाव्‍यीय मरम्‍पराक पहि‍लुक अनुपालन कृष्‍णजन्‍ममे भेल तकर प्रणाण एकर पहि‍ल अध्‍यायक उल्‍लेखमे तँ मंगलाचनण नै थि‍क मुदा आर्यभाषाक महाकाव्‍यक मूल बि‍न्‍दु मंगलाचरणक छाँह ऐठाम अवश्‍य भेटैत अछि‍-

प्रणमो गि‍रि‍वर कूमारि‍-चरण
जे वल कवि‍ सभ त्रि‍भुवन वरन
हमहू कएल अछि‍ मन मड़ गोट
कृष्‍णजन्‍म परि‍णय नै छोट
कोनपर होएत तकर नि‍रवाह
एखन लगै अछि‍ अगम अथाह...
मनबोध सोलह कलासँ नि‍पुण कृष्‍णकेँ ऐमे कोनो अभि‍सार पथपर वि‍हुँसैत राधाक सि‍नेही नै बनौने छथि‍।
मनवोधक कृष्‍ण वास्‍तममे नायक छथि‍।
धर्म संस्‍थापनार्थाय सम्‍भामि‍ युगे-युगेक हुंकार भरैबला कृष्‍णक मात्र जन्‍म कथा नै, मात्र प्रीति‍ गाथा नै हुनक समग्र जीवन दर्शनक अभि‍प्राय थि‍क कृष्‍णजन्‍मभागवत ओ हरि‍वंश पुराणक कथापर आधारि‍त कृष्‍णजन्‍मक नायक कृष्‍ण राम जकाँ गंभीर, लक्ष्‍मण जकाँ मर्यादि‍त सि‍नेही, स्‍वंय कृष्‍ण जकाँ वात्‍सल्‍य भावसँ भरल शि‍शु आ नरसि‍ंह जकाँ आक्रोशि‍त दुष्‍ट नाशक छथि‍। ऐमे पहि‍लुक क्रांति‍ जे कृष्‍ण जीवन वृतांतक धार श्रृंगारसँ कर्त्तव्‍यवोध धरि‍ चलि‍ आएल। बाल मनोवि‍ज्ञानक वि‍श्लेशणक दृष्‍टि‍ऍं कृष्‍णजन्‍म पहि‍लुक वास्‍तवि‍क वाल्‍य शैलीसँ भल महाकाव्‍य थि‍क-
गुड़कल-गुड़कल भि‍डुकल जाए
जतय अछल दुइ ि‍वर्छ अकाय
जमला अर्जुन कनला-नाथ
जुगुति‍ उपारल छुइल न हाथ
खसल महातरू हँसल मुरारि‍
भेल अघात जगतपर चारि‍....

डाॅ. चेतकर झाक शब्‍दमे वस्‍तुत: ई पौराणि‍क महाकाव्‍य मात्र थि‍क आकि‍ महाकाव्‍य ई अखन चरि‍ वि‍द्वत समाजमे वि‍वादक वि‍षय बनल अछि‍। वि‍वादक वि‍षय ईहो अछि‍ जे अठारह अध्‍यायमे वि‍भक्‍त कृष्‍णजन्‍म सम्‍पूर्ण रूपेँ मौलि‍क अछि‍ आकि‍ मात्र दस अध्‍याय धरि‍।
समालोचकक मन्‍तव्‍य जे होन्‍हि‍ मुदा ई अक्षरश: सत्‍य जे कृष्‍णजन्‍मक रीति‍ नीति‍ आधार-वि‍चार, खान-पान, बात-वि‍चारक संग-संग व्‍यवहार मि‍थि‍लाकसँ प्रभावि‍त अछि‍। लगैछ जेना कृष्‍णक कथा गोकुलक कथा नै मि‍थि‍लाक कोनो भूभागक कथा थि‍क। गाम भरि‍ हकार, चुमाओन, तेल-सेनूर, नाच-गान, भदवा, सोहर, वटगवनी, झटहा आ ठेंपा फेंकब, टेलवा टेलइक खेल खेलाएब सन खाँटी मैथि‍ल परम्‍परा ऐ काव्‍यकेँ मि‍थि‍ला धरापर जीवन्‍त कऽ देलक।
म. म. डाॅ. उमेश मि‍श्रक अनुसार ई कथा दशम अध्‍याय धरि‍ श्रीमद्भागवतक दशम स्‍कंधक पूर्वाधक आधारपर लि‍खल गेल अछि‍, एगारहमक अध्‍यायसँ अन्‍त धरि‍ हरि‍वंश वि‍ष्‍णुपर्वक आधारपर लि‍खल गेल अछि‍।

प्रो. रमानाथ झाक कहब छन्‍हि‍- मनवोध पहि‍ल कवि‍ छलाह जे अपन कृष्‍णजन्‍ममे श्रृंगार रससँ शून्‍य भक्‍ति‍ रसमय एकछन्‍द मे जे राग ताल प्रभृति‍ गीतक वि‍षयसँ रहि‍त अछि‍ अपन एक गोट नूतन शैलीमे काव्‍यक रचना कएलनि‍। ई छन्‍द आब चौपाइ कहल जाइत अछि‍ परन्‍तु ताहि‍ दि‍न ई गाहि‍क मेर बूझल जाइत छल।
राग-लय, गति‍, यति‍ ओ नि‍यति‍क रचनात्‍मक मर्यादा जे हुअए अपि‍तु ई अक्षरश: सत्‍य जे कृष्‍ण जन्‍मक महाकाव्‍यीय सृजनतामे वएह मौलि‍क स्‍थान जे स्‍थान संस्‍कृत साहि‍त्‍यमे वेदव्‍यास ओ वाल्‍मीकि‍क अछि‍। अर्थातृ वेद व्‍यास ओ वाल्‍मीकि‍ हदृश मनवोध मैथि‍ली महाकाव्‍यक शलाका पुरुष छथि‍।

सुमन जीक शब्‍दमे प्रकृति‍ वर्णन, भने ओ जड़ प्रकृति‍ होअ अथवा मानव प्रकृति‍ मनवोधक रचनामे सहज, सुबोध एवं हृदयावर्जक बनल अछि‍। संज्ञा, क्रि‍या वि‍शेषण, नामधातु ओ अनुध्‍वनि‍क वि‍लक्षण प्रयोग ऐमे भेटैत अछि‍।
मैथि‍ली काव्‍यमे गीत-शि‍ल्‍पक जे परम्‍परा छल तकरा लागि‍ स्‍वतंत्र कथा-काव्‍यक पहि‍ल प्रयोग कृष्‍णजन्‍ममे भेल। बाल साहि‍त्‍यक दृष्‍टि‍सँ जौं देखल जाए तँ प्रयोगकेँ वादक धरातलपर आनि‍ महाकाव्‍यक रूप रेखामे बाल मनोवि‍ज्ञानकेँ पूर्णत: स्‍पर्श मनबोधसँ पूर्व कि‍यो नै कऽ सकलाह। शब्‍द-शब्‍दमे प्रवाह हास्‍य स्‍पर्शी ओ सजीव अछि‍। तँए दशम अध्‍याय धरि‍ उत्तर आधुनि‍क काव्‍यक लेल सेहो अनुगामी तँ रचनाकालमे एकर महत्‍व की हएत ई मंथनक वि‍षय थि‍क।

तँए ई सत्‍य मानल जाए जे मात्र एक छन्‍दमे लि‍खल समस्‍त महाकाव्‍यक शैलीक ई मैथि‍लीक प्रयोग ग्रंथ थि‍क जे भाषा वि‍न्‍यासक संग-संग बि‍म्‍बक मौलि‍क स्‍पर्श आ बाल साहि‍त्‍यक लेल अखन धरि‍ उपयोगी अछि‍।

प्रीति ठाकुरक- मि‍थि‍लाक लोकदेवता ::समीक्षक शिव कुमार झा टिल्लू


मि‍थि‍लाक लोकदेवता ::

कोनो साहि‍त्‍यक समृद्धि‍क आधार महाकाव्‍य, प्रवेध काव्‍य उपन्‍यास वा कथाक उत्तर आधुनि‍क वि‍वेचनकेँ मानल जाइत अछि‍। ऐ दि‍शामे मैथि‍ली एखन बड़ पाछू अछि‍ कि‍एक तँ समग्र साहि‍त्‍य वि‍धाक परम्‍परागत रूपसँ ई भाषा बाझल मानल जा सकैछ। साहि‍त्‍यक वि‍कास तखने संभव जखन भाषाक दीर्घकालीन संभावना परि‍लक्षि‍त होएत। पुरना पि‍ढ़ी झखड़ि‍ रहल छथि‍ आ नवका पि‍ढ़ीमे शि‍क्षाक माध्‍यम अंग्रेजी तखन मैथि‍लीक अस्‍ति‍त्‍वपर अपने आप प्रश्‍नचि‍न्‍ह लागब दर्शनीय। गाम-घरक नेना-भुटकाकेँ जौं छोड़ि‍ देल जाए तँ मैथि‍ल परि‍वारक शैशवक मातृभाषा नि‍श्चि‍त रूपेँ बदलि‍ रहल।
प्रारंभि‍क शि‍क्षाक माध्‍य अंग्रेजी आ हि‍न्‍दी थि‍क। ऐ दशामे साहि‍त्‍यसँ बेशी आवश्‍यक अछि‍ भाषाकेँ बचाएब। मैथि‍ली तखने अपन आस्‍ति‍त्‍वकेँ दृढ़ रूपेँ राखि‍ सकतीह जखन नवका पि‍ढ़ीमे मातृ आ वात्‍सल्‍य सि‍नेहक वेदना हुअए। एे लेल आवश्‍यक अछि‍ बाल मनोवि‍ज्ञानकेँ स्‍पर्श करएबला बाल साहि‍त्‍यक प्रोत्‍साहन।

ऐ दि‍शामे कहबाक लेल तँ बहुत रास कार्य भेल अछि‍ परंच वास्‍तवि‍क बाल साहि‍त्‍यमे आधुनि‍क पि‍ढ़ीक रचनाकारक समूहमे अग्रगन्‍या छथि‍ श्रीमती प्रीति‍ ठाकुर। हि‍नक तेसर पोथी मि‍थि‍लाक लोक देवताश्रुति‍ प्रकाशनक सौजन्‍यसँ 2010ईं.मे बहार भेल।
टी.एस. इलि‍यटक Tradition and the individual talent (1917 AD) क अनुसार कोनो कवि‍, कथाकार वा कलाकार स्‍वयंमे पूर्ण अर्थ नै स्‍पष्‍ट करैत छथि‍। हुनक कलाक तुलना मृत कवि‍ वा कलाकारक रचनासँ कएलाक बादे हुनक मूल्‍यांकन कएल जा सकैछ। जौं ऐ मतकेँ प्रासंगि‍क मानल जाए तैयो प्रीति‍जी अतुलनीय छथि‍ कि‍एक तँ हि‍नकासँ पूर्व ऐ प्रकारक चि‍त्रात्‍मक आ लयात्‍मक शैलीमे बाल गद्य पहि‍ने मैथि‍लीमे लि‍खल नै गेल। ई अक्षरश: सत्‍यो थि‍क कि‍एक तँ आदि‍ पुरुषक माथपर पाग रखबाक साहस कि‍यो नै कऽ सकल। संगहि‍ ऐ तथ्‍यकेँ जानब सेहो आवश्‍यक जे अन्‍य भाषा समूहसँ तुलनाक बाद प्रीति‍जी कतए छथि‍?
सामा चकेबा परम्‍परागत जनश्रुति‍ आ पौराणि‍क कथाक आधारपर मि‍थि‍लाक गाम-गाममे प्रचलि‍त कार्तिक पूर्णमासीक पावनि‍ ि‍थक। ऐ कथाकेँ ऐ पोथीमे सम्‍मि‍लि‍त कऽ प्रीति‍जी कोनो नव रचनात्‍मक कार्य नै कएलनि‍ परंच अनचोकेमे नवका पि‍ढ़ीकेँ अपन संस्‍कृति‍सँ अवश्‍य अवगत करा देलखि‍न। अनचाेेके शब्‍दक प्रयोग ऐ दुआरे कएलौं कि‍एक तँ बहुत रास गामसँ ई पावनि‍ लुप्‍त भऽ रहल अछि‍ शहरमे तँ एकर अस्‍ति‍त्‍वक कल्‍पना करब सेहो असंभव। आन ठाम जकाँ मि‍थि‍लामे सेहो पलायनवाद हाबी भऽ गेल छैक। कोनो आवश्‍यक नै जे पलायनक बाद लोक अपन संस्‍कृि‍तकेँ दड़भंगि‍या प्रभावमे झाँपि‍ कऽ राखि‍ सकथि‍। तँए एहेन पावनि‍क चर्च आधुनि‍क पि‍ढ़ी लग आवश्‍यक। जखन चर्च हएत तँ भऽ सकैछ जे प्रवासी नेनामे ऐ प्रकारक संस्‍कृति‍सँ जुड़ल रहबाक प्रेरणा जागए। मधुश्रावणी वा कोजगराक सदृश सामा चकेबा कोनो जाति‍ वि‍शेषक पावनि‍ नै थि‍क वरन् ई सम्‍पूर्ण मि‍थि‍लाक प्रति‍नि‍धि‍त्‍व कएने अछि‍।
साहि‍त्‍यानुरागी लोकनि‍ ऐ पोथीकेँ रचनात्‍मक कथा (creative story) नै मानताह ई ध्रुव सत्‍य कि‍एक तँ एकर कथा सभा नूतन कल्‍पना नै भऽ कऽ परम्‍परागत शैली आ कथाक प्रति‍रूप थि‍क। ऐ दुआरे रचनाकारक आलोचना सेहो संभव अछि‍। मुदा ई धि‍यान राखब सेहो आवश्‍यक जे अबोध नेनाकेँ क्‍लि‍ष्‍ट साहि‍त्‍यसँ कोनो सि‍नेह नै होइछ। आे तँ महाकाव्‍यक पाँति‍सँ बेसी आनी-मूनी हम नै जानीसदृश अर्थहीन पाँति‍सँ सि‍नेह रखैत अछि‍। तँ चालनि‍ बाढ़नि‍ डेढ़ बि‍तना, जेहन करनी, चारि‍ बटोही बगि‍याक गाछ आदि‍ जनश्रुति‍सँ संबंधि‍त कथानककेँ बाल मनोवि‍ज्ञानसँ संबंधि‍त माननाइ उचि‍त हएत। लेखि‍का पहि‍नहि‍ इमानदारीसँ ई स्‍वीकार कएने छथि‍ जे बाल कालमे बूढ़-पुरानक मुखसँ जे सुनने छलीह तकरा अपन शब्‍दमे कथाक रूप दऽ देलखि‍न।
ऐ पोथीक सबल पक्ष अछि‍ कथा चि‍त्रात्‍मक वि‍वेचन। मोती सायर, लालवन बाबा, गरीबन बाबा, बि‍हुला, सीता आ सुग्‍गा, आयाची मि‍श्र, पक्षधर मि‍श्र आ उगना सन कथा चि‍त्रकेँ तैयार करबामे कतेक मेहनति‍ आ समए लागल हेतनि‍ ओ तँ लेखि‍के कहि‍ सकैत छथि‍। परंच ई चि‍त्र अपन वि‍वि‍ध मूक शैलीमे नेना-भुटकाक संग अवश्‍य वार्तालाप करत। आलोचनात्‍मक पक्षसँ जौं देखल जाए तँ एकरा आन भाषा साहि‍त्‍यक कॉमि‍क्‍ससँ बेसी नै मानल जाएत। मुदा एहेन दीर्घसूत्री आलोचके कऽ सकै छथि‍। कि‍एक तँ ई कोनो कम्‍प्‍यूटरक खेल नै अपन मस्‍ति‍ष्‍कमे उपजल बालउद्वोधनक चि‍त्रात्‍मक शैली थि‍क जे समालोचनाक भयसँ मुक्‍त रहैत लेखि‍का मात्र नेनाक लेल कएने छथि‍।
रंग समंजन सेहो नीक लागल। अंति‍म कि‍छु चि‍त्र श्वेत-स्‍याम रूपेँ देल गेल जइमे नेना स्‍वयं रंगरोगन कऽ सकैत छथि‍।
ऐ पोथीक कथानक परम्‍परागत अछि‍ मुदा शैली आ चि‍त्रांकन नव तँए अपन उद्देश्‍यमे रचनाकार सफल छथि‍।
दुर्बल पक्ष जे चि‍त्रक संग जे कि‍छु कथा देल गेल अछि‍ ओकरा आर वि‍स्‍तृत कएल जा सकैत छल। जेना मोती सायरसँ लऽ कऽ मीरा साहेब धरि‍क चि‍त्रकथामे कथानक एकाएक बदलि‍ जाइत अछि‍। जे सारंश जकाँ लगल। मुदा आशा करैत छी जे नेना सभकेँ नीक लागि‍ रहल होएतनि‍। 

कथा कि‍रणमे यथार्थवोध ओ नारी वि‍मर्श- समीक्षक शिव कुमार झा टिल्लू




मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे समग्र वि‍धाक रचनाक आधारपर डाॅ. ब्रज-कि‍शोर वर्मा मणि‍पद्मकेँ पहि‍ल सम्‍पूर्ण साहि‍त्‍यकार मानल जाइत अछि‍। मुदा जौं जन्‍म क्रमांकक आधारपर ि‍नर्णए कएल जाए तँ काॅचीनाथ झा ‘कि‍रण’ पहि‍ल सम्‍पूर्ण साहि‍त्‍यकार छथि‍। मणि‍पद्म जकाँ कि‍रणजी सेहो साहि‍त्‍यक समग्र वि‍धा उपन्‍यास, वालकथा, एकांकी, नाटक, कवि‍ता संग्रह, महाकाव्‍य, ि‍नबंध संग्रह आ कथा संग्रहक रचना कएलनि‍। पराशर महाकाव्‍य लेल साहि‍त्‍य अकादमी पुरस्‍कार आ ‘कथा कि‍रण’ कथा संग्रहक लेल वैदेही सम्‍मानसँ सम्‍मानि‍त कएल गेलनि‍।

मूलत: काव्‍यात्‍मक प्रवृति‍ ओ अभि‍रूचि‍ राखएबला ऐ साहि‍त्‍यकारक पहि‍ल कथा संग्रह ‘कथा कि‍रण’ सन् 1988ईं.मे भाखा प्रकाशन द्वारा प्रकाशि‍त भेल। सन् 1989ईं.मे कि‍रण जीक देहावसान भऽ गेलनि‍। सन् 1991-92 ईं.मे बि‍हार सरकार द्वारा मैथि‍लीकेँ बि‍हार लोक सेवा आयोगसँ नि‍कालि‍ देल गेल। जइसँ ऐ भाषाक वाचक ओ पाठक लोकनि‍क मध्‍य अस्‍ति‍त्‍व डगमगाए लागल। फलस्‍वरूप महावि‍द्यालय स्‍तरपर मैथि‍ली पढ़एबला छात्रक कमी भऽ गेल। जकर परि‍णाम ई भेल जे ऐ अवधि‍क कि‍छु आगाँ-पाछाँ प्रकाशि‍त रचनाक ओ महत्‍व नै भेटल जकर ओ अधि‍कारी छल।
’कथा कि‍रण’ सम्‍बन्‍धत: ऐ अर्न्‍तद्वन्‍द्वक सभसँ बेशी शि‍कार भेल। कि‍एक तँ हि‍नक ऐ संग्रहसँ पहि‍ने प्रकाशि‍त कि‍छु रचनाकेँ छोड़ि‍ समाजक वि‍भि‍न्न ऊँच-नीच, सि‍नेह-द्वेष आ समन्‍वयवादकेँ स्‍पर्श करएबला कथा साहि‍त्‍य मैथि‍लीमे नै लि‍खल गेल छल। जौं कि‍छु कथाकार ऐ परि‍धि‍सँ ऊपर उठबाक प्रयासमे सफल भेलथि‍ तँ मात्र कि‍छुए कथामे। सम्‍पूर्ण समाजक जर्जर व्‍यवस्‍था दि‍स कि‍नको नजरि‍ पड़बो केलनि‍ तँ कतौ-कतौ। सम्‍पूर्ण कथा संग्रहमे मानवीय मूल्‍यक अवलोकन कथा ि‍करणसँ पहि‍ने हरि‍मोहन झाक चर्चरी, मनमोहन झाक अश्रुकण, ललि‍तक प्रति‍नि‍धि‍, रामदेव झाक एक खीरा तीन फाँक, रमानन्‍द रेणुक कचोट, रमेश नारायणक पाथरक नाव, धूमकेतुक अगुरवान, शेफालि‍का वर्माक अर्थयुग आदि‍मे भेटैत अछि‍ परंच ऐ सभ कथा संग्रहक सभटा कथाकेँ ऐ दृष्‍टि‍सँ सेहो प्रासंगि‍क नै मानल जाए। प्रयोगवादी कथाकार राजकमल जीक ि‍कछु कथा जेना ललका पाग, सॉझक गाछ, उपराजि‍ता आदि‍ मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे अपन बेछप्‍प आधुनि‍क रूप नेने प्रवेश तँ कएलक मुदा हुनको कि‍छु कथा मैथ्‍ज्ञि‍ली साहि‍त्‍यकेँ शि‍ल्‍प आ प्रयोगवादक वि‍श्लेषणक क्रममे अन्‍हार घर नेने चलि‍ गेल।

कथा कि‍रणमे 19 गोट कथा संकलि‍त अछि‍, अलग-अलग कालमे ि‍लखल गेल ऐ कथा सभकेँ शि‍वशंकर श्रीनि‍वासक प्रयाससँ 1988ईं.मे भाषा प्रकाशन द्वारा प्रकाशि‍त कएल गेल अछि‍। आमुख शि‍वशंकरजी लि‍खने छथि‍, जइमे एकटा चर्चित समीक्ष समीक्षक द्वारा आमुखसँ बेसी कि‍रण जीक मनोदशा आ रचना प्रकाशन करएबाक क्रममे कथाकारपर श्री नि‍वास जीक उपकार परि‍लक्षि‍त भेल। वास्‍तवमे समीक्षा वा आमुख ऐ रूपेँ नै लि‍खबाक चाही। आमुखमे एकटा कमी आर देखएमे आएल जे श्रीनि‍वास लि‍खैत छथि‍- कि‍रण जीक प्रारंभि‍क कथा कथ्‍यक स्‍तरपर जतेक धारदार ओतेक सुन्‍दर शि‍ल्‍प नहि‍। मैथि‍ली साहि‍त्‍यक संग ई दुर्भाग्‍यपूर्ण वि‍डंम्‍बना रहल जे मानसि‍क वि‍लासि‍ताकेँ स्‍पर्श करएबला कथाकारकेँ अइठाम शि‍ल्‍पी मानल जाइत छन्‍हि‍। वास्‍तवमे कथाक दू गोट प्रमुख तत्‍व ि‍थक- बि‍म्‍ब आ शि‍ल्‍प। बि‍म्‍बक अर्थ कोनो घरक नेआें आ शि‍ल्‍पक अर्थ ओकर चार, कोरो आ श्रंृगार- चून पालि‍श। जौं बि‍म्‍ब काल्‍पनि‍क तँ शि‍ल्‍प कल्‍पनाशील अवश्य हएत। जखन कल्‍पने करबाक हएत तँ गामक खोपड़ीक कल्‍पना नै कऽ कऽ आगराक ताजमहलक कल्‍पना कएल जाए। कि‍रणजी मात्र यएह अपराध कएने छथि‍ जे आगराक ताज महलकेँ छोड़ि‍ मि‍थि‍लाक गामक मचानपर अपन रचनोमे जीवंत रहलाह, तँए ‘शि‍ल्‍पी’ नै छथि‍। साहि‍त्‍यकार कल्‍पनाशील होइत छैक, मुदा जौं कखनो मोनकेँ धरातलपर आनि‍ कऽ लि‍खैत अछि‍ तँ यथार्थवोधक बि‍म्‍ब समाजक सत्‍यकेँ वृति‍चि‍त्रक रूपमे देखैत अछि‍। कि‍रणजी संभवत: वएह श्रेणीक ययार्थवोधी कथाकार छथि‍।

पहि‍लुक कथा ‘करूणा’ करूणाक नैहरमे स्‍वच्‍छन्‍द जीवनसँ प्रारंभ होइत ओइठाम तक पहुँच जाइत अछि‍ जतए धरि‍ साधारण शि‍ल्‍पी नै पहुँच सकैत छथि‍। यामि‍नीकान्‍त बाबूक सुकन्‍या करूणाक वि‍वाह सुन्‍दरबाबू सँ भेल। नैहरक भगजोगि‍नी कर्त्तव्‍य पथपर भाटक संग सासुरमे आगाँ बढ़ैत छलि‍, वृद्ध पि‍तामही सासु आ मातृ पि‍तृ वि‍हीन जाउत नरेन्‍द्रक संग....। तीन मासक भीतर अजि‍या सासुक देहावसान आ ओकर दू मास बाद श्वसन ज्‍वरसँ पति‍क देहान्‍तक पश्चात करूणा टूटि‍ गेलीह। प्राचीन आर्य संस्‍कृति‍ जकरा जनभाषामे सनातन कहल जाइछ, रूढ़ि‍वादि‍ताक आवरणसँ अखन धरि‍ ओझराएल अछि‍। जे लोक समाजक मुख्‍य धारासँ कात लागल छथि‍, ओ ऐ कथा कथि‍त सनातन संस्‍कृति‍क आधारपर संस्‍कार तँ करैत छथि‍, मुदा ओइमे ओझराएल नै‍। ऐ दृष्‍टि‍सँ समाजक पछाति‍क लोककेँ बेसी वि‍चारवान मानल जाए। अगि‍ला लोकमे बाहरी आडंवरकेँ मनवाक क्रममे कि‍छु कुव्‍यवस्‍था उत्‍पन्न भऽ गेल। संभवत: ई कथा सनातनधर्मी ब्राह्मण परि‍वारकेँ धि‍यानमे राखि‍ कऽ लि‍खल गेल। भऽ सकैछ कथाकारक र्इ कल्‍पना हुअनि‍, मुदा ऐ प्रकारक घटना वास्‍तवमे एखन धरि‍ होइत अछि‍ जे सवर्ण परि‍वारक वाल वि‍धवा सुकन्‍याकेँ सेहो पुनर्विवाह करबाक समाजमे मान्‍यता नै गेल, जइ समैमे ई कथा लि‍खल गेल ओइ समैमे स्‍थि‍ति‍ तँ आर दयनीय छल।

‘करूणा’ कथा वि‍षम पि‍रस्‍थि‍ति‍मे आगाँ बढ़ैत अछि‍। एकटा वालि‍का नरेन्‍द्रकेँ तकैत करूणा घर पहुँचलि‍। नरेन्‍द्र अपन मातृकमे छल। करूणा एकसरि‍ छली। वालि‍का चकि‍त होइत प्रश्न कएलनि‍, ‘एकसरि‍ डऽर नहि‍ लगैत अछि‍। अपन जीवनकेँ जीवन्‍त लहासक रूपमे करूणा वाजलि‍- ककर डऽर वास्‍तवमे भूत-परेत एकटा भावनात्‍मक रूपसँ शून्‍य प्रणीक लेल डरक साधन नै बनि‍ सकैछ। की छन्‍हि‍ जे चोर आओत? मुदा बालि‍का प्रश्न कएल जे जौं अपने उठा लि‍ए?  प्रकारक प्रश्नसँ करूणा स्‍तब्‍ध भऽ गेली। एकटा नारीक मर्यादा समाजक दृष्‍टि‍मे जे महत्‍व राखए, मुदा ओकरा लेल सर्वोपरि‍। समाजक उदाहरण यएह लेल जे ऐ समाजक नीच लोकसँ लऽ कऽ वि‍चारवान वर्गक कि‍छु लोक सेहो अवलाक चरि‍त्र हननसँ वाज नै आएल अछि‍। करूणा भवि‍ष्‍यक डरसँ काँपि‍ अपन सुन्नर रूपकेँ भयावह बनएबाक लेल उद्धत भऽ गेली। परि‍स्‍थि‍ति‍ सेहो संग देलकनि‍ जे बच्‍चाबाबूक माथ परक चाम उज्‍जर देख करण पुछलनि‍ तँ पता चललनि‍ जे सल्‍फ्यूरि‍क एसि‍ड अर्थात् तेजाप प्रयोगशालामे पड़ि‍ गेल।

बच्‍चाबाबूकेँ अपन घरसँ वि‍दा करैत देरी तखापर राखल स्‍ल्‍फ्यूरि‍क एसि‍ड अपन मुँहपर ठाढ़ि‍ करूणा रूपवतीसँ जीवि‍त पि‍चाशक रूपमे आबि‍ गेलीह?
आब प्रश्न उठैत अछि‍ जे करूणाकेँ एना कएलासँ की भेटल? भेटबाक प्रश्न तँ नै मुदा हुनक चरि‍त्रहरणक आशंका हुनका मोने समाप्‍त भऽ गेल। जौं एकटा मातृ-पि‍तृ वि‍हीन बालकक दायि‍त्‍व नै रहतनि‍ तँ आत्‍महत्‍या सेहो कऽ सकैत छलीह। यएह थि‍क देवी भक्‍ति‍क केन्‍द्र मि‍थि‍लामे देवीक दशा। नारी ि‍वमर्शक एकरूपक यथार्थचि‍त्रण कि‍रणजी कएलनि‍। कनेक कमी जे कथाक प्रारम्‍भ सरल शब्‍दमे सेहो कएल जा सकैत छल मुदा साहि‍त्‍यक पुरा रूपक शब्‍दमे कथाकेँ प्रवेश करा कऽ कि‍रणजी ओइ वि‍चारवान समीक्षकक दृष्‍टि‍मे अपन स्‍थान बनएलनि‍ जनि‍क मान्‍यता छन्‍हि‍ जे भाषा उच्‍च कोटि‍क हुअए, जकर अर्थ सभ मैथि‍ल नै लगा सकथि‍ ओ वास्‍तवि‍क रचना थि‍क। भऽ सकैत अछि‍ जे कथाकार ऐ प्रकारक शब्‍द सभसँ कथाक सहज रूपेँ कएने होथि‍, वा मूलत: कवि‍ रहनि‍हार कि‍रण अपन काव्‍यात्‍मक प्रवृति‍केँ नै झाँपि‍ कवि‍ताक बि‍म्‍बकेँ कथाक रूप दऽ देने होथि‍। जौं ई कथा काव्‍य रहि‍तए तँ मैथि‍ली साहि‍त्‍यक लेल वि‍स्‍मयकारी क्षण होइतए जखन करूणा.... महाकाव्‍यक नायि‍का बनि‍ मि‍थि‍लाक मानस पटलपर वि‍चरण करि‍तथि‍। दोसर जे कनेक नकारात्‍मक वि‍न्‍दु भेटल ओ अछि‍ करूणाक अपन आभा नष्‍ट करबाक दृष्‍टि‍कोण। यथार्थबोधी कथाकारकेँ अइठाम क्रांति‍वादी दृष्‍टि‍कोण स्‍पष्‍ट करबाक चाहि‍यनि‍, मुदा कि‍रणजी सन सि‍द्धहस्‍त रचनाकारक सोच सेहो समाजमे क्रांति‍ नै सोचि‍ सकल।

हम सम मि‍थि‍लामे रहैत छी, एकटा उतर आधुनि‍क सोच की कहल जाए आधुनि‍क दृष्‍टि‍कोणसँ दूर मि‍थि‍ला.... जइठाम एखनो वि‍धवाकेँ पुनर्विवाह की कहल जाए कोनो आन कन्‍याक वि‍वाह संस्‍कारक ऐहब नै बनाओल जाइत अछि‍। फ्रांसक राज्‍यक्रांति‍ हुअए वा यूरोपक धर्म सुधार आन्‍दोलन सभमे साहि‍त्‍यक अपन महत्‍व अछि‍, मुदा ई आर्यावर्त्त थि‍क अइठाम साहि‍त्‍य मनोरंजन मात्रक साधन मानल जाइत अछि‍, प्रेरणाक स्रोत नै। वास्‍तवि‍कता सेहो छैक जे साहि‍त्‍यकारकेँ अपन लेखनीक दृष्‍टि‍कोणकेँ अपन जीवनमे सेहो जोड़ि‍ देवाक चाही, नै तँ समाज मान्‍यता कोना देतनि‍ वा ओ साहि‍त्‍य प्रेरक कोना हएत? कि‍रणजी करूणा सन दृष्‍टि‍कोण रखैत हेताह कि‍एक तँ हुनकाे जन्‍म अही समाजमे तँए क्रांति‍वादी नै बनि‍ ‘करूणा’क नाश देखा देलनि‍। ओइ प्रकारक नाश जे जइसँ नीक मृत्‍यु। मुदा सम्‍यक सोचबला कि‍रणजी केँ अइठाम कनेक क्रांति‍वादी बनि‍ करूणाक पुनर्विवाह देखएबाक चाहि‍यनि‍। यथर्थादोषी साहि‍त्‍यकारकेँ सेहो समाजमे वि‍चार उत्पन्न करएबाक लेल क्रांति‍वादी बनब साहि‍त्‍यक लेल अनि‍वार्य नै तँ आडंवरकेँ समर्थन करएबला ऐ प्रकारक साहि‍त्‍यकेँ पढ़नि‍हार लोक दोष साहि‍त्‍यकारेपर देत।

दोसर कथा ‘एहि‍ चारि‍ खूनक खोज केनि‍हार के?’ अर्थनीति‍केँ धि‍यानमे राखि‍ कऽ लि‍खल गेल। कथाक प्रारंभमे कथाकार ब्राह्मणवादी व्‍यवस्‍थापर कनेक कटाक्ष कएलनि‍, ‘पंडि‍त जे कहथि‍ से करी मुदा जे करथि‍ से नहि‍ करी’ अर्थात् अग्रसोची समाजक धर्मपालक जाति‍क कर्म आ कथनमे भि‍न्नता अछि‍। वास्‍तवि‍कता सेहो अछि‍‍ पंडि‍त वि‍द्याध्‍ययन आ नीति‍ अध्‍ययनक आधारपर उचि‍त वचन तँ अपन मुखसँ वजैत छथि‍, मुदा मात्र होसराक लेल अपन लेल नै।
एे कथामे सेहो एकटा सत्‍कर्मी परेमा अपन स्‍वाभि‍मानक संग जीवन तँ प्रांरभ कएलक मुदा सम्‍पति‍यासँ वि‍वाहक वाद साधनहीन परेमाक स्‍वाभि‍मान परि‍स्‍थि‍ति‍वश डगमगा गेल। अपन नेनाकेँ जीवि‍त रखबाक लेल हलुआइक दोकानमे कि‍छु भोजन सामग्री तकैत पकड़ल गेल। पुलि‍स अपन काज कएलक एकटा भोजन चोरि‍ करबाक प्रयास करैबला चोरकेँ डकैत बना कऽ सातवर्ष कठोर कारावास दि‍आ देलक। न्‍यायालयमे परेमाकेँ न्‍याय नै भेटल कि‍एक तँ ओकर गप्‍प सुनत के?

परेमा जहलसँ छूटल तँ अर्थहीन परि‍वारक सभ जन समाप्‍त......।
अर्थनीति‍क ई कथा समाजक अंति‍म व्‍यक्‍ति‍पर प्रारंभ भऽ ओकर अंतसँ समाप्‍त भेल। कि‍रण जीक ई कथा यथार्थबोधी मानल जा सकैत अछि‍। अइमे क्रांति‍क कोनो गुंजाइश नै कि‍एक तँ शि‍क्षा आ भौति‍क साधनसँ वि‍हीन मानब सरकारी तंत्रक वि‍रूद्धमे कोना आन्‍दोलन करए, वादमे परेमा कतए जाए कि‍एक तँ ओ वि‍क्षि‍प्‍त भऽ गेल।
‘काल ककरो छोड़त’ एकटा राजपरि‍वारक कथा थि‍क। महाराज दीर्घवाहु अपन मृत्‍युकालमे अपन राज्‍य आ अपन पाँच वर्षक वालक सुन्‍दर अपन छोट भाए वीरवाहुकेँ सौंपि‍ ऐ संसारसँ वि‍दा भेलनि‍। कालान्‍तरमे वीरवाहु अपने वास्‍तवि‍क राजा कहएबाक लेल अपन भाति‍जकेँ मारि‍ देलनि‍। ई दृश्य वीरवाहुक पुत्र शंकर देखलक आ पि‍तृहन्‍ता बनि‍ गेल। शंकरक स्‍त्री राधा दोसर पड़ोसी युवक रमेशसँ प्रेम करैत छलि‍, ओ सेहो ‘महाजनोयेन गत: स पंथा’क आधारपर शंकरक हत्‍या कऽ देलथि‍न। अंतमे कथाकार ई प्रश्न छोड़ि‍ कथाक इति‍श्री कएलनि‍- ‘काल की राधाकेँ छोड़तनि‍? वास्‍तवमे एकरा कथा नै मानल जाए ई थि‍क कथाकारक वि‍राट जीवन दर्शन ओ शैक्षणि‍क योग्‍यताक एकटा चि‍त्र। इति‍हास साक्षी अछि‍ धनलोलुपता ओ राजपदक आशमे कतेक शासक संबंधक मर्यादाकेँ ि‍वसरि‍ गेल छलथि‍। लोभ पापक कारण होइछ। लोभ माली अपन फूलवारीक फूलसँ सेहो करैत अछि‍, एकटा पति‍ अपन पत्नीक सौन्‍दर्यसँ सेहो करैत अछि‍ मुदा ओ ि‍थक मर्यादापूर्ण अधि‍कारक लोभ। अमर्यादि‍त ओ अवांछि‍त लोभक परि‍स्‍थि‍ति‍मे लोक अपने नाश करैत अछि‍। प्रलाप, समाजक चि‍त्र, धर्मरत्नाकर, चनटा, जाति‍ पाँति‍क जाड़ू आदि‍ कथा सेहो समाजक अग्रआसनपर बैसल लोकक समाजक अंति‍म व्‍यक्‍तक प्रति‍ दृष्‍टि‍कोणकेँ स्‍पष्‍ट करबैत अछि‍। ऐ प्रकारक कथा जइमे सम्‍पूर्ण समाजक स्‍थि‍ति‍क चर्च हुअए ललि‍त आ जगदीश प्रसाद मंडलकेँ छोड़ि‍ कि‍रण जकाँ केओ नै कएलक। मुदा सभटा कथा यथार्थचि‍त्रण तँए श्रीनि‍वासजी हि‍नका शि‍ल्‍पीक संज्ञा दइमे संकोच कएलनि‍। वास्‍तवि‍कता अर्थात् इजोतसँ डर कल्‍पना अर्थात अन्‍हारसँ प्रेम मैथि‍ली साहि‍त्‍यक प्रवृति‍ रहल छैक तँए कि‍रणकेँ ओ स्‍थान नै भेटल जकर ओ अधि‍कारी छथि‍। ऐ संग्रहक सभसँ वि‍लक्षण कथा थि‍क- मधुरमनि‍। अपन साहि‍त्‍यक ि‍कछु चर्चित कथामे एकर स्‍थान अछि‍। एकटा नि‍म्नवर्गीय समाजक मुँहजोरि‍ मुदा स्‍वस्‍थ आ कर्मशील नारी मधुरमनि‍ अपन शरीरसँ असमर्थ पति‍क प्रति‍दायि‍त्‍व रखैत अछि‍। मधुरमनि‍क कठोरवाणीसँ उद्वि‍ग्‍न भऽ ओकर पति‍ मोचन घरसँ पड़ा गेल। मधुरमनि‍ पोटि‍ कऽ फेर ओकरा घरमे आनि‍ लेलक। सतना माय जखन मोचनक आलोचना मधुरमनि‍ लग करैत अछि‍ तँ मधुरमनि‍ सतना मायपर तीक्ष्‍ण शब्‍दवाण चला कऽ ओकरा चुप करा दैत अछि‍। ‘पि‍ट्ठा पहलमान लऽ कऽ हम की करब जे भरि‍ दि‍न डेङवि‍ते रहत।’ वास्‍तवमे सतना मायक शरीरसँ मजगूत पति‍ खूब पि‍टाइ करैत छल। यएह थि‍क हमरा सबहक समाजक नारीक पति‍क प्रति‍ सि‍नेह ओ अपन पति‍केँ कि‍छु कहि‍ सकैत छथि‍, मुदा दोसर कि‍ए कहत? अइमे अधि‍कार आ सि‍नेह दुनू भेटैत अछि‍।

ऐ प्रकारे वि‍हनि‍ कथाक ऐ संग्रहकेँ युगान्‍तकारी तँ नै मानल जा सकैत अछि‍ मुदा समाजक वास्‍तवि‍क दशाक वि‍वेचन आ तर्कपूर्ण शैलीसँ ई संग्रह अपन अलग स्‍थान रखैत अछि‍।


पोथीक नाअाें- कथा कि‍रण
रचनाकार- डाॅ. कान्‍चीनाथ झा ‘कि‍रण’
प्रकाशक- भाषा प्रकाषन पटना
वर्ष- 1988ईं.     

आशु कवि‍त्‍वक हृदयांतरि‍क कि‍लोल- कलानि‍धि- समीक्षक शिवकुमार झा "टिल्लू"


महााकवि‍ वि‍द्यापति‍क वाद मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे आशु कवि‍क जे श्रृंखला काव्‍य साहि‍त्‍यकेँ गति‍मान केलक ओइमे वि‍वि‍ध कारणसँ कि‍छु काव्‍य प्रति‍भा झाॅपले रहि‍ गेल। ओहेन आशु कवि‍मे कालीकान्‍त झा बूचसेहो एकटा नाअों अछि‍। सन् 1934ईं.मे महान दार्शनि‍क उदयनाचार्यक जन्‍म ओ कर्मस्‍थली समस्‍तीपुर जि‍लाक करि‍यन गाममे जन्‍म नेनि‍हार कवि‍ कालीकान्‍त झा बूचअपन काव्‍य साधनाक श्रीगणेश हि‍न्‍दी साहि‍त्‍यसँ कएलनि‍, परंच कि‍छुए हि‍न्‍दी कवि‍ताक रचनाक पश्श्चात अपन मातृभाषामे लि‍खए लगलथि‍, फेर हि‍न्‍दीमे लि‍खबाक कोनो जि‍ज्ञासा नै, कोनो योजना नै। कवि‍ आ पाठकक मध्‍य रचनाक अभि‍व्‍यक्‍ति‍क साधन मि‍थि‍ला मि‍हि‍र, माटि‍-पानि‍ आ मैथि‍ली भाषा सन पत्रि‍का छल। ऐ पत्रि‍का सभकेँ बन्न भेलापर कवि‍क कवि‍ता गामक कि‍छु लोकक मध्‍य मनोरंजन मात्रक साधन रहि‍ गेल, कवि‍ता पन्ना फाटल आ कवि‍क रचना गुम्‍म। बहुत रास रचना अप्रकाशि‍त रहि‍ लुप्‍त भऽ गेलनि‍। जे कि‍छु उपलब्‍ध भऽ सकल ओकरा वि‍देहक सौजन्‍यसँ श्रुति‍ प्रकाशन द्वारा प्रकाशि‍त कएल गेल। दुभाग्‍य अछि‍ जे कवि‍क मृत्‍यु 2009ईं.मे आ कवि‍ता संग्रह 2010ईं.मे। एकरा ककर दुर्भाग्‍य मानल जाए मैथि‍ली साहि‍त्‍य वा कवि‍क एकर ि‍नर्णए पाठक कऽ सकैत छथि‍। कि‍एक तँ सन् 1970ईं.सँ 1984र्इं.क मध्‍य मि‍थि‍ला मि‍हि‍रक लोक प्रि‍य कवि‍मे जनि‍क गणना होइत छल ओकर रचनाक केतौ कोनो चर्च नै, कोनो प्रोत्‍साहन नै। एे सभ उपहासक दंशसँ आकुल भऽ कवि‍ गंभीर आ वि‍चारमूलक रचना लि‍खब छोड़ि‍ भक्‍ति‍, हास्‍य आ चुटुक्काक संग-संग गामक वि‍याह सबहक अभि‍नंदन पत्र लि‍खए लगलथि‍। जइ कवि‍केँ कहि‍ओ मधुपजी सन कवि‍ चूड़ामणि‍क प्रशंसा पत्र भेटैत छल ओ मैथि‍लीक लेल अछोप बनि‍ गेल। मात्र डाॅ. दुर्गानाथ झा श्रीश, डाॅ. वि‍द्यापति‍ झा, डाॅ. नरेश कुमार वि‍कल सन कि‍छु साहि‍त्‍यकार कतौ-कतौ हि‍नक चर्च केने छथि‍, जइ लेल मैथि‍ली साहि‍त्‍य हि‍नका सभसँ कृतज्ञ रहत।
      श्री गजेन्‍द्र ठाकुरक वि‍शेष प्रयाससँ जे हि‍नक कवि‍ता संग्रह प्रकाशि‍त भेल, ओकर नाओं अछि‍-कलानि‍धि‍ कलानि‍धि‍क अर्थ होइछ चन्‍द्रमा, ऐ संसारकेँ छोड़ि‍ देलाक बाद संग्रह आएल तँए अाकाशीय पि‍ंड जकाँ मात्र दर्शनीय नाओं देल गेल।
      आशु कवि‍क कोनो बंधन नै छैक आ ने ओ अतुकांत कवि‍ता जकाँ योजना बना कऽ कवि‍ता लि‍खैत अछि‍ तँए समीक्षक लोकनि‍क दृष्‍टि‍मे कि‍छु कवि‍ता अप्रासंगि‍क भऽ सकैत अछि‍।
कवि‍ बूचकवि‍ताक रचना प्राय: गाबि‍ कऽ करैत छलाह, जखन जे फुरेलनि‍ गीत जकाँ लि‍खि‍ देलनि‍। तँए गोष्‍ठीक मंचपर सेहो मात्र गबैए  रहि‍ गेला। श्रृंगार, हास्‍य, वि‍रह, भक्‍ति‍ ओ वि‍चार मूलक कवि‍ता सभमे कोनो कालक बंधन नै अछि‍। भक्‍ति‍काल, रीति‍कालसँ लऽ कऽ उत्तर आधुनि‍क साहि‍त्‍यकाल धरि‍क परि‍वेशकेँ बूच अपन कवि‍ता सभमे समेटने छथि‍। तँए कि‍छु रचनाकेँ घसल-पि‍टल सेहो मानल जा सकैछ।
अपन काव्‍य रचनाक श्री गणेश कवि‍ गंभीर लेखनसँ कएने छलाह, मुदा ऐठाम सरस्‍वती वंदनासँ कएल गेल। भक्‍ति‍ रसमे कवि‍ बहुत रास कवि‍ता लि‍खने छथि‍। रामचरि‍त मानसक हि‍नका वि‍शेष ज्ञान छलनि‍ तँए भक्‍ति‍ मूलक कवि‍तामे ओइ युगक घटना स्‍वभावि‍क अछि‍, मुदा मि‍थि‍लाक भक्‍ति‍ शक्‍ति‍ अराधना तँ मातृगीतकेँ वि‍शेष महत्‍व देल गेल। भऽ सकैछ ऐ प्रकारक वकि‍ता उत्तर आधुनि‍क मैथि‍ली साहि‍त्‍यक लेल वि‍शेष महत्‍वपूर्ण नै हुअए मुदा जइठाम भाषा सुशुप्‍त भऽ गेल हो ओइठाम भक्‍ति‍ मूलक गीत भाषाक समृद्धि‍क लेल अनि‍वार्य, कि‍एक तँ आर्य परि‍वारक सभ लग्‍नमे स्‍त्रीगण देवोपराधनाकेँ वि‍शेष महत्‍व दैत छथि‍। यएह कारण अछि‍ जे मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे सभसँ लोकप्रि‍य पद्य वि‍द्यापति‍क बाप प्रदीप मैथि‍ली पुत्र जीक जगदम्‍ब अहीं अवलम्‍ब हमरभेल अछि‍। कवि‍श्चकेँ सीताराम झा वा प्रदीप मैथि‍लीपुत्र जकाँ लोकप्रि‍यता नै भेटल मुदा हि‍नक भक्‍ति‍ पद्य सभमे जे झंकार अछि‍ ओकर अपन अलग अस्‍ति‍त्‍व मानल जाए-
सद्य: सुधा सि‍न्‍धु स्‍नात, मॉजल गंगा जलसँ गात
सेवक खाति‍र तजलनि‍ नवरतनक रजधानी अय
मणि‍द्वीपक महरानी अय ना.....।
जेना रवि‍ भूषण जी आमुखमे लि‍खने छथि‍ जे कवि‍ रामकेँ प्रवासी कहलनि‍ बनवसी नहि‍, ऐ प्रकारक दृष्‍टि‍कोण पि‍तृ: आज्ञा पालनाय अर्थात पि‍तृभक्‍ति‍ आ संबंधक मर्यादामे क्रांति‍कारी दृष्‍टि‍कोणकेँ वि‍शेष महत्‍व देवाक लेल आदरनीय मानल जाए-
भ्‍क्‍ति‍ मूलक एकटा गजलमे राधा कृष्‍णक सि‍नेह केर अनुशासि‍त चि‍त्रण गजलमे भक्‍ति‍क बोर मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे वि‍रले भेटैछ-
श्‍याम होइछ परक प्रेम अधलाह हे,
तेँ वि‍सरि‍ जाह हमरा वि‍सरि‍ जाह हे।
कवि‍क श्रृंगार मूलक पद्यमे वि‍चार, अनुशासि‍त सि‍नेह, वैराग्‍य आ जीवन दर्शन मर्म स्‍पर्शी अछि‍। कतौ कोनो अवांछि‍त प्रेमकेँ प्रोत्‍साहन नै, कतौ अशोभनीय शब्‍द नै। भाषा सरल आशुगीत मुदा लोकप्रि‍यता लेल लि‍खल गेल चलन्‍त नै। अतुकांत कवि‍तामे बि‍म्‍ब वि‍श्लेषण करबाक लेल व्‍यवधान नै होइत छैक कि‍एक तँ ताल-मात्राक बंधन नै। आशु कवि‍तामे बंधन रहि‍तो जौं बि‍म्‍ब वि‍श्‍लेषण बोधगम्‍य आ हृदयान्‍तरि‍क स्‍पर्श करैत हुअए तँ कवि‍ता आर लोकप्रि‍य कि‍एक नै मानल जाए-
जाहि‍ बाटकेँ नित्‍य बहारी
हम तीतल ऑचरसँ झारी
जकरा अपनामे रखने अछि‍
हमर आँखि‍ ई कारी-कारी
आइ ताहि‍ पर कि‍एक अलासि‍त गति‍सँ आबै छी   
रातु बीच चान पर तपि‍-तपि‍ ध्‍यान लगाबै छी...।

दोसर पद्य वि‍रहि‍नीमे कृष्‍णक अवाहनक आशमे अश्रुउच्‍छवाससँ आकुल राधाक व्‍यथा रीति‍-प्रीति‍क हि‍लकोरसँ भरल मानल जाए-
अहँक रूप राखि‍ नैन युग-युगसँ जागलि‍ छी
मुरलीक मधुर बैन गुनि‍-गुनि‍ कऽ पागलि‍ छी
परकीया पति‍ता हम प्रेमक पुजारि‍नकेँ
नहि‍ चाही गीताक ज्ञान
आऊ-आऊ रूसल हमर भगवान....।

एकदि‍श कवि‍ तोहर ठोर कवि‍ताक माध्‍यमसँ प्रेमि‍काक सौन्‍दर्यक गुणगान ठोरकेँ केन्‍द्र बि‍न्‍दु बना कऽ करैत अछि‍। प्रेमी प्रेमि‍काक ठोरकेँ स्‍पर्थ जौं नैति‍क रूपसँ नै कऽ सकत तँ राहुक रूप धारण कऽ जबरदस्‍ती करत एहूमे जौं सफलता नै तँ भगवानसँ प्रार्थना कऽ कऽ पुर्नजन्‍ममे धान बनि‍ प्रेमि‍का पातपर चि‍ष्‍टान्न अर्थात् भात वा खीरक रूपेँ पड़त आ प्रेमि‍का स्‍वत: प्रेमी रूपी भातकेँ ठोरसँ सटा लेतीह-
बनव हम पुर्नजन्‍ममे धान,
धानसँ भऽ जाएब चि‍ष्‍टान्न
पड़ब पुनि‍ अहँक प्रतीक्षापात
अछि‍ंजलसँ सद्य: स्‍नात....।

दोसर दि‍स कवि‍ समाजकेँ सि‍नेहमे मर्यादाक सीमा नै लंघबाक ि‍नर्देश सेहो दैत छथि‍-
नहि‍ श्रंृगार रौद्र हुंकारे
हम एहि‍ पार अहाँ ओहि‍ पारे
दुहूक बीच कठोर कर्तव्‍यक
भरल अथाह भयंकार नाला
सुरभि‍त अहँक सि‍नेहक माला...।

वि‍रह, श्रंृगारक स्‍पंदन होइत छैक, जौं वि‍रह नै हुअए तँ मि‍लन आनंदक अनुभूि‍त कोना कराएत। ऋृतु वर्णनकेँ मूलाधार बना कऽ कवि‍ वसन्‍ते-वि‍रहि‍नीकवि‍ता लि‍खलक, अचल जीव अर्थात् गाछ-वृक्ष वसंतक नशामे मॉतलि‍ छथि‍ मुदा पति‍सँ दूर वि‍रहि‍नीक लेल वसंतक कोन प्रयोजन-
रहलहुँ शेष राति‍ भरि‍ जागलि‍,
हुनक दोष की हम अभागलि‍
रसक अथाह सि‍न्‍धु छल उछलल
प्राण मुदा बुन्ने लय वि‍ह्वल
घर-घर अकाशे चन्ना धरती अन्‍हार गय.....।

अर्न्‍तमनक जुआरि‍केँ कि‍यो झाँपि‍ सकैत अछि‍, कवि‍क दृष्‍टि‍ भनहि‍ रवि‍क प्रकाशसँ दूर चालि‍ जाए, मुदा कवि‍ता जौं शान्‍तचि‍त्त भऽ कऽ पढ़ल जाए तँ अपन व्‍यक्‍ति‍गत जीवनकेँ कवि‍सँ झाँपब असंभव। उदासीशीर्षक कवि‍तामे कवि‍ कि‍ए उदास अछि‍, चानक मुख ि‍कए मलीन भऽ गेल ई तँ नहि‍ कहल जा सकैत मुदा ककरो देल व्‍यथासँ कवि‍क मोन अवश्‍य हहरि‍ गेल छन्‍हि‍-
ककरा पर रूपसि‍ करी आश
ई कल्‍पो वि‍टप बबूर भेल
रोपल अभि‍सि‍चि‍ंत वर प्रवाल
बढ़ि‍ जेठक ठुट्ठ खजूर भेल...।

यात्री, आरसी आ चन्‍द्रभानु जकाँ कवि‍ भौति‍कतामे अपन समाजक मध्‍य शि‍खर स्‍थान नै रखलक, अर्थयुगक देल पीड़ा एकरा इमानदार साधारण कर्मचारी लेल असहनीय तँए करूण गीतबनि‍ उपटि‍ गेल-
कटि‍ रहल कि‍ए ई कला इन्‍दु
घटि‍ रहल कि‍ए जीवन प्रकाश
रजनीक रूदन वि‍गलि‍त प्रभात
कऽ रहल कि‍ए अति‍शय उदास.....।

हि‍नक वि‍चार मूलक कवि‍ता सभमे सेहो सि‍नेहसँ वेशी वैराग्‍यक बोध होइत अछि‍। जीवनक अंति‍म अवस्‍था धरि‍ कवि‍ पारि‍वारि‍क र्धमे बान्‍हल रहल कोनो दबाबमे नै, अपन आत्‍मीयतासँ समाजकेँ सर्वे भवन्‍तु नि‍रामया रूपेँ ेदेखलक मुदा व्‍यक्‍ति‍गत जीवनमे ठोप-ठोप चारक चुआठकेँ ऑगुरसँ उपछैत रहल छीलि‍खबाक कि‍ए आवश्‍यकता पड़ल? हास्‍य कवि‍ता पाठ सुनि‍ पाठक हँसैत छथि‍, वा मर्म स्‍पर्शी रचनापर कनैत छथि‍ परंच कवि‍सँ कि‍यो नै पुछैत अछि‍ जे ओ ऐ प्रकारक पद्य कि‍ए लि‍खलनि‍। बूचक व्‍यथा सेहो झॉपले चलि‍ गेल मुदा एतेक तँ हम नि‍श्‍चि‍त रूपेँ कहि‍ सकैत छी जे अपन जीवनक व्‍यक्‍ति‍गत संघर्षक संग-संग कवि‍ साहि‍त्‍यकार मंडलीमे अपन महत्‍व नै देख- एकला चलो रेक आधारपर अपन साहि‍त्‍यि‍क कृति‍केँ सेहो एकात कऽ लेलक-
दुनि‍या हमर एकातक गहवर
भेल जीअत मुरूतक स्‍थापना एहि‍ जीवनमे...।

एकर परि‍णाम स्‍वरूप कवि‍ मैथि‍लीक अस्‍ति‍त्‍वपर सेाहे प्रश्नचि‍न्‍ह लगा देलक-
चन्‍दा सुमन यात्री मधुपक
जुनि‍ करू ओ आबि‍ रहल अछि‍
हेती मैथि‍ली सभसँ कात......।

वास्‍तवमे कवि‍ मि‍थि‍ला-मैथि‍लीमे जाति‍, क्षेत्र आदि‍क आधारपर परसल भेदभावसँ आहत अछि‍, जाति‍वाद तँ सम्‍पूर्ण आर्यावत्तक अस्‍तत्‍वक कलंकि‍त कएने अछि‍, मुदा कोनो भाषामे जौं जाति‍क आधारपर भेद हएत तँ एकरा की कहल जाए? मैथि‍ली ऐ भंवरजालमे एना ओझरा गेल छथि‍ जे ब्राह्मणोमे भलमानुष आ जयवारक मध्‍य अभि‍व्‍यक्‍ति‍क अंतर आन जाति‍केँ रूढ़ि‍वादी भाषाधि‍कारी लोकनि‍ कोना मोजर देथि‍।  कवि‍ 1978ईं.मे जागरणगान लि‍ख अपन वयनानुरागकेँ पसरबाक प्रयास कएलनि‍-
असम वंग पंजाव गुजरात जागल
अहीं टा पड़ल छी उठू औ अभागल
हरण भऽ रहल अछि‍ हमर मीठ वयना
कोना कऽ सि‍खत आन बोली ई मयना....।

स्‍वागत गानक वि‍षयमे आमुखमे रि‍व भूषणजी आ गजेन्‍द्र ठाकुरजी वि‍शेष चर्च केनहि‍ छथि‍। संभवत: ऐ प्रकारक स्‍वागतगान जकरा व्‍यथागान सेहो कहल जा सकैत छैक मैथि‍लीमे तँ नि‍श्चि‍त नै लि‍खल गेल हएत। गजेन्‍द्रजी कवि‍ बूचकेँ वि‍द्यापति‍क बाद सभसँ लयात्‍मक कवि‍ मानलनि‍ ऐ गप्‍पपर समालोचक लोकनि‍ नि‍श्चि‍त प्रश्न ठाढ़ करताह मुदा एतेक तँ अवश्‍य सत्‍य अछि‍ जे आरसी आ यात्रीक पश्चात एहेन समन्‍ववादी आशुकवि‍ मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे नै भेटत।
एखन कि‍छु लोक मि‍थि‍ला राज्‍यक लेल पगहा तोड़ि‍ कऽ चि‍चि‍आ रहल छथि‍। समाजक मध्‍य समन्‍वयवाद नै रहत तँ मि‍थि‍ला राज्‍यक कल्‍पना करब सेहो असंभव। अगि‍ला आसनपर बैसल लोककेँ समाजक कात लागल वर्ग जकर संख्‍या बारह आना अछि‍, मि‍थि‍ला राज्‍यक पुरौधा कोना मानत, कि‍एक तँ ऐ उपेक्षि‍त लोक सभकेँ मैथि‍ल मानले नै गेल। ऐ वि‍षयपर कवि‍ 30 वर्ष पहि‍नहि‍ मि‍थि‍ला दु:दशानाओंसँ कवि‍ता लि‍खलक-
राज्‍यक की बात कठि‍न पाॅचोटा गाॅव गय....।

कवि‍क पोटरीमे पलायनवादक वि‍रोध सेहो अछि‍। बाल साहि‍त्‍य सन वि‍षयपर दीनक नेनासन मर्म स्‍पर्शी आ पोताक अट्ठाहाससन हास्‍य कवि‍ता लि‍ख कवि‍ प्रमाणि‍त केलक जे बाल साहि‍त्‍य ओछ वि‍षय बि‍म्‍ब नै थि‍क। भऽ सकैछ कि‍छु हास्‍य कवि‍ताकेँ लोक मात्र मंचक गबैयाक गीत बुझथु मुदा ओहू सभमे गंभीर दृष्‍टि‍कोण झापल छैक- मात्र अपन संस्‍कृति‍क वि‍स्‍मयकारी वि‍षय दृष्‍टि‍कोणपर कवि‍ प्रहारेटा नै केलक आ मात्र काटर प्रथा सन कलंककेँ उघारे नै केलक संग-संग अपन संस्‍कृति‍क सि‍क्कड़ि‍केँ सेहो अप्‍पन मि‍थि‍लाकवि‍तामे पि‍जौलक, परंच ओइमे लागल जगपर कवि‍ व्‍यथि‍त सेहो भेल-
गंगो दीदी चाह बनावथि‍,
कमला बेटी पान लगावथि‍
कोशी वहि‍ना धान कुटै छथि‍
वागमती सि‍दहा फटकै छथि‍
घऽरक लक्ष्‍मी वि‍हुंसथि‍ मॉझ ओसार अप्‍पन मि‍थि‍ला.....।

ओना ई गप्‍प ओतबे सत्‍य सेहो अछि‍ जे कवि‍ कि‍दु नि‍रर्थक कवि‍ता सेहो लि‍खने छथि‍। जकर देशकालक दशासँ कोनो संबंध नै। जेना डहकन, हमर गाम अादि‍। ऐ प्रकारक कवि‍ताकेँ साहि‍त्‍यक वि‍कासमे कोनो योगदान नै, वरन् व्‍यर्थ अपन कवि‍त्‍वकेँ नष्‍ट करब मानल जाए, मुदा इहो गप्‍प ओतबे सत्‍य जे आशु कवि‍क कोनो सीमा नै होइत छैक।
बहिर्मुखी व्‍यक्‍ति‍त्‍वक बूच अपन रचनामे अर्न्‍तमुखी बनि‍ वि‍शेष अर्थ राखएबला कवि‍ता सभ लि‍खैत छलाह। मुदा हि‍नक अन्‍तर्तममे स्‍वांग नै अछि‍ कतौ कि‍लोल नै कएलनि‍ जे हमहूँ कवि‍ छी, मुदा अपन समन्‍वयवादी दृष्‍टि‍कोणकेँ अात्‍मामे नुका कऽ नै राखि‍ सकलथि‍‍ आ हृदयांतरि‍क कि‍लोल कवि‍ताक माध्‍यमेँ बाहर नि‍कलि‍ गेल।
वि‍देहक सम्‍पादक गजेन्‍द्र ठाकुर, सह सम्‍पादक उमेश मण्‍डल आ श्रुति‍ प्रकाशन धन्‍यवादक पात्र छथि‍ जे ऐ उपेक्षि‍त अभि‍शप्‍त कवि‍क बचल-खुचल रचनाकेँ प्रकाशमे अनलनि‍, नै तँ अगि‍ला पीढ़ीक गप्‍प के कहए वर्तमान पीढ़ीक कि‍छु लोकेँ छोड़ि‍ ई कि‍यो नै जनैत अछि‍ जे बूचमैथि‍लीक कवि‍ छलाह। ऐ लेल ककरा दोष देल जाए कवि‍क अथवा साहि‍त्‍यक हथि‍यार नेने मैथि‍लीक रथपर सवार महारथी लोकनि‍केँ? एकर ि‍नर्णय पाठक कऽ सकै छथि‍।

पोथीक नाअों- कलानि‍धि‍
रचनाकार- कालीकान्‍त झा बूच
प्रकाशक- श्रुति‍ प्रकाशन
प्रकाशन वर्ष- 2010
दाम- 150 टाका मात्र।